धृष्टद्युम्न के द्वारा अपने कृत्य का समर्थन

महाभारत द्रोण पर्व में नारायणास्त्रमोक्ष पर्व के अंतर्गत 197वें अध्याय में संजय ने धृष्टद्युम्न के द्वारा अर्जुन के समक्ष अपने कृत्य का समर्थन करने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

धृष्टद्युम्न द्वारा अपने कृत्य को धर्म बताते हुए अर्जुन से वार्ता करना

संजय कहते हैं- राजन! जैसे पूर्वकाल में अत्‍यंत क्रुद्ध होकर दहाड़ते हुए नृसिंहावतारधारी भगवान विष्‍णु से दैत्‍यराज हिरण्यकशिपु ने बातें की थी, उसी प्रकार वहाँ अर्जुन से पांचालराजकुमार धृष्टद्युम्न ने इस प्रकार कहा- धृष्टद्युम्न बोला- अर्जुन! यज्ञ करना और कराना, वेदों को पढ़ना और पढ़ाना तथा दान देना और प्रतिग्रह स्‍वीकार करना- ये छ: कर्म ही ब्राह्मणों के लिये मनीषी पुरुषों में प्रसिद्ध हैं। इनमें से किस कर्म में द्रोणाचार्य प्रतिष्ठित थे। अपने धर्म से भ्रष्‍ट होकर उन्होंने क्षत्रिय धर्म का आश्रय ले रखा था। पार्थ! ऐसी अवस्‍था में यदि मैनें द्रोणाचार्य का वध किया तो तुम इसके लिये मेरी निन्‍दा क्‍यों करते हो। वह नीच कर्म करने वाला ब्राह्मण दिव्‍यास्‍त्रों द्वारा हम लोगों का संहार करता था। कुन्‍तीनन्‍दन! जो ब्राह्मण कहलाकर भी दूसरों के लिये माया का प्रयोग करता हो और असहाय हो उठा हो, उसे यदि कोई माया से मार डाले तो इसमें अनुचित क्‍या है? मेरे द्वारा द्रोणाचार्य के इस अवस्‍था में मारे जाने पर यदि द्रोणपुत्र क्रोधपूर्वक भयानक गर्जना करता हो तो उसमें मेरी क्‍या हानि है? मैं इसे कोई अद्भुत बात नहीं मान रहा हूं, अश्वत्थामा इस युद्ध के द्वारा कौरवों को मरवा डालेगा, क्‍योंकि वह स्‍वयं उनकी रक्षा करने में असमर्थ है। इसके सिवा तुम धार्मिक होकर जो मुझे गुरु की हत्‍या करने वाला बता रहे हो, वह भी ठीक नहीं है, क्‍योंकि मैं इसीलिये अग्नि कुण्‍ड से पांचालराज का पुत्र होकर उत्‍पन्‍न हुआ था।

धनंजय! रणभूमि में युद्ध करते समय जिसके लिये कर्तव्‍य और सकर्तव्‍य दोनों समान हों, उसे तुम ब्राह्मण अथवा क्षत्रिय कैसे कह सकते हो? पुरुषप्रवर! जो क्रोध से व्‍याकुल होकर ब्रह्मास्त्र न जानने वालों को भी ब्रह्मास्त्र से ही मार डाले, उसका सभी उपायों से वध करना कैसे उचित नहीं? धर्म और अर्थ का तत्त्व जानने वाले अर्जुन! जो अपना धर्म छोड़कर परधर्म ग्रहण कर लेता है, उस विधर्मी को धर्मज्ञ पुरुषों ने धर्मात्‍माओं के लिये विष के तुल्‍य बताया है। यह सब जानते हुए भी तुम मेरी निन्‍दा क्‍यों करते हो? बीभत्‍सो! द्रोणाचार्य क्रूर एवं नृशंस थे, इसलिये मैनें रथ पर ही आक्रमण करके उनको मार गिराया। अत: मैं निन्‍दा का पात्र नहीं हूँ। फिर तुम किसलिये मेरा अभिनन्‍दन नहीं करते हो?[1]पार्थ! द्रोण का मस्‍तक प्रलयकाल की अग्नि के समान अत्‍यंत भयंकर तथा लौकिक अग्नि, सूर्य एवं विष के तुल्‍य संताप देने वाला था, अत: मैंने उसका छेदन किया है। इसके लिये तुम मेरी प्रशंसा क्‍यों नहीं करते? जिसने युद्ध के मैदान में दूसरे किसी के नहीं, मेरे ही बन्‍धु-बान्‍धवों का वध किया था, उसका मस्‍तक काट लेने पर भी मेरा क्रोध और संताप शांत नहीं हुआ है। जैसे तुमने जयद्रथ के मस्‍तक को दूर फेंका था, उसी प्रकार मैंने द्रोणाचार्य के मस्‍तक को जो निषादों के स्‍थान में नहीं फेंक दिया, वह भूल मेरे मर्मस्‍थानों का छेदन कर रही है।

अर्जुन! सुनने में आया है कि शत्रुओं का वध न करना भी अधर्म ही है। क्षत्रिय के लिये तो यह धर्म ही है कि वह युद्ध में शत्रु को मार डाले या फिर स्‍वयं उसके हाथ से मारा जाय। पाण्‍डुनन्‍दन! द्रोणाचार्य मेरे शत्रु थे, अत: मैंने युद्ध में धर्म के अनुसार ही उनका वध किया है। ठीक उसी तरह, जैसे तुमने अपने पिता के प्रिय मित्र शूरवीर भगदत्त का वध किया था। तुम युद्ध में पितामह को मारकर भी अपने लिये तो धर्म मानते हो, किंतु मेरे द्वारा एक पापी शत्रु के मारे जाने पर भी इस कार्य को धर्म नहीं समझते, इसका क्‍या कारण है? पार्थ! जैसे हाथी सम्‍बन्‍ध स्‍थापित कर लेने पर लोगों को अपने ऊपर चढ़ाने के लिये अपने ही शरीर की सीढ़ी बनाकर बैठ जाता है, उसी प्रकार मैं भी तुम्‍हारे साथ सम्‍बन्‍ध होने के कारण नतमस्‍तक होता हूं, अत: तुम्‍हे मेरे प्रति ऐसी बातें नहीं कहनी चाहिए। अर्जुन! मैं अपनी बहिन द्रौपदी और उसके पुत्रों के नाते ही तुम्‍हारी इन सारी उलटी या कड़वी बातों को सहे लेता हूं, दूसरे किसी कारण से नहीं। द्रोणाचार्य के साथ मेरा वंश-पराम्‍परागत वैर चला आ रहा है, जो बहुत प्रसिद्ध है। उसे यह सारा संसार जानता है, क्‍या तुम पाण्‍डवों को इसका पता नहीं है? अर्जुन! तुम्‍हारे बड़े भाई पाण्‍डुनन्‍दन युधिष्ठिर असत्‍यवादी नहीं हैं और न मैं ही अधर्मीं हूँ। द्रोणाचार्य पापी और शिष्‍यद्रोही थे, इसलिये मारे गये। अत: तुम युद्ध करो, विजय तुम्‍हारे हाथ में है।[2]



टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 197 श्लोक 17-34
  2. महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 197 श्लोक 35-44

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संशप्तकवध पर्व
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| भीमसेन द्वारा कर्ण के सारथि सहित रथ का विनाश | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुर्जय का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुर्मुख का वध | कर्ण-भीमसेन युद्ध में कर्ण का पलायन | धृतराष्ट्र का खेदपूर्वक भीमसेन के बल का वर्णन और अपने पुत्रों की निन्दा | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के पाँच पुत्रों का वध | भीमसेन और कर्ण का युद्ध तथा कर्ण का पलायन | भीमसेन का पराक्रम तथा धृतराष्ट्र के सात पुत्रों का वध | भीमसेन का कर्ण से युद्ध तथा दुर्योधन के सात भाइयों का वध | भीमसेन और कर्ण का भयंकर युद्ध | पहले भीम की और पीछे कर्ण की विजय | अर्जुन के बाणों से व्यथित होकर कर्ण और अश्वत्थामा का पलायन | सात्यकि द्वारा अलम्बुष का और दु:शासन के घोड़ों का वध | सात्यकि का अद्भुत पराक्रम | श्रीकृष्ण का अर्जुन को सात्यकि के आगमन की सूचना देना | सात्यकि के आगमन से अर्जुन की चिन्ता | भूरिश्रवा और सात्यकि का रोषपूर्ण सम्भाषण और युद्ध | अर्जुन द्वारा भूरिश्रवा की भुजा का उच्छेद | भूरिश्रवा का अर्जुन को उपालम्भ देना और अर्जुन का उत्तर | भूरिश्रवा का आमरण अनशन | सात्यकि द्वारा भूरिश्रवा का वध | भूरिश्रवा द्वारा सात्यकि 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कौरव-पांडव सेना का युद्ध | दुर्योधन और युधिष्ठिर का संग्राम तथा दुर्योधन की पराजय | रात्रियुद्ध में पांडव सैनिकों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण | द्रोणाचार्य द्वारा शिबि का वध | भीमसेन द्वारा ध्रुव, जयरात एवं कलिंग राजकुमार का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुष्कर्ण और दुर्मद का वध | सोमदत्त और सात्यकि का युद्ध तथा सोमदत्त की पराजय | द्रोणाचार्य का पांडवों से घोर संग्राम | घटोत्कच और अश्वत्थामा का युद्ध तथा अंजनपर्वा का वध | अश्वत्थामा द्वारा एक अक्षौहिणी राक्षस सेना का संहार | अश्वत्थामा का अद्भुत पराक्रम तथा द्रुपदपुत्रों का वध | सोमदत्त की मूर्छा तथा भीमसेन द्वारा बाह्लीक का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों और शकुनि के पाँच भाइयों का वध | द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर के युद्ध में युधिष्ठिर की विजय | दुर्योधन और कर्ण की बातचीत | कृपाचार्य द्वारा कर्ण को फटकारना | कर्ण द्वारा कृपाचार्य का अपमान | अश्वत्थामा का कर्ण को मारने के लिये उद्यत होना | पांडवों और पांचालों का कर्ण पर आक्रमण तथा कर्ण का पराक्रम | अर्जुन द्वारा कर्ण की पराजय | दुर्योधन का अश्वत्थामा से पांचालों के वध का अनुरोध | अश्वत्थामा का दुर्योधन को उपालम्भपूर्ण आश्वासन तथा पांचालों से युद्ध | अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न से युद्ध तथा उसका अद्भुत पराक्रम | भीमसेन और अर्जुन का आक्रमण तथा कौरव सेना का पलायन | सात्यकि द्वारा सोमदत्त का वध | द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर का युद्ध | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को द्रोणाचार्य से दूर रहने का आदेश | कौरवों और पांडवों की सेनाओं में प्रदीपों का प्रकाश | कौरवों और पांडवों की सेनाओं का घमासान युद्ध | दुर्योधन का द्रोणाचार्य की रक्षा हेतु सैनिकों को आदेश | कृतवर्मा द्वारा युधिष्ठिर की पराजय | सात्यकि द्वारा भूरि का वध | घटोत्कच और अश्वत्थामा का घोर युद्ध | भीम और दुर्योधन का युद्ध तथा दुर्योधन का पलायन | कर्ण द्वारा सहदेव की पराजय | शल्य द्वारा विराट के भाई शतानीक का वध और विराट की पराजय | अर्जुन से पराजित होकर अलम्बुष का पलायन | शतानीक के द्वारा चित्रसेन की पराजय | वृषसेन के द्वारा द्रुपद की पराजय | प्रतिबिन्ध्य एवं दु:शासन का युद्ध | नकुल के द्वारा शकुनि की पराजय | शिखण्डी और कृपाचार्य का घोर युद्ध | धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य से युद्ध | धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुमसेन का वध | सात्यकि और कर्ण का युद्ध | कर्ण की दुर्योधन को सलाह | शकुनि का पांडव सेना पर आक्रमण | सात्यकि से दुर्योधन की पराजय | अर्जुन से शकुनि और उलूक की पराजय | धृष्टद्युम्न से कौरव सेना की पराजय | दुर्योधन के उपालम्भ से द्रोणाचार्य और कर्ण का घोर युद्ध | अर्जुन सहित भीमसेन का कौरवों पर आक्रमण | कर्ण द्वारा धृष्टद्युम्न एवं पांचालों की पराजय | कर्ण के पराक्रम से युधिष्ठिर की घबराहट | श्रीकृष्ण और अर्जुन का घटोत्कच को कर्ण के साथ युद्ध हेतु भेजना | घटोत्कच और जटासुरपुत्र अलम्बुष का घोर युद्ध | घटोत्कच द्वारा जटासुरपुत्र अलम्बुष का वध | घटोत्कच और उसके रथ आदि के स्वरूप का वर्णन | कर्ण और घटोत्कच का घोर संग्राम | अलायुध के स्वरूप और रथ आदि का वर्णन | भीमसेन और अलायुध का घोर युद्ध | घटोत्कच द्वारा अलायुध का वध और दुर्योधन का पश्चाताप | कर्ण द्वारा इन्द्रप्रदत्त शक्ति से घटोत्कच का वध | घटोत्कच वध से पांडवों का शोक तथा श्रीकृष्ण की प्रसन्नता | श्रीकृष्ण का अर्जुन को जरासंध आदि के वध करने का कारण बताना | कर्ण द्वारा अर्जुन पर शक्ति न छोड़ने के रहस्य का वर्णन | धृतराष्ट्र का पश्चाताप और संजय का उत्तर | युधिष्ठिर का शोक और श्रीकृष्ण तथा व्यास द्वारा उसका निवारण
द्रोणवध पर्व
| अर्जुन के कहने से उभयपक्ष के सैनिकों का सो जाना | उभयपक्ष के सैनिकों का चन्द्रोदय के बाद पुन: युद्ध में लग जाना | दुर्योधन का उपालम्भ और द्रोणाचार्य का व्यंग्यपूर्ण उत्तर | पांडव वीरों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण | द्रुपद के पौत्रों तथा द्रुपद और विराट आदि का वध | धृष्टद्युम्न की प्रतिज्ञा और दोनों दलों में घमासान युद्ध | युद्धस्थल की भीषण अवस्था का वर्णन | नकुल के द्वारा दुर्योधन की पराजय | दु:शासन और सहदेव का घोर युद्ध | कर्ण और भीमसेन का घोर युद्ध | द्रोणाचार्य और अर्जुन का घोर युद्ध | धृष्टद्युम्न का दु:शासन को हराकर द्रोणाचार्य पर आक्रमण | दुर्योधन और सात्यकि का संवाद तथा युद्ध | कर्ण और भीमसेन का संग्राम तथा अर्जुन का कौरवों पर आक्रमण | द्रोणाचार्य का घोर कर्म | ऋषियों का द्रोण को अस्त्र त्यागने का आदेश | अश्वत्थामा की मृत्यु सुनकर द्रोण की जीवन से निराशा | द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्न का घोर युद्ध | सात्यकि की शूरवीरता और प्रशंसा | उभयपक्ष के श्रेष्ठ महारथियों का परस्पर युद्ध | धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य पर आक्रमण और घोर युद्ध | द्रोणाचार्य का अस्त्र त्यागकर योगधारणा द्वारा ब्रह्मलोक गमन | धृष्टद्युम्न द्वारा द्रोणाचार्य के मस्तक का उच्छेद
नारायणास्त्र-मोक्षपर्व
| कौरव सैनिकों तथा सेनापतियों का भागना | कृपाचार्य का अश्वत्थामा को द्रोणवध का वृत्तान्त सुनाना | धृतराष्ट्र का प्रश्न | अश्वत्थामा के क्रोधपूर्ण उद्गार | अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्राकट्य | कौरव सेना का सिंहनाद सुनकर युधिष्ठिर का अर्जुन से कारण पूछना | अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा के क्रोध एवं गुरुहत्या के भीषण परिणाम का वर्णन | भीमसेन के वीरोचित उद्गार | धृष्टद्युम्न के द्वारा अपने कृत्य का समर्थन | सात्यकि और धृष्टद्युम्न का परस्पर क्रोधपूर्ण वाग्बाणों से लड़ना | भीम, सहदेव तथा युधिष्ठिर द्वारा सात्यकि और धृष्टद्युम्न को लड़ने से रोकना | अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्रयोग | नारायणास्त्र के प्रयोग से युधिष्ठिर का खेद | श्रीकृष्ण के बताये हुए उपाय से सैनिकों की रक्षा | भीम का वीरोचित उद्गार और उन पर नारायणास्त्र का प्रबल आक्रमण | श्रीकृष्ण का भीम को रथ से उतारकर नारायणास्त्र को शान्त करना | अश्वत्थामा का पुन: नारायणास्त्र के प्रयोग में असमर्थता बताना | अश्वत्थामा द्वारा धृष्टद्युम्न की पराजय | सात्यकि का दुर्योधन, कृपाचार्य, कृतवर्मा, कर्ण और वृषसेन को भगाना | सात्यकि का अश्वत्थामा से घोर युद्ध | अश्वत्थामा द्वारा मालव, पौरव और चेदिदेश के युवराज का वध | भीम और अश्वत्थामा का घोर युद्ध | अश्वत्थामा के आग्नेयास्त्र से एक अक्षौहिणी पांडव सेना का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन पर आग्नेयास्त्र का प्रभाव न होने से अश्वत्थामा की चिन्ता | व्यास का अश्वत्थामा को शिव और श्रीकृष्ण की महिमा बताना | व्यास का अर्जुन से शिव की महिमा बताना | द्रोण पर्व के पाठ और श्रवण का फल

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