- महाभारत द्रोण पर्व मेंं संशप्तकवध पर्व के अंतर्गत इक्कीसवें अध्याय मेंं 'संजय ने धृतराष्ट्र से द्रोणाचार्य के पराक्रम और उनके द्वारा सत्यजित, शतानीक, वसुदान तथा पांचालराजकुमार आदि का वध और पाण्डव-सेना की पराजय' का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है-[1]
विषय सूची
सत्यजित का पराक्रम
संजय कहते हैं– राजन! जब अत्यन्त भयंकर घोर युद्ध चल रहा था, उस समय शत्रुओं को मोहित करके द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर पर आक्रमण किया। तदनन्तर युधिष्ठिर ने द्रोण को अपने समीप आया देख एक निर्भय वीर की भाँति बाणों की बड़ी भारी वर्षा करके उन्हें रोक दिया। उस समय युधिष्ठिर की सेना में महान कोलाहल मच गया। जैसे विशाल सिंह हाथियों के यूथपतियों को पकड़ना चाहता हो, उसी प्रकार द्रोणाचार्य युधिष्ठिर को अपने काबू में करना चाहते थे। यह देख सत्यपराक्रमी शूरवीर सत्यजित युधिष्ठिर की रक्षा के लिये द्रोणाचार्य पर टूट पड़ा। फिर तो आचार्य और पांचाल राजकुमार दोनों महाबली वीर इन्द्र और बलि की भाँति उस सेना को विक्षुब्ध करते हुए आपस में जूझने लगे। सत्यपराक्रमी महाधनुर्धर सत्यजित ने अपने उत्तम अस्त्र का प्रदर्शन करते हुए तेज धार वाले एक बाण से द्रोणाचार्य को घायल कर दिया। फिर उनके सारथि पर सर्प विष एवं यमराज के समान भयंकर पाँच बाणों का प्रहार किया। उन बाणों की चोट से द्रोणाचार्य का सारथि मूर्च्छित हो गया। इसके बाद सत्यजित ने सहसा दस शीघ्रगामी बाणों द्वारा उनके घोड़ों को बींध डाला और कुपित होकर दोनों पृष्ठ-रक्षकों को भी दस-दस बाण मारे। तत्पश्चात् शत्रुसूदन सत्यजित ने अत्यन्त कुपित हो सेना के प्रमुख भाग में मण्डलाकार विचरते हुए अपने बाण द्वारा द्रोणाचार्य के ध्वज को भी काट डाला। तब शत्रुओं का दमन करने वाले द्रोणाचार्य ने युद्धस्थल में उसका वह पराक्रम देख मन-ही-मन समयोचित कर्तव्य का चिन्तन किया। तदनन्तर आचार्य द्रोण ने सत्यजित के बाण सहित धनुष को काटकर मर्मस्थल को विदीर्ण करने वाले दस पैने बाणों द्वारा उसे शीघ्र ही घायल कर दिया। राजन! धनुष कट जाने पर प्रतापी वीर सत्यजित ने शीघ्र ही दूसरा धनुष लेकर कंक की पँख से युक्त तीस बाणों द्वारा द्रोणाचार्य को गहरी चोट पहुँचायी।
उस युद्धस्थल में द्रोणाचार्य को सत्यजित के बाणों के ग्रास बनते देख पांचाल वीर वृक ने भी सैकड़ों पैने बाण मारकर द्रोणाचार्य को अत्यन्त पीड़ित कर दिया। राजन! महारथी द्रोणाचार्य को समरभूमि में बाणों द्वारा आच्छादित होते देख समस्त पाण्डव सैनिक गर्जने और वस्त्र हिलाने लगे। नरेश्वर! बलवान वृक ने अत्यन्त कुपित होकर द्रोणाचार्य की छाती में साठ बाण मारे। वह अद्भुत-सी बात थी। इस प्रकार बाण-वर्षा से आच्छादित होने पर महान वेगशाली महारथी द्रोण ने क्रोध से आँखें फाड़कर देखते हुए अपना विशेष वेग प्रकट किया।
द्रोणाचार्य के द्वारा सत्यजित का वध
आचार्य द्रोण ने सत्यजित और वृक दोनों के धनुष काटकर छ: बाणों द्वारा उन्होंने सारथि और घोड़ों सहित वृक को मार डाला। इतने में ही अत्यन्त वेगशाली दूसरा धनुष लेकर सत्यजित ने अपने बाणों द्वारा घोड़े, सारथि और ध्वज सहित द्रोणाचार्य को बींध डाला। संग्राम में पांचाल राजकुमार सत्यजित से पीड़ित होकर द्रोणाचार्य उसके पराक्रम को न सह सके। इसलिये तुरंत ही उसके विनाश के लिये उन्होंने बाणों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। द्रोण ने सत्यजित के घोड़ों, ध्वज, धनुष की मुष्टि तथा दोनों पार्श्व रक्षकों पर सहस्त्रों बाणों की वर्षा की। इस प्रकार बारंबार धनुषों के काटे जाने पर भी उत्तम अस्त्रों का ज्ञाता पांचालवीर सत्यजित लाल घोड़ों वाले द्रोणाचार्य से युद्ध करता ही रहा। उस महासमर में सत्यजित को प्रचण्ड होते देख द्रोणाचार्य ने अर्धचन्द्राकार बाण के द्वारा उस महामनस्वी वीर का मस्तक काट डाला।
उस महाबली महारथि पांचाल वीर के मारे जाने पर युधिष्ठिर द्रोणाचार्य से अत्यन्त भयभीत हो गये और वेगशाली घोड़ों से जुते हुए रथ के द्वारा युद्धस्थल से दूर चले गये। उस समय युधिष्ठिर की रक्षा के लिये पांचाल, केकय, मत्स्य, चेदि, कारुष और कोसल देशों के योद्धा द्रोणाचार्य को देखते ही उन पर टूट पड़े। तब शत्रुसमूहों का नाश करने वाले द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर को पकड़ने के लिये उन समस्त सैनिकों का उसी प्रकार संहार कर डाला, जैसे आग रूई के ढेर को जला देती है।[1]
द्रोणाचार्य का पराक्रम
उन समस्त सैनिकों को बार-बार बाणों की आग से दग्ध करते देख विराट के छोटे भाई शतानीक द्रोणाचार्य पर चढ़ आये। उन्होंने कारीगर के द्वारा स्वच्छ किये हुए सूर्य की किरणों के समान चमकीले छ: बाणों द्वारा सारथि और घोड़ों सहित द्रोणाचार्य को घायल करके बड़े जोर से गर्जना की। तत्पश्चात् दुष्कर पराक्रम करने की इच्छा से क्रूरतापूर्ण कर्म करने के लिये तत्पर हो उन्होंने महारथी द्रोणाचार्य पर सौ बाणों की वर्षा की। तब द्रोणाचार्य ने वहाँ गर्जना करते हुए शतानीक के कुण्डल सहित मस्तक को क्षुर नामक बाण द्वारा तुरंत ही धड़ से काट गिराया। यह देख मत्स्य देश के सैनिक भाग खड़े हुए। इस प्रकार भरद्वाजनन्दन द्रोणाचार्य ने मत्स्यदेशीय योद्धाओं को जीतकर चेदि, करूष, केकय, पांचाल, सृंजय तथा पाण्डव सैनिकों को भी बारंबार परास्त किया। जैसे प्रज्वलित अग्नि सारे वन को जला देती है, उसी प्रकार क्रोध में भरकर शत्रु की सेनाओं को दग्ध करते हुए सुवर्णमय रथ वाले वीर द्रोणाचार्य को देखकर सृंजयवंशी क्षत्रिय काँपने लगे। उत्तम धनुष लेकर शीघ्रतापूर्वक अस्त्र चलाने और शत्रुओं का वध करने वाले द्रोणाचार्य की प्रत्यंचा का शब्द सम्पूर्ण दिशाओं में सुनायी पड़ता था। शीघ्रतापूर्वक हाथ चलाने वाले द्रोणाचार्य के छोड़े हुए भयंकर सायक हाथियों, घोड़ों, पैदलों, रथियों और गजारोहियों को मथे डालते थे। जैसे हेमन्त ऋतु के अन्त में अत्यन्त गर्जना करता हुआ वायु युक्त मेघ पत्थरों की वर्षा करता है, उसी प्रकार द्रोणाचार्य शत्रुओं को भयभीत करते हुए उनके ऊपर बाणों की वर्षा करते थे। बलवान, शूरवीर, महाधनुर्धर और मित्रों को अभय प्रदान करने वाले द्रोणाचार्य सारी सेना में हलचल मचाते हुए सम्पूर्ण दिशाओं में विचर रहे थे। जैसे बादलों में बिजली चमकती है, उसी प्रकार अमित तेजस्वी द्रोणाचार्य के सुवर्णभूषित धनुष को हम सम्पूर्ण दिशाओं में चमकता हुआ देखते थे।[2]
भरतनन्दन! युद्ध में तीव्र वेग से विचरते हुए आचार्य द्रोण के ध्वज में जो वेदी का चिन्ह बना हुआ था, वह हमें हिमालय के शिखर की भाँति शोभायमान दिखायी देता था। जैसे देव-दानववन्दित भगवान विष्णु दैत्यों की सेना में भयानक संहार मचाते हैं, उसी प्रकार द्रोणाचार्य ने पाण्डव सेना में भारी मारकाट मचा रखी थी। उन शौर्यसम्पन्न, सत्यवादी, विद्वान, बलवान और सत्यपराक्रमी महानुभाव द्रोण ने उस युद्धस्थल में रक्त की भयंकर नदी बहा दी, जो प्रलयकाल की राशि के समान जान पड़ती थी। वह नदी भीरू पुरुषों को भयभीत करने वाली थी। उसमें कवच लहरें और ध्वजाएँ भँवरें थी। वह मनुष्यरूपी तटों को गिरा रही थी। हाथी और घोड़े उसके भीतर बड़े-बड़े़ ग्राहों के समान थे। तलवारें मछलियाँ थीं। उसे पार करना अत्यन्त कठिन था। वीरों की हड्डियाँ बालू और कंकड़-सी जान पड़ती थीं। वह देखने में बड़ी भयानक थी। ढोल और नगाड़े उसके भीतर कछुए-से प्रतीत होते थे। ढाल और कवच उसमें डोंगियों के समान तैर रहे थे। वह घोर नदी केशरूपी सेवार और घास से युक्त थी। बाण ही उसके प्रवाह थे। धनुष स्त्रोत के समान प्रतीत होते थे। कटी हुई भुजाएँ पानी के सर्पों के समान वहाँ भरी हुई थी। वह रणभूमि के भीतर तीव्र वेग से प्रवाहित हो रही थी। कौरव और सृंजय दोनों को वह नदी बहाये लिये जाती थी। मनुष्यों के मस्तक उसमें प्रस्तर-खण्ड का भ्रम उत्पन्न करते थे। शक्तियाँ मीन के समान थीं। गदाएँ नाक थीं। उष्णीष-वस्त्र[3] फेन के तुल्य चमक रहे थे। बिखरी हुई आँतें सर्पाकार प्रतीत होती थीं। वीरों का अपहरण करने वाली वह उग्र नदी मांस तथा रक्तरूपी कीचड़ से भरी थी। हाथी उसके भीतर ग्राह थे। ध्वजाएँ वृक्ष के तुल्य थीं। वह नदी क्षत्रियों को अपने भीतर डुबोने वाली थी। वहाँ क्रूरता छा रही थी। शरीर[4] ही उसमें उतरने के लिये घाट थे। योद्धागण मगर-जैसे जान पड़ते थे। उसको पार करना बहुत कठिन था। वह नदी लोगों को यमलोक में ले जाने वाली थी। मांसाहारी जन्तु उसके आस-पास डेरा डाले हुए थे। वहाँ कुत्ते और सियारों के झुंड जुटे हुए थे। उसके सब ओर महाभयंकर मांस-भक्षी पिशाच निवास करते थे।[2]
युधिष्ठिर सहित अन्य पांडव वीरों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण करना
समस्त सेनाओं को दग्ध करने वाले यमराज के समान भयंकर उदार महारथी द्रोणाचार्य पर कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर आदि सब वीर सब ओर से टूट पड़े। उन सभी शूरवीरों ने एक साथ आकर द्रोणाचार्य को सब ओर से उसी प्रकार घेर लिया, जैसे जगत को तपाने वाले भगवान सूर्य अपनी किरणों से घिरे रहते हैं। आपकी सेना के राजा और राजकुमारों ने अस्त्र-शस्त्र लेकर उन शौर्यसम्पन्न महाधनुर्धर द्रोणाचार्य को उनकी रक्षा के लिये सब ओर से घेर रखा था। उस समय शिखण्डी ने झुकी हुई गाँठ वाले पाँच बाणों द्वारा द्रोणाचार्य को बींध डाला। तत्पश्चात् क्षत्रवर्मा ने बीस, वसुदान ने पाँच, उत्तमौजा ने तीन, क्षत्रदेव ने सात, सात्यकि ने सौ, युधामन्यु ने आठ और युधिष्ठिर ने बारह बाणों द्वारा युद्धस्थल में द्रोणाचार्य को घायल कर दिया। धृष्टद्युम्न ने दस और चेकितान ने उन्हें तीन बाण मारे। तदनन्तर सत्यप्रतिज्ञ द्रोण ने मद की धारा बहाने वाले गजराज की भाँति रथ-सेना को लाँघकर दृढ़सेन को मार गिराया। फिर निर्भय-से प्रहार करते हुए राजा क्षेम के पास पहुँचकर उन्हें नौ बाणों से बींध डाला। उन बाणों से मारे जाकर वे रथ से नीचे गिर गये। यद्यपि वे शत्रुसेना के भीतर घुसकर सम्पूर्ण दिशाओं में विचर रहे थे, तथापि वे ही दूसरों के रक्षक थे, स्वयं किसी प्रकार किसी के रक्षणीय नहीं हुए। उन्होंने शिखण्डी को बारह और उत्तमौजा को बीस बाणों से घायल करके वसुदान को एक ही भल्ल से मारकर यमलोक भेज दिया। तत्पश्चात् क्षत्रवर्मा को अस्सी और सुदक्षिण को छब्बीस बाणों से आहत करके क्षत्रदेव को भल्ल से घायलकर रथ की बैठक से नीचे गिरा दिया।[5]
द्रोण के पराक्रम से पाडंव सेना में भय
युधामन्यु को चौसठ तथा सात्यकि को तीस बाणों से घायल करके सुवर्णमय रथ वाले द्रोणाचार्य राजा युधिष्ठिर की ओर दौड़े। तब राजाओं में श्रेष्ठ युधिष्ठिर गुरु के निकट से तीव्रगामी अश्वों द्वारा शीघ्र ही दूर चले गये और पांचाल देश का एक राजकुमार द्रोण का सामना करने के लिये आगे बढ़ आया। परंतु द्रोण ने धनुष, घोड़े और सारथि सहित उसे क्षत-विक्षत कर दिया। उनके द्वारा मारा गया वह राजकुमार आकाश से उल्का की भाँति रथ से भूमि पर गिर पड़ा। पांचालों का यश बढ़ाने वाले उस राजकुमार के मारे जाने पर वहाँ 'द्रोण को मार डालो, द्रोण को मार डालो' इस प्रकार महान कोलाहल होने लगा। इस प्रकार अत्यन्त क्रोध में भरे हुए पांचाल, मत्स्य, केकय, सृंजय और पाण्डव योद्धाओं को बलवान द्रोणाचार्य ने क्षोभ में डाल दिया। कौरवों से घिरे हुए द्रोणाचार्य ने युद्ध में सात्यकि, चेकितान, धृष्टद्युम्न, शिखण्डी, वृद्धक्षेम के पुत्र, चित्रसेन कुमार, सेनाबिन्दु तथा सुवर्चा-इन सबको तथा अन्य बहुत-से विभिन्न देशों के राजाओं को परास्त कर दिया। महाराज! आपके पुत्रों ने उस महासमर में विजय प्राप्त करके सब ओर भागते हुए पाण्डव-योद्धाओं को मारना आरम्भ किया। भरतनन्दन! इन्द्र के द्वारा मारे जाने वाले दानवों की भाँति महामना द्रोण की मार खाकर पांचाल, केकय और मत्स्य देश के सैनिक काँपने लगे।[5]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 21 श्लोक 1-24
- ↑ 2.0 2.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 21 श्लोक 25-45
- ↑ पगड़ी
- ↑ लाशें
- ↑ 5.0 5.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 21 श्लोक 46-65
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| कौरव-पांडव सेना का घोर युद्ध
| पांडवों के साथ दुर्योधन का संग्राम
| द्रोणाचार्य द्वारा बृहत्क्षत्र का वध
| द्रोणाचार्य द्वारा धृष्टकेतु का वध
| द्रोणाचार्य द्वारा जरासन्धपुत्र सहदेव तथा क्षत्रधर्मा का वध
| द्रोणाचार्य द्वारा चेकितान की पराजय
| अर्जुन और सात्यकि के प्रति युधिष्ठिर की चिन्ता
| युधिष्ठिर का भीमसेन को अर्जुन और सात्यकि का पता लगाने के लिए भेजना
| भीमसेन का कौरव सेना में प्रवेश
| भीमसेन द्वारा द्रोणाचार्य के सारथि सहित रथ को चूर्ण करना
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध
| भीमसेन का द्रोणाचार्य के रथ को आठ बार फेंकना
| भीमसेन की गर्जना सुनकर युधिष्ठिर का प्रसन्न होना
| भीमसेन और कर्ण का युद्ध तथा कर्ण की पराजय
| दुर्योधन का द्रोणाचार्य को उपालम्भ देना
| द्रोणाचार्य का दुर्योधन को द्यूत का परिणाम दिखाकर युद्ध हेतु वापस भेजना
| युधामन्यु तथा उत्तमौजा का दुर्योधन के साथ युद्ध
| भीमसेन द्वारा कर्ण की पराजय
| भीमसेन और कर्ण का घोर युद्ध
| भीमसेन द्वारा कर्ण के सारथि सहित रथ का विनाश
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुर्जय का वध
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुर्मुख का वध
| कर्ण-भीमसेन युद्ध में कर्ण का पलायन
| धृतराष्ट्र का खेदपूर्वक भीमसेन के बल का वर्णन और अपने पुत्रों की निन्दा
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के पाँच पुत्रों का वध
| भीमसेन और कर्ण का युद्ध तथा कर्ण का पलायन
| भीमसेन का पराक्रम तथा धृतराष्ट्र के सात पुत्रों का वध
| भीमसेन का कर्ण से युद्ध तथा दुर्योधन के सात भाइयों का वध
| भीमसेन और कर्ण का भयंकर युद्ध
| पहले भीम की और पीछे कर्ण की विजय
| अर्जुन के बाणों से व्यथित होकर कर्ण और अश्वत्थामा का पलायन
| सात्यकि द्वारा अलम्बुष का और दु:शासन के घोड़ों का वध
| सात्यकि का अद्भुत पराक्रम
| श्रीकृष्ण का अर्जुन को सात्यकि के आगमन की सूचना देना
| सात्यकि के आगमन से अर्जुन की चिन्ता
| भूरिश्रवा और सात्यकि का रोषपूर्ण सम्भाषण और युद्ध
| अर्जुन द्वारा भूरिश्रवा की भुजा का उच्छेद
| भूरिश्रवा का अर्जुन को उपालम्भ देना और अर्जुन का उत्तर
| भूरिश्रवा का आमरण अनशन
| सात्यकि द्वारा भूरिश्रवा का वध
| भूरिश्रवा द्वारा सात्यकि के अपमानित होने का कारण
| वृष्णिवंशी वीरों की प्रशंसा
| अर्जुन का जयद्रथ पर आक्रमण तथा दुर्योधन और कर्ण का वार्तालाप
| अर्जुन का कौरव योद्धाओं के साथ युद्ध
| कर्ण और अर्जुन का युद्ध तथा कर्ण की पराजय
| अर्जुन का अद्भुत पराक्रम
| अर्जुन द्वारा सिन्धुराज जयद्रथ का वध
| अर्जुन के बाणों से कृपाचार्य का मूर्छित होना तथा अर्जुन का खेद
| कर्ण और सात्यकि का युद्ध एवं कर्ण की पराजय
| अर्जुन का कर्ण को फटकारना और वृषसेन वध की प्रतिज्ञा
| श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रतिज्ञा पूर्ण होने पर बधाई देना
| श्रीकृष्ण का अर्जुन को रणभूमि का दृश्य दिखाते हुए युधिष्ठिर के पास जाना
| श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को अर्जुन की विजय का समाचार सुनाना
| युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति
| युधिष्ठिर द्वारा अर्जुन, भीम एवं सात्यकि का अभिनन्दन
| दुर्योधन का व्याकुल होकर द्रोणाचार्य को उपालम्भ देना
| द्रोणाचार्य का दुर्योधन को उत्तर और युद्ध के लिए प्रस्थान
| दुर्योधन और कर्ण की बातचीत तथा पुन: युद्ध का आरम्भ
घटोत्कचवध पर्व
कौरव-पांडव सेना का युद्ध
| दुर्योधन और युधिष्ठिर का संग्राम तथा दुर्योधन की पराजय
| रात्रियुद्ध में पांडव सैनिकों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण
| द्रोणाचार्य द्वारा शिबि का वध
| भीमसेन द्वारा ध्रुव, जयरात एवं कलिंग राजकुमार का वध
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुष्कर्ण और दुर्मद का वध
| सोमदत्त और सात्यकि का युद्ध तथा सोमदत्त की पराजय
| द्रोणाचार्य का पांडवों से घोर संग्राम
| घटोत्कच और अश्वत्थामा का युद्ध तथा अंजनपर्वा का वध
| अश्वत्थामा द्वारा एक अक्षौहिणी राक्षस सेना का संहार
| अश्वत्थामा का अद्भुत पराक्रम तथा द्रुपदपुत्रों का वध
| सोमदत्त की मूर्छा तथा भीमसेन द्वारा बाह्लीक का वध
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों और शकुनि के पाँच भाइयों का वध
| द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर के युद्ध में युधिष्ठिर की विजय
| दुर्योधन और कर्ण की बातचीत
| कृपाचार्य द्वारा कर्ण को फटकारना
| कर्ण द्वारा कृपाचार्य का अपमान
| अश्वत्थामा का कर्ण को मारने के लिये उद्यत होना
| पांडवों और पांचालों का कर्ण पर आक्रमण तथा कर्ण का पराक्रम
| अर्जुन द्वारा कर्ण की पराजय
| दुर्योधन का अश्वत्थामा से पांचालों के वध का अनुरोध
| अश्वत्थामा का दुर्योधन को उपालम्भपूर्ण आश्वासन तथा पांचालों से युद्ध
| अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न से युद्ध तथा उसका अद्भुत पराक्रम
| भीमसेन और अर्जुन का आक्रमण तथा कौरव सेना का पलायन
| सात्यकि द्वारा सोमदत्त का वध
| द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर का युद्ध
| श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को द्रोणाचार्य से दूर रहने का आदेश
| कौरवों और पांडवों की सेनाओं में प्रदीपों का प्रकाश
| कौरवों और पांडवों की सेनाओं का घमासान युद्ध
| दुर्योधन का द्रोणाचार्य की रक्षा हेतु सैनिकों को आदेश
| कृतवर्मा द्वारा युधिष्ठिर की पराजय
| सात्यकि द्वारा भूरि का वध
| घटोत्कच और अश्वत्थामा का घोर युद्ध
| भीम और दुर्योधन का युद्ध तथा दुर्योधन का पलायन
| कर्ण द्वारा सहदेव की पराजय
| शल्य द्वारा विराट के भाई शतानीक का वध और विराट की पराजय
| अर्जुन से पराजित होकर अलम्बुष का पलायन
| शतानीक के द्वारा चित्रसेन की पराजय
| वृषसेन के द्वारा द्रुपद की पराजय
| प्रतिबिन्ध्य एवं दु:शासन का युद्ध
| नकुल के द्वारा शकुनि की पराजय
| शिखण्डी और कृपाचार्य का घोर युद्ध
| धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य से युद्ध
| धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुमसेन का वध
| सात्यकि और कर्ण का युद्ध
| कर्ण की दुर्योधन को सलाह
| शकुनि का पांडव सेना पर आक्रमण
| सात्यकि से दुर्योधन की पराजय
| अर्जुन से शकुनि और उलूक की पराजय
| धृष्टद्युम्न से कौरव सेना की पराजय
| दुर्योधन के उपालम्भ से द्रोणाचार्य और कर्ण का घोर युद्ध
| अर्जुन सहित भीमसेन का कौरवों पर आक्रमण
| कर्ण द्वारा धृष्टद्युम्न एवं पांचालों की पराजय
| कर्ण के पराक्रम से युधिष्ठिर की घबराहट
| श्रीकृष्ण और अर्जुन का घटोत्कच को कर्ण के साथ युद्ध हेतु भेजना
| घटोत्कच और जटासुरपुत्र अलम्बुष का घोर युद्ध
| घटोत्कच द्वारा जटासुरपुत्र अलम्बुष का वध
| घटोत्कच और उसके रथ आदि के स्वरूप का वर्णन
| कर्ण और घटोत्कच का घोर संग्राम
| अलायुध के स्वरूप और रथ आदि का वर्णन
| भीमसेन और अलायुध का घोर युद्ध
| घटोत्कच द्वारा अलायुध का वध और दुर्योधन का पश्चाताप
| कर्ण द्वारा इन्द्रप्रदत्त शक्ति से घटोत्कच का वध
| घटोत्कच वध से पांडवों का शोक तथा श्रीकृष्ण की प्रसन्नता
| श्रीकृष्ण का अर्जुन को जरासंध आदि के वध करने का कारण बताना
| कर्ण द्वारा अर्जुन पर शक्ति न छोड़ने के रहस्य का वर्णन
| धृतराष्ट्र का पश्चाताप और संजय का उत्तर
| युधिष्ठिर का शोक और श्रीकृष्ण तथा व्यास द्वारा उसका निवारण
द्रोणवध पर्व
| अर्जुन के कहने से उभयपक्ष के सैनिकों का सो जाना
| उभयपक्ष के सैनिकों का चन्द्रोदय के बाद पुन: युद्ध में लग जाना
| दुर्योधन का उपालम्भ और द्रोणाचार्य का व्यंग्यपूर्ण उत्तर
| पांडव वीरों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण
| द्रुपद के पौत्रों तथा द्रुपद और विराट आदि का वध
| धृष्टद्युम्न की प्रतिज्ञा और दोनों दलों में घमासान युद्ध
| युद्धस्थल की भीषण अवस्था का वर्णन
| नकुल के द्वारा दुर्योधन की पराजय
| दु:शासन और सहदेव का घोर युद्ध
| कर्ण और भीमसेन का घोर युद्ध
| द्रोणाचार्य और अर्जुन का घोर युद्ध
| धृष्टद्युम्न का दु:शासन को हराकर द्रोणाचार्य पर आक्रमण
| दुर्योधन और सात्यकि का संवाद तथा युद्ध
| कर्ण और भीमसेन का संग्राम तथा अर्जुन का कौरवों पर आक्रमण
| द्रोणाचार्य का घोर कर्म
| ऋषियों का द्रोण को अस्त्र त्यागने का आदेश
| अश्वत्थामा की मृत्यु सुनकर द्रोण की जीवन से निराशा
| द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्न का घोर युद्ध
| सात्यकि की शूरवीरता और प्रशंसा
| उभयपक्ष के श्रेष्ठ महारथियों का परस्पर युद्ध
| धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य पर आक्रमण और घोर युद्ध
| द्रोणाचार्य का अस्त्र त्यागकर योगधारणा द्वारा ब्रह्मलोक गमन
| धृष्टद्युम्न द्वारा द्रोणाचार्य के मस्तक का उच्छेद
नारायणास्त्र-मोक्षपर्व
| कौरव सैनिकों तथा सेनापतियों का भागना
| कृपाचार्य का अश्वत्थामा को द्रोणवध का वृत्तान्त सुनाना
| धृतराष्ट्र का प्रश्न
| अश्वत्थामा के क्रोधपूर्ण उद्गार
| अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्राकट्य
| कौरव सेना का सिंहनाद सुनकर युधिष्ठिर का अर्जुन से कारण पूछना
| अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा के क्रोध एवं गुरुहत्या के भीषण परिणाम का वर्णन
| भीमसेन के वीरोचित उद्गार
| धृष्टद्युम्न के द्वारा अपने कृत्य का समर्थन
| सात्यकि और धृष्टद्युम्न का परस्पर क्रोधपूर्ण वाग्बाणों से लड़ना
| भीम, सहदेव तथा युधिष्ठिर द्वारा सात्यकि और धृष्टद्युम्न को लड़ने से रोकना
| अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्रयोग
| नारायणास्त्र के प्रयोग से युधिष्ठिर का खेद
| श्रीकृष्ण के बताये हुए उपाय से सैनिकों की रक्षा
| भीम का वीरोचित उद्गार और उन पर नारायणास्त्र का प्रबल आक्रमण
| श्रीकृष्ण का भीम को रथ से उतारकर नारायणास्त्र को शान्त करना
| अश्वत्थामा का पुन: नारायणास्त्र के प्रयोग में असमर्थता बताना
| अश्वत्थामा द्वारा धृष्टद्युम्न की पराजय
| सात्यकि का दुर्योधन, कृपाचार्य, कृतवर्मा, कर्ण और वृषसेन को भगाना
| सात्यकि का अश्वत्थामा से घोर युद्ध
| अश्वत्थामा द्वारा मालव, पौरव और चेदिदेश के युवराज का वध
| भीम और अश्वत्थामा का घोर युद्ध
| अश्वत्थामा के आग्नेयास्त्र से एक अक्षौहिणी पांडव सेना का संहार
| श्रीकृष्ण और अर्जुन पर आग्नेयास्त्र का प्रभाव न होने से अश्वत्थामा की चिन्ता
| व्यास का अश्वत्थामा को शिव और श्रीकृष्ण की महिमा बताना
| व्यास का अर्जुन से शिव की महिमा बताना
| द्रोण पर्व के पाठ और श्रवण का फल
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