कौरव-पांडव सेनाओं का युद्ध और द्रोण का पराक्रम

महाभारत द्रोण पर्व मेंं द्रोणाभिषेक पर्व के अंतर्गत सातवें अध्याय मेंं 'संजय ने धृतराष्ट्र से कौरव-पांडव सेनाओं के बीच हुए युद्ध और द्रोण के पराक्रम' का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है-[1]

कौरव योद्धाओं का व्यूहरचना बनाकर युद्ध में जाना

संजय कहते हैं- राजन! जब महारथी द्रोणाचार्य सेनापति का पद पाकर अपनी सेना की व्‍यूह-रचना करके आपके पुत्रों को साथ ले युद्ध के लिये उत्‍सुक हो आगे बढ़े। तथा सिन्‍धुराज जयद्रथ, कलिंग नरेश और आपके पुत्र विकर्ण- ये तीनों उनके दक्षिण पार्श्‍व का आश्रय ले कवच बाँधकर खड़े हुए। गान्‍धार देश के प्रधान-प्रधान घुड़सवारों के साथ, जो चमकीले प्रासों द्वारा युद्ध करने वाले थे, गान्‍धरराज शकुनि उन दक्षिण पार्श्‍व के योद्धाओं का प्रपक्ष[2] बनकर चला। कृपाचार्य, कृतवर्मा, चित्रसेन, विविंशति और दु:शासन आदि वीर योद्धा बड़ी सावधानी के साथ द्रोणाचार्य के वाम पार्श्‍व की रक्षा करने लगे। उनके सहायक या प्रपक्ष थे सुदक्षिण आदि काम्बोज देशीय सैनिक। ये सब लोग शकों और यवनों के साथ महान वेगशाली घोड़ो पर सवार हो युद्ध के लिये आगे बढ़े। मद्र, त्रिगर्त, अम्बष्ठ, प्रतीच्‍य, उदीच्‍य, मालव, शिबि, शूरसेन, शूद्र, मलद, सौवीर, कितव, प्राच्‍य तथा दाक्षिणात्‍य वीर-ये सबके सब आपके पुत्र दुर्योधन को आगे करके सूतपुत्र कर्ण के पृष्‍ठ भाग में रहकर अपनी सेनाओं को हर्ष प्रदान करते हुए आपके पुत्रों के साथ चले। समस्‍त योद्धाओं में श्रेष्‍ठ विकर्तन पुत्र कर्ण सारी सेनाओं में नूतन शक्ति और उत्‍साह का संचार करता हुआ सम्‍पूर्ण धनुर्धरों के आगे-आगे चला। उसका अत्‍यन्‍त कान्तिमान विशाल ध्वज बहुत ऊँचा था। उसमें हाथी को बाँधने वाली साँकल का चिह्न सुशोभित था। वह ध्‍वज अपने सैनिकों का हर्ष बढ़ाता हुआ सूर्य के समान देदीप्‍यमान हो रहा था।

कौरव योद्धाओं का कर्ण की प्रशंसा करना

कर्ण को देखकर किसी को भी भीष्‍म जी के मारे जाने का दु:ख नहीं रह गया। कौरवों सहित सब राजा शोक रहित हो गये। हर्ष में भरे हुए बहुत-से योद्धा वहाँ वेगपूर्वक बोल उठे- इस रणक्षेत्र में कर्ण को उपस्थित देख पाण्‍डव लोग ठहर नहीं सकेंगे। क्‍योंकि कर्ण समरांगण में इन्‍द्र के सहित देवताओं को भी जीतने में समर्थ है। फिर, जो बल और पराक्रम में कर्ण की अपेक्षा निम्‍न श्रेणी के हैं, उन पाण्‍डवों को युद्ध में पराजित करना उसके लिये कौन बड़ी बात है।[1] अपनी भुजाओं से सुशोभित होने वाले भीष्‍म ने तो युद्ध में कुन्‍तीकुमारों की रक्षा की है; परंतु कर्ण अपने तीखे बाणों द्वारा उनका विनाश कर डालेगा। प्रजानाथ! इस प्रकार प्रसन्‍न होकर परस्‍पर बात करते तथा राधानन्‍दन कर्ण की प्रंशसा और आदर करते हुए आपके सैनिक युद्ध के लिये चले। उस समय द्रोणाचार्य ने हमारी सेना के द्वारा शकटव्‍यूह का निर्माण किया था।

युधिष्ठिर की व्यूहरचना

राजन! हमारे महामनस्‍वी शत्रुओं की सेना का क्रौंचव्‍यूह दिखायी देता था। भारत! धर्मराज युधिष्ठिर ने स्‍वयं ही प्रसन्‍नता पूर्वक उस व्‍यूह की रचना की थी। पाण्‍डवों के उस व्‍यूह के अग्रभाग में अपनी वानरध्‍वजा को बहुत ऊँचे तक फहराते हुए पुरुषोतम भगवान श्रीकृष्‍ण और अर्जुन खड़े हुए थे। अमित तेजस्‍वी अर्जुन का वह ध्वज सूर्य के मार्ग तक फैला हुआ था। वह सम्‍पूर्ण सेनाओं के लिये श्रेष्‍ठ आश्रय तथा समस्‍त धनुर्धरों के तेज का पुंज था। वह ध्‍वज पाण्‍डुनन्‍दन महात्‍मा युधिष्ठिर की सेना को अपनी दिव्‍य प्रभा से उद्भासित कर रहा था। जैसे प्रलयकाल में प्रज्‍वलित सूर्य सारी वसुधा को देदीप्‍यमान करते दिखाये देते हैं, उसी प्रकार बुद्धिमान अर्जुन का वह विशाल ध्‍वज सर्वत्र प्रकाशमान दिखायी देता था। समस्‍त योद्धाओं में अर्जुन श्रेष्‍ठ हैं, धनुषों में गाण्‍डीव श्रेष्‍ठ है, सम्‍पूर्ण चेतन सत्‍ताओं में सच्चिदानन्‍दघन वसुदेवनन्‍दन भगवान श्रीकृष्‍ण श्रेष्‍ठ हैं और चक्रों में सुदर्शन श्रेष्‍ठ है। श्‍वेत घोड़ों से सुशोभित वह रथ इन चार तेजों को धारण करता हुआ शत्रुओं के सामने उठे हुए कालचक्र के समान खड़ा हुआ। इस प्रकार वे दोनों महात्‍मा श्रीकृष्‍ण और अर्जुन अपनी सेना के अग्रभाग में सुशोभित हो रहे थे।[3]

दोनों सेनाओं के बीच भयंकर युद्ध

संजय कहते हैं- राजन! आपकी सेना के प्रमुख भाग में कर्ण और शत्रुओं की सेना के अग्रभाग में अर्जुन खड़े थे। वे दोनों उस समय विजय के लिये रोषावेश में भरकर एक-दूसरे का वध करने की इच्‍छा से रणक्षेत्र में परस्‍पर दृष्टिपात करने लगे। तदनन्‍तर सहसा महारथी द्रोणाचार्य आगे बढ़े। फिर तो भयंकर आर्तनाद के साथ सारी पृथ्वी काँप उठी। इसके बाद प्रचण्‍ड वायु के वेग से बड़े जोर की धूल उठी, जो रेशमी वस्‍त्रों के समुदाय-सी प्रतीत होती थी। उस तीव्र एवं भयंकर धूल ने सूर्य सहित समूचे आकाश को ढक लिया। आकाश में मेघों की घटा नहीं थी, तो भी वहाँ से मास, रक्‍त तथा हड्डियों की वर्षा होने लगी। नरेश्‍वर! उस समय गीध, बाज, बगले, कंक और हजारों कौवे आपकी सेना के ऊपर-ऊपर उड़ने लगे। गीदड़ जोर-जोर से दारुण एवं भयदायक बोली बोलने लगे और मांस खाने तथा रक्‍त पीने की इच्‍छा से बारंबार आपकी सेना को दाहिने करके घूमने लगे। उस समय एक प्रज्‍वलित एवं देदीप्‍यमान उल्‍का युद्धस्‍थल में अपने पुच्‍छभाग द्वारा सबको घेरकर भारी गर्जना और कम्‍पन के साथ पृथ्‍वी पर गिरी। राजन! सेनापति द्रोण के युद्ध के लिये प्रस्‍थान करते ही सूर्य के चारों ओर बहुत बड़ा घेरा पड़ गया और बिजली चमकने के साथ ही मेघ-गर्जना सुनायी देने लगी। ये तथा और भी बहुत से भयंकर उत्‍पात प्रकट हुए, जो युद्ध में वीरों की जीवन-लीला के विनाश की सूचना देने वाले थे। तदनन्‍तर एक-दूसरे के वध की इच्‍छा वाले कौरवों तथा पाण्‍डवों की सेनाओं में भयंकर युद्ध होने लगा और उनके कोलाहल में सारा जगत व्‍याप्‍त हो गया। कोध्र में भरे हुए पाण्‍डव तथा कौरव विजय की अभिलाषा लेकर एक-दूसरे को तीखे अस्‍त्र-शस्त्र द्वारा मारने लगे। वे सभी योद्धा प्रहार करने में कुशल थे।

द्रोणाचार्य का पराक्रम

महाधनुर्धर महातेजस्‍वी द्रोणाचार्य ने पाण्‍डवों की विशाल सेना पर सैकड़ों पैने बाणों की वर्षा करते हुए बड़े वेग से आक्रमण किया।[3] राजन! उस समय द्रोणाचार्य को युद्ध के लिये उद्यत देख सृंजयों सहित पाण्‍डवों ने पृथक-पृथक बाणों की वर्षा करते हुए उनका सामना किया। जैसे वायु बादलों को उड़ाकर छिन्‍न–भिन्‍न कर देती है, उसी प्रकार द्रोणाचार्य के द्वारा क्ष‍त-विक्षत हुई पांचालों सहित पाण्‍डवों की विशाल सेना तितर-बितर हो गयी। द्रोण ने युद्ध में बहुत से दिव्‍यास्‍त्रों का प्रयोग करके क्षण-भर में पाण्‍डवों तथा सृंजयों को पीड़ित कर दिया। जैसे इन्‍द्र दानवों को पीड़ा देते हैं, उसी प्रकार द्रोणाचार्य से पीड़ित हो धृष्टद्युम्न आदि पांचाल योद्धा भय से काँपने लगे।[4]

तब दिव्‍यास्‍त्रों के ज्ञाता यज्ञसेनकुमार शूरवीर महारथी धृष्‍टद्युम्‍न ने अपने बाणों की वर्षा से द्रोणाचार्य की सेना को बारंबार घायल किया। बलवान द्रुपदपुत्र ने अपने बाणों की वर्षा से द्रोणाचार्य की बाणवृष्टि को रोककर समस्‍त कौरव सैनिकों को मारना आरम्‍भ किया। तब महाधनुर्धर द्रोणाचार्य ने अपनी सेना को काबू में करके उसे युद्धस्‍थल में स्थिर भाव से खड़ा कर दिया और द्रुपदकुमार पर धावा किया। जैसे क्रोध में भरे हुए इन्‍द्र सहसा दानवों पर बाणों की बौछार करतें हैं, उसी प्रकार द्रोणाचार्य ने धृष्‍टद्युम्‍न पर बाणों की बड़ी भारी वर्षा आरम्‍भ कर दी। जैसे सिंह दूसरे मृगों को भगा देता है, उसी प्रकार द्रोणाचार्य के बाणों से विकम्पित हुए पाण्‍डव तथा सृंजय बारंबार युद्ध का मैदान छोड़कर भागने लगे। राजन! बलवान द्रोणाचार्य पाण्‍डवों का सेना में अलात चक्र की भाँति चारों ओर चक्‍कर लगाने लगे। यह एक अद्भुत-सी बात हुई। शास्‍त्रोक्‍त विधि से निर्मित हुआ आचार्य द्रोण का वह श्रेष्‍ठ रथ आकाशचारी गन्‍धर्वनगर के समान जान पड़ता था। वायु के वेग से उसकी पताका फहरा रही थी। वह रथी के मन को आह्लाद प्रदान करने वाला था। उसके घोड़े उछल-उछलकर चल रहे थे। उसका ध्‍वज-दण्‍ड स्‍फटिक मणि के समान स्‍वच्‍छ एवं उज्‍जवल था। वह शत्रुओं को भयभीत करने वाला था। उस श्रेष्‍ठ रथ पर आरूढ़ होकर द्रोणाचार्य शत्रु सेना का संहार कर रहे थे।[4]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 7 श्लोक 1-21
  2. सहायक
  3. 3.0 3.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 7 श्लोक 22-43
  4. 4.0 4.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 7 श्लोक 44-54

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के अपमानित होने का कारण | वृष्णिवंशी वीरों की प्रशंसा | अर्जुन का जयद्रथ पर आक्रमण तथा दुर्योधन और कर्ण का वार्तालाप | अर्जुन का कौरव योद्धाओं के साथ युद्ध | कर्ण और अर्जुन का युद्ध तथा कर्ण की पराजय | अर्जुन का अद्भुत पराक्रम | अर्जुन द्वारा सिन्धुराज जयद्रथ का वध | अर्जुन के बाणों से कृपाचार्य का मूर्छित होना तथा अर्जुन का खेद | कर्ण और सात्यकि का युद्ध एवं कर्ण की पराजय | अर्जुन का कर्ण को फटकारना और वृषसेन वध की प्रतिज्ञा | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रतिज्ञा पूर्ण होने पर बधाई देना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को रणभूमि का दृश्य दिखाते हुए युधिष्ठिर के पास जाना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को अर्जुन की विजय का समाचार सुनाना | युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति | युधिष्ठिर द्वारा अर्जुन, भीम एवं सात्यकि का अभिनन्दन | दुर्योधन का व्याकुल होकर द्रोणाचार्य को उपालम्भ देना | द्रोणाचार्य का दुर्योधन को उत्तर और युद्ध के लिए प्रस्थान | दुर्योधन और कर्ण की बातचीत तथा पुन: युद्ध का आरम्भ
घटोत्कचवध पर्व
कौरव-पांडव सेना का युद्ध | दुर्योधन और युधिष्ठिर का संग्राम तथा दुर्योधन की पराजय | रात्रियुद्ध में पांडव सैनिकों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण | द्रोणाचार्य द्वारा शिबि का वध | भीमसेन द्वारा ध्रुव, जयरात एवं कलिंग राजकुमार का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुष्कर्ण और दुर्मद का वध | सोमदत्त और सात्यकि का युद्ध तथा सोमदत्त की पराजय | द्रोणाचार्य का पांडवों से घोर संग्राम | घटोत्कच और अश्वत्थामा का युद्ध तथा अंजनपर्वा का वध | अश्वत्थामा द्वारा एक अक्षौहिणी राक्षस सेना का संहार | अश्वत्थामा का अद्भुत पराक्रम तथा द्रुपदपुत्रों का वध | सोमदत्त की मूर्छा तथा भीमसेन द्वारा बाह्लीक का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों और शकुनि के पाँच भाइयों का वध | द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर के युद्ध में युधिष्ठिर की विजय | दुर्योधन और कर्ण की बातचीत | कृपाचार्य द्वारा कर्ण को फटकारना | कर्ण द्वारा कृपाचार्य का अपमान | अश्वत्थामा का कर्ण को मारने के लिये उद्यत होना | पांडवों और पांचालों का कर्ण पर आक्रमण तथा कर्ण का पराक्रम | अर्जुन द्वारा कर्ण की पराजय | दुर्योधन का अश्वत्थामा से पांचालों के वध का अनुरोध | अश्वत्थामा का दुर्योधन को उपालम्भपूर्ण आश्वासन तथा पांचालों से युद्ध | अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न से युद्ध तथा उसका अद्भुत पराक्रम | भीमसेन और अर्जुन का आक्रमण तथा कौरव सेना का पलायन | सात्यकि द्वारा सोमदत्त का वध | द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर का युद्ध | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को द्रोणाचार्य से दूर रहने का आदेश | कौरवों और पांडवों की सेनाओं में प्रदीपों का प्रकाश | कौरवों और पांडवों की सेनाओं का घमासान युद्ध | दुर्योधन का द्रोणाचार्य की रक्षा हेतु सैनिकों को आदेश | कृतवर्मा द्वारा युधिष्ठिर की पराजय | सात्यकि द्वारा भूरि का वध | घटोत्कच और अश्वत्थामा का घोर युद्ध | भीम और दुर्योधन का युद्ध तथा दुर्योधन का पलायन | कर्ण द्वारा सहदेव की पराजय | शल्य द्वारा विराट के भाई शतानीक का वध और विराट की पराजय | अर्जुन से पराजित होकर अलम्बुष का पलायन | शतानीक के द्वारा चित्रसेन की पराजय | वृषसेन के द्वारा द्रुपद की पराजय | प्रतिबिन्ध्य एवं दु:शासन का युद्ध | नकुल के द्वारा शकुनि की पराजय | शिखण्डी और कृपाचार्य का घोर युद्ध | धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य से युद्ध | धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुमसेन का वध | सात्यकि और कर्ण का युद्ध | कर्ण की दुर्योधन को सलाह | शकुनि का पांडव सेना पर आक्रमण | सात्यकि से दुर्योधन की पराजय | अर्जुन से शकुनि और उलूक की पराजय | धृष्टद्युम्न से कौरव सेना की पराजय | दुर्योधन के उपालम्भ से द्रोणाचार्य और कर्ण का घोर युद्ध | अर्जुन सहित भीमसेन का कौरवों पर आक्रमण | कर्ण द्वारा धृष्टद्युम्न एवं पांचालों की पराजय | कर्ण के पराक्रम से युधिष्ठिर की घबराहट | श्रीकृष्ण और अर्जुन का घटोत्कच को कर्ण के साथ युद्ध हेतु भेजना | घटोत्कच और जटासुरपुत्र अलम्बुष का घोर युद्ध | घटोत्कच द्वारा जटासुरपुत्र अलम्बुष का वध | घटोत्कच और उसके रथ आदि के स्वरूप का वर्णन | कर्ण और घटोत्कच का घोर संग्राम | अलायुध के स्वरूप और रथ आदि का वर्णन | भीमसेन और अलायुध का घोर युद्ध | घटोत्कच द्वारा अलायुध का वध और दुर्योधन का पश्चाताप | कर्ण द्वारा इन्द्रप्रदत्त शक्ति से घटोत्कच का वध | घटोत्कच वध से पांडवों का शोक तथा श्रीकृष्ण की प्रसन्नता | श्रीकृष्ण का अर्जुन को जरासंध आदि के वध करने का कारण बताना | कर्ण द्वारा अर्जुन पर शक्ति न छोड़ने के रहस्य का वर्णन | धृतराष्ट्र का पश्चाताप और संजय का उत्तर | युधिष्ठिर का शोक और श्रीकृष्ण तथा व्यास द्वारा उसका निवारण
द्रोणवध पर्व
| अर्जुन के कहने से उभयपक्ष के सैनिकों का सो जाना | उभयपक्ष के सैनिकों का चन्द्रोदय के बाद पुन: युद्ध में लग जाना | दुर्योधन का उपालम्भ और द्रोणाचार्य का व्यंग्यपूर्ण उत्तर | पांडव वीरों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण | द्रुपद के पौत्रों तथा द्रुपद और विराट आदि का वध | धृष्टद्युम्न की प्रतिज्ञा और दोनों दलों में घमासान युद्ध | युद्धस्थल की भीषण अवस्था का वर्णन | नकुल के द्वारा दुर्योधन की पराजय | दु:शासन और सहदेव का घोर युद्ध | कर्ण और भीमसेन का घोर युद्ध | द्रोणाचार्य और अर्जुन का घोर युद्ध | धृष्टद्युम्न का दु:शासन को हराकर द्रोणाचार्य पर आक्रमण | दुर्योधन और सात्यकि का संवाद तथा युद्ध | कर्ण और भीमसेन का संग्राम तथा अर्जुन का कौरवों पर आक्रमण | द्रोणाचार्य का घोर कर्म | ऋषियों का द्रोण को अस्त्र त्यागने का आदेश | अश्वत्थामा की मृत्यु सुनकर द्रोण की जीवन से निराशा | द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्न का घोर युद्ध | सात्यकि की शूरवीरता और प्रशंसा | उभयपक्ष के श्रेष्ठ महारथियों का परस्पर युद्ध | धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य पर आक्रमण और घोर युद्ध | द्रोणाचार्य का अस्त्र त्यागकर योगधारणा द्वारा ब्रह्मलोक गमन | धृष्टद्युम्न द्वारा द्रोणाचार्य के मस्तक का उच्छेद
नारायणास्त्र-मोक्षपर्व
| कौरव सैनिकों तथा सेनापतियों का भागना | कृपाचार्य का अश्वत्थामा को द्रोणवध का वृत्तान्त सुनाना | धृतराष्ट्र का प्रश्न | अश्वत्थामा के क्रोधपूर्ण उद्गार | अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्राकट्य | कौरव सेना का सिंहनाद सुनकर युधिष्ठिर का अर्जुन से कारण पूछना | अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा के क्रोध एवं गुरुहत्या के भीषण परिणाम का वर्णन | भीमसेन के वीरोचित उद्गार | धृष्टद्युम्न के द्वारा अपने कृत्य का समर्थन | सात्यकि और धृष्टद्युम्न का परस्पर क्रोधपूर्ण वाग्बाणों से लड़ना | भीम, सहदेव तथा युधिष्ठिर द्वारा सात्यकि और धृष्टद्युम्न को लड़ने से रोकना | अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्रयोग | नारायणास्त्र के प्रयोग से युधिष्ठिर का खेद | श्रीकृष्ण के बताये हुए उपाय से सैनिकों की रक्षा | भीम का वीरोचित उद्गार और उन पर नारायणास्त्र का प्रबल आक्रमण | श्रीकृष्ण का भीम को रथ से उतारकर नारायणास्त्र को शान्त करना | अश्वत्थामा का पुन: नारायणास्त्र के प्रयोग में असमर्थता बताना | अश्वत्थामा द्वारा धृष्टद्युम्न की पराजय | सात्यकि का दुर्योधन, कृपाचार्य, कृतवर्मा, कर्ण और वृषसेन को भगाना | सात्यकि का अश्वत्थामा से घोर युद्ध | अश्वत्थामा द्वारा मालव, पौरव और चेदिदेश के युवराज का वध | भीम और अश्वत्थामा का घोर युद्ध | अश्वत्थामा के आग्नेयास्त्र से एक अक्षौहिणी पांडव सेना का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन पर आग्नेयास्त्र का प्रभाव न होने से अश्वत्थामा की चिन्ता | व्यास का अश्वत्थामा को शिव और श्रीकृष्ण की महिमा बताना | व्यास का अर्जुन से शिव की महिमा बताना | द्रोण पर्व के पाठ और श्रवण का फल

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