श्रीकृष्ण और अर्जुन का घटोत्कच को कर्ण के साथ युद्ध हेतु भेजना

महाभारत द्रोण पर्व मेंं घटोत्कचवध पर्व के अंतर्गत 173वें अध्याय मेंं श्रीकृष्ण और अर्जुन का घटोत्कच को कर्ण के साथ युद्ध हेतु भेजने का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है-[1]

श्रीकृष्ण का अर्जुन को समझाना

संजय कहते हैं- राजन! जब अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से इस प्रकार कहा- भगवन! मैं युद्ध के मुहानों पर अपनी आँखों के सामने कर्ण का इस प्रकार विचरना नहीं सह सकूँगा। ‘मधुसूदन! अतः आप शीघ्र वहीं चलिये, जहाँ महारथी कर्ण है। आज मैं इसे मार डालूँगा या यह मुझे मार डालेगा’। तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- कुन्तीनन्दन! आज युद्धस्थल में मैं पुरुषसिंह कर्ण को देवराज इन्द्र के समान अमानुषिक पराक्रम प्रकट करते और विचरते देख रहा हूँ। पुरुषसिंह धनंजय! संग्रामभूमि में तुम्हें अथवा राक्षस घटोत्कच को छोड़कर दूसरा कोई ऐसा नहीं है, जो इसका सामना कर सके। निष्पाप महाबाहु अर्जुन! इस समय रणक्षेत्र में सूतपुत्र के साथ तुम्हारा युद्ध करना मैं उचित नहीं मानता। क्योंकि उसके पास इन्द्र की दी हुई शक्ति है, जो प्रज्वलित उल्का के समान प्रकाशित होती है। महाबाहो! सूत पुत्र ने युद्धस्थल में तुम्हारे ऊपर प्रयोग करने के लिये ही इस शक्ति को सुरक्षित रखा है, यह बड़ा भयंकर रूप धारण करती है। अतः मेरी राय में इस समय महाबली घटोत्कच ही राधा पुत्र कर्ण का सामना करने के लिये जाय, क्योंकि वह बलवान भीमसेन का बेटा है, देवताओं के समान पराक्रमी है तथा उसके पास राक्षस-सम्बन्धी एवं असुर-सम्बन्धी सभी प्रकार के दिव्य अस्त्र-शस्त्र हैं। घटोत्कच तुम लोगों का हितैषी है और सदा तुम्हारे प्रति अनुराग रखता है। वह रणभूमि में कर्ण को जीत लेगा, इसमें मुझे संशय नहीं है।[1]

कृष्ण और अर्जुन का घटोत्कच को कर्ण के साथ युद्ध करने के लिये कहना

भगवान श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर महाबाहु कमलनयन कुन्तीकुमार ने राक्षस घटोत्कच का आवाहन किया और वह तत्काल उनके सामने प्रकट हो गया। प्रजानाथ! उसने कवच, धनुष, बाण और खड्ग धारण कर रखे थे। वह श्रीकृष्ण और पाण्डु पुत्र धनंजय को प्रणाम करके उस समय भगवान श्रीकृष्ण से बोला- ‘प्रभो! यहा मैं सेवा में उपस्थित हूँ। मुझे आज्ञा दीजिये, क्या करूँ’। तदनन्तर प्रज्वलित मुख और प्रकाशित कुण्डलों वाले मेघ के समान काले हिडिम्बाकुमार घटोत्कच से भगवान श्रीकृष्ण ने हँसते हुए से कहा। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- बेटा घटोत्कच! मैं तुमसे जो कुछ कह रहा हूँ, उसे सुनो और समझो। यह तुम्हारे लिये ही पराक्रम दिखाने का अवसर आया है, दूसरे किसी के लिये नहीं। तुम्हारे ये बन्धु संकट के समुद्र में डूब रहे हैं, तुम इनके लिये जहाज बन जाओ। तुम्हारे पास नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्र हैं और तुम में राक्षसी माया का भी बल है। हिडिम्बानन्दन! देखो, जैसे चरवाहा गायों को हाँकता है, उसी प्रकार युद्ध के मुहाने पर खड़ा हुआ कर्ण पाण्डवों की इस विशाल सेना को खदेड़ रहा है। यह कर्ण महाधनुर्धर, बुद्धिमान और दृढ़तापूर्वक पराक्रम प्रकट करने वाला है। यह पाण्डवों की सेनाओं में जो श्रेष्ठ क्षत्रिय वीर है, उनका विनाश कर रहा है। इसके बाणों की आग से संतप्त हो बाणों की बड़ी भारी वर्षा करने वाले सुदृढ़ धनुर्धर वीर भी युद्धभूमि में ठहर नहीं पाते हैं। देखो, जैसे सिंह से पीड़ित हुए मृग भागते हैं, उसी प्रकार इस आधी रात के समय सूत पुत्र के द्वारा की हुई बाण वर्षा से व्यथित हो ये पांचाल सैनिक भागे जा रहे हैं। भयंकर पराक्रमी वीर! इस युद्धथल में तुम्हारे सिवा दूसरा कोई ऐसा योद्धा नहीं है, जो इस प्रकार आगे बढ़ने वाले सूत पुत्र कर्ण को रोक सके। महाबाहो! इसलिये तुम अपने पिता, मामा, से तेज, अस्त्रबल में तथा अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप युद्ध में पराक्रम करो।। हिडिम्बाकुमार! मनुष्य इसीलिये पुत्र की इच्छा करते है कि वह किसी प्रकार हमें दुःख से छुड़ायेगा, अतः तुम अपने बन्धु-बान्धवों को उबारो। घटोत्कच! प्रत्येक पिता अपने इसी स्वार्थ के लिये पुत्रो की इच्छा करता है कि वे पुत्र मेरे हितैषी होकर मुझे इस लोक से परलोक में तार देंगे। भीमनन्दन! संग्राम भूमि में युद्ध करते समय सदा तुम्हारा भयंकर बल बढ़ता है और तुम्हारी मायाएँ दुस्तर होती हैं।। परंतप! रात के समय कर्ण के बाणों से क्षत-विक्षत होकर पाण्डव सैनिकों के पाँव उखड़ गये हैं और वे कौरव सेनारूपी समुद्र में डूब रहे हैं। तुम उनके लिये तटभूमि बन जाओ।। रात्रि के समय राक्षसों का अनन्त पराक्रम और भी बढ़ जाता है। वे बलवान, परम दुर्धर्ष, शूरवीर और पराक्रम पूर्वक विचरने वाले होते हैं। तुम आधी रात के समय अपनी माया द्वारा रणभूमि में महाधनुर्धर कर्ण को मार डालो और धृष्टद्युम्न आदि पाण्डव सैनिक द्रोणाचार्य का वध करेंगे।[2]

संजय कहते हैं- कुरुराज! भगवान श्रीकृष्ण का यह वचन सुनकर अर्जुन ने भी शत्रुओं का दमन करने वाले राक्षस घटोत्कच से कहा- ‘घटोत्कच! मेरी सम्पूर्ण सेनाओं में तीन ही वीर श्रेष्ठ माने गये हैं- तुम, महाबाहु सात्यकि तथा पाण्डुनन्दन भीमसेन। ‘अतः तुम इस निशीथकाल में कर्ण के साथ द्वैरथ युद्ध करो और महारथी सात्यकि तुम्हारे पृष्ठ रक्षक होंगे। ‘जैसे पूर्वकाल में स्कन्द के साथ रहकर इन्द्र ने तारकासुर का वध किया था, उसी प्रकार तुम भी सात्यकि की सहायता पाकर रणभूमि में शूरवीर कर्ण को मार डालो’।[3]

घटोत्कच का कर्ण से युद्ध के लिये प्रस्थान

घटोत्कच ने कहा- महाबाहो! प्रभो! आप मुझे जैसा कह रहे हैं, वैसा ही है। मैं आपका भेजा हुआ कर्ण के वध की इच्छा से जा रहा हूँ। भारत! मैं कर्ण का सामना करने में तो समर्थ हूँ ही, द्रोणाचार्य का भी अच्छी तरह सामना कर सकता हूँ। अस्त्र-विद्या के जानने वाले ये जो दूसरे महामनस्वी क्षत्रिय हैं, उनके साथ भी लोहा ले सकता हूँ। आज मैं इस रात में सूत पुत्र कर्ण के साथ ऐसा संग्राम करूँगा, जिसकी चर्चा जब तक यह पृथ्वी रहेगी, तब तक लोग करते रहेंगे। इस युद्ध में मैं न तो शूरवीरों को जीवित छोडूँगा, न डरने वालों को और न हाथ जोड़ने वालों को ही। राक्षस-धर्म का आश्रय लेकर सच का ही संहार कर डालूँगा।

संजय कहते हैं- राजन! श्रेष्ठ वीरों का संहार करने वाला महाबाहु हिडिम्बाकुमार ऐसा कहकर उस भयंकर युद्ध में आपकी सेना को भयभीत करता हुआ कर्ण का सामना करने के लिये गया। क्रोध में भरे हुए उस प्रज्वलित मुख और चमकीले केशों वाले राक्षस को आते हुए देख पुरुष सिंह सूत पुत्र कर्ण ने हँसते हुए उसे अपने प्रतिद्वन्द्वी के रूप में ग्रहण किया। नृपश्रेष्ठ! संग्राम भूमि में गर्जना करते हुए कर्ण और राक्षस दोनों में इन्द्र और प्रह्लाद के समान युद्ध होने लगा।[3]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 173 श्लोक 20-41
  2. महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 173 श्लोक 42-59
  3. 3.0 3.1 महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 173 श्लोक 60-67

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के अपमानित होने का कारण | वृष्णिवंशी वीरों की प्रशंसा | अर्जुन का जयद्रथ पर आक्रमण तथा दुर्योधन और कर्ण का वार्तालाप | अर्जुन का कौरव योद्धाओं के साथ युद्ध | कर्ण और अर्जुन का युद्ध तथा कर्ण की पराजय | अर्जुन का अद्भुत पराक्रम | अर्जुन द्वारा सिन्धुराज जयद्रथ का वध | अर्जुन के बाणों से कृपाचार्य का मूर्छित होना तथा अर्जुन का खेद | कर्ण और सात्यकि का युद्ध एवं कर्ण की पराजय | अर्जुन का कर्ण को फटकारना और वृषसेन वध की प्रतिज्ञा | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रतिज्ञा पूर्ण होने पर बधाई देना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को रणभूमि का दृश्य दिखाते हुए युधिष्ठिर के पास जाना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को अर्जुन की विजय का समाचार सुनाना | युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति | युधिष्ठिर द्वारा अर्जुन, भीम एवं सात्यकि का अभिनन्दन | दुर्योधन का व्याकुल होकर द्रोणाचार्य को उपालम्भ देना | द्रोणाचार्य का दुर्योधन को उत्तर और युद्ध के लिए प्रस्थान | दुर्योधन और कर्ण की बातचीत तथा पुन: युद्ध का आरम्भ
घटोत्कचवध पर्व
कौरव-पांडव सेना का युद्ध | दुर्योधन और युधिष्ठिर का संग्राम तथा दुर्योधन की पराजय | रात्रियुद्ध में पांडव सैनिकों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण | द्रोणाचार्य द्वारा शिबि का वध | भीमसेन द्वारा ध्रुव, जयरात एवं कलिंग राजकुमार का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुष्कर्ण और दुर्मद का वध | सोमदत्त और सात्यकि का युद्ध तथा सोमदत्त की पराजय | द्रोणाचार्य का पांडवों से घोर संग्राम | घटोत्कच और अश्वत्थामा का युद्ध तथा अंजनपर्वा का वध | अश्वत्थामा द्वारा एक अक्षौहिणी राक्षस सेना का संहार | अश्वत्थामा का अद्भुत पराक्रम तथा द्रुपदपुत्रों का वध | सोमदत्त की मूर्छा तथा भीमसेन द्वारा बाह्लीक का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों और शकुनि के पाँच भाइयों का वध | द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर के युद्ध में युधिष्ठिर की विजय | दुर्योधन और कर्ण की बातचीत | कृपाचार्य द्वारा कर्ण को फटकारना | कर्ण द्वारा कृपाचार्य का अपमान | अश्वत्थामा का कर्ण को मारने के लिये उद्यत होना | पांडवों और पांचालों का कर्ण पर आक्रमण तथा कर्ण का पराक्रम | अर्जुन द्वारा कर्ण की पराजय | दुर्योधन का अश्वत्थामा से पांचालों के वध का अनुरोध | अश्वत्थामा का दुर्योधन को उपालम्भपूर्ण आश्वासन तथा पांचालों से युद्ध | अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न से युद्ध तथा उसका अद्भुत पराक्रम | भीमसेन और अर्जुन का आक्रमण तथा कौरव सेना का पलायन | सात्यकि द्वारा सोमदत्त का वध | द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर का युद्ध | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को द्रोणाचार्य से दूर रहने का आदेश | कौरवों और पांडवों की सेनाओं में प्रदीपों का प्रकाश | कौरवों और पांडवों की सेनाओं का घमासान युद्ध | दुर्योधन का द्रोणाचार्य की रक्षा हेतु सैनिकों को आदेश | कृतवर्मा द्वारा युधिष्ठिर की पराजय | सात्यकि द्वारा भूरि का वध | घटोत्कच और अश्वत्थामा का घोर युद्ध | भीम और दुर्योधन का युद्ध तथा दुर्योधन का पलायन | कर्ण द्वारा सहदेव की पराजय | शल्य द्वारा विराट के भाई शतानीक का वध और विराट की पराजय | अर्जुन से पराजित होकर अलम्बुष का पलायन | शतानीक के द्वारा चित्रसेन की पराजय | वृषसेन के द्वारा द्रुपद की पराजय | प्रतिबिन्ध्य एवं दु:शासन का युद्ध | नकुल के द्वारा शकुनि की पराजय | शिखण्डी और कृपाचार्य का घोर युद्ध | धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य से युद्ध | धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुमसेन का वध | सात्यकि और कर्ण का युद्ध | कर्ण की दुर्योधन को सलाह | शकुनि का पांडव सेना पर आक्रमण | सात्यकि से दुर्योधन की पराजय | अर्जुन से शकुनि और उलूक की पराजय | धृष्टद्युम्न से कौरव सेना की पराजय | दुर्योधन के उपालम्भ से द्रोणाचार्य और कर्ण का घोर युद्ध | अर्जुन सहित भीमसेन का कौरवों पर आक्रमण | कर्ण द्वारा धृष्टद्युम्न एवं पांचालों की पराजय | कर्ण के पराक्रम से युधिष्ठिर की घबराहट | श्रीकृष्ण और अर्जुन का घटोत्कच को कर्ण के साथ युद्ध हेतु भेजना | घटोत्कच और जटासुरपुत्र अलम्बुष का घोर युद्ध | घटोत्कच द्वारा जटासुरपुत्र अलम्बुष का वध | घटोत्कच और उसके रथ आदि के स्वरूप का वर्णन | कर्ण और घटोत्कच का घोर संग्राम | अलायुध के स्वरूप और रथ आदि का वर्णन | भीमसेन और अलायुध का घोर युद्ध | घटोत्कच द्वारा अलायुध का वध और दुर्योधन का पश्चाताप | कर्ण द्वारा इन्द्रप्रदत्त शक्ति से घटोत्कच का वध | घटोत्कच वध से पांडवों का शोक तथा श्रीकृष्ण की प्रसन्नता | श्रीकृष्ण का अर्जुन को जरासंध आदि के वध करने का कारण बताना | कर्ण द्वारा अर्जुन पर शक्ति न छोड़ने के रहस्य का वर्णन | धृतराष्ट्र का पश्चाताप और संजय का उत्तर | युधिष्ठिर का शोक और श्रीकृष्ण तथा व्यास द्वारा उसका निवारण
द्रोणवध पर्व
| अर्जुन के कहने से उभयपक्ष के सैनिकों का सो जाना | उभयपक्ष के सैनिकों का चन्द्रोदय के बाद पुन: युद्ध में लग जाना | दुर्योधन का उपालम्भ और द्रोणाचार्य का व्यंग्यपूर्ण उत्तर | पांडव वीरों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण | द्रुपद के पौत्रों तथा द्रुपद और विराट आदि का वध | धृष्टद्युम्न की प्रतिज्ञा और दोनों दलों में घमासान युद्ध | युद्धस्थल की भीषण अवस्था का वर्णन | नकुल के द्वारा दुर्योधन की पराजय | दु:शासन और सहदेव का घोर युद्ध | कर्ण और भीमसेन का घोर युद्ध | द्रोणाचार्य और अर्जुन का घोर युद्ध | धृष्टद्युम्न का दु:शासन को हराकर द्रोणाचार्य पर आक्रमण | दुर्योधन और सात्यकि का संवाद तथा युद्ध | कर्ण और भीमसेन का संग्राम तथा अर्जुन का कौरवों पर आक्रमण | द्रोणाचार्य का घोर कर्म | ऋषियों का द्रोण को अस्त्र त्यागने का आदेश | अश्वत्थामा की मृत्यु सुनकर द्रोण की जीवन से निराशा | द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्न का घोर युद्ध | सात्यकि की शूरवीरता और प्रशंसा | उभयपक्ष के श्रेष्ठ महारथियों का परस्पर युद्ध | धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य पर आक्रमण और घोर युद्ध | द्रोणाचार्य का अस्त्र त्यागकर योगधारणा द्वारा ब्रह्मलोक गमन | धृष्टद्युम्न द्वारा द्रोणाचार्य के मस्तक का उच्छेद
नारायणास्त्र-मोक्षपर्व
| कौरव सैनिकों तथा सेनापतियों का भागना | कृपाचार्य का अश्वत्थामा को द्रोणवध का वृत्तान्त सुनाना | धृतराष्ट्र का प्रश्न | अश्वत्थामा के क्रोधपूर्ण उद्गार | अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्राकट्य | कौरव सेना का सिंहनाद सुनकर युधिष्ठिर का अर्जुन से कारण पूछना | अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा के क्रोध एवं गुरुहत्या के भीषण परिणाम का वर्णन | भीमसेन के वीरोचित उद्गार | धृष्टद्युम्न के द्वारा अपने कृत्य का समर्थन | सात्यकि और धृष्टद्युम्न का परस्पर क्रोधपूर्ण वाग्बाणों से लड़ना | भीम, सहदेव तथा युधिष्ठिर द्वारा सात्यकि और धृष्टद्युम्न को लड़ने से रोकना | अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्रयोग | नारायणास्त्र के प्रयोग से युधिष्ठिर का खेद | श्रीकृष्ण के बताये हुए उपाय से सैनिकों की रक्षा | भीम का वीरोचित उद्गार और उन पर नारायणास्त्र का प्रबल आक्रमण | श्रीकृष्ण का भीम को रथ से उतारकर नारायणास्त्र को शान्त करना | अश्वत्थामा का पुन: नारायणास्त्र के प्रयोग में असमर्थता बताना | अश्वत्थामा द्वारा धृष्टद्युम्न की पराजय | सात्यकि का दुर्योधन, कृपाचार्य, कृतवर्मा, कर्ण और वृषसेन को भगाना | सात्यकि का अश्वत्थामा से घोर युद्ध | अश्वत्थामा द्वारा मालव, पौरव और चेदिदेश के युवराज का वध | भीम और अश्वत्थामा का घोर युद्ध | अश्वत्थामा के आग्नेयास्त्र से एक अक्षौहिणी पांडव सेना का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन पर आग्नेयास्त्र का प्रभाव न होने से अश्वत्थामा की चिन्ता | व्यास का अश्वत्थामा को शिव और श्रीकृष्ण की महिमा बताना | व्यास का अर्जुन से शिव की महिमा बताना | द्रोण पर्व के पाठ और श्रवण का फल

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