विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीजो जैसिह तैसेहि उठ धायीं-2स्वर्गादि जो हैं वे धर्म से मिलते हैं; उनमें भी कोई शरीर से मिलता है, कोई मन से मिलता है। परंतु हमारे जैसा ईश्वर दुनिया में किसी ईश्वरवादी के पास नहीं है। हम चुनौती देकर बोल सकते हैं परंतु किसी धर्म पर आक्षेप नहीं करते हैं, भला! ना मुसलमान के पास ऐसा ईश्वर है, ना ईसाई के पास, ना बौद्ध के पास, न जैन के पास, न सिख के पास और न तो पारसी के पास! जो हैं वे माफ करें। हमारे पास ईश्वर, ऐसा ईश्वर है जो इन्द्रियों से मिलता है। इसको बोलते हैं- गोविन्द हमारे यहाँ तो जो अधिष्ठान है सोई अध्यस्त है। जिनके मत में केवल आश्रय ही आश्रय ब्रह्म है, उनके मत में इन्द्रियों से वह कैसे मिलेगा? निराकार-ही-निराकार है तो इंद्रियों से कैसे मिलेगा? अन्तर्यामी ही अन्तर्यामी है तो इंद्रियों से कैसे मिलेगा? जो इंद्रियातीत है वही इंद्रियाग्रह्या है- यह हमारा सिद्धांत है, बिलकुल वैदिक, औपनिषदिक, स बाह्याभ्यनतरोह्यजः बाहर भी वही, भीतर भी वही, गोविन्द माने यही है कि अरे! आओ, आओ! हम तुमको ऐसा ईश्वर देते हैं जिसको तुम आँख से खूब देख लो, नाक से सूँघ लो, त्वचा से छू लो, जीभ से चाट लो और कलेजे से लगा लो, और कान से सुन लो, उसकी नाक से नाक सटा लो, और उसकी साँस से साँस मिला लो, उसके शिर से शिर टकरा लो, ऐसा ईश्वर, ऐसा ईश्वर सिर्फ हमारे पास है। यह भागवत- धर्म की महिमा है। और जो लोग वेदान्त को ठीक-ठीक समझते हैं, केवल व्यतिरेक दृष्टि में जो फँसे हुए नहीं हैं कि ये नहीं- ये नहीं; जिनको अन्वय दृष्टि प्राप्त है, जिनको सर्वात्म-बोध है वे जानते हैं कि- यत्र यत्र मनो याति तत्र तत्र समाधयः। जहाँ-जहाँ मन जाता है वहाँ-वहाँ समाधि है; यद् यद् पश्यति चक्षुर्भ्यां तद् तद् ब्रह्म- आँख से जो-जो दिखता है सो ब्रह्म है। यह लो ब्रह्म- साँवरा ब्रह्म, सलोना ब्रह्म, सुरीला ब्रह्म, मुस्कानवाला ब्रह्म, चितवनवाला ब्रह्म, कुण्डलवाला ब्रह्म, बुलाकवाला ब्रह्म, तिलकवाला ब्रह्म, काले बादालों वाला ब्रह्म, मयूर मुकुटवाला, बाँसुरीवाला ब्रह्म, पीताम्बरवाला ब्रह्म, यह ब्रह्म, यह गोविन्द जिसका नाम है, इसने क्या किया? कि अपहृतात्मानः- गोविन्दापहृतात्मानो न न्यवर्तन्त मोहिताः । गोविन्द ने ऐसा ठगा महाराज। और ठग ही नहीं लिया, लूट लिया। अपहृत शब्द का अर्थ है लूट लिया। देखो- भगवान् को जब पालन-पोषण करना होता है तब राजकुमार बनते हैं और ज्ञानोपदेश करना हुआ तो ब्राह्मण बनते हैं- कपिल बन गये, दत्तात्रेय बन गये, व्यास बन गये, शुकदेव बन गए और जब लूटमार करना हुआ लोगों का मन लूटना हुआ, तो महाराज अहीर बन गये। यह अहीर का जो है न, वह कैसा है कि- कढ़ि गयो अबीर पै अहीर को कढ़ै ना- अबीर तो आँख से निकल भी जाय, पर यह अहीर आँख से नहीं निकलता। तो आओ-नारायण-गोविन्दापहृतात्मानः, लूटा भी क्या? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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