विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीजो जैसिह तैसेहि उठ धायीं-2कृष्ण के पास जाना धर्म नहीं है- यह दुनिया में कोई बोल नहीं सकता, वेद भी नहीं बोल सकता, श्रुति भी नहीं बोल सकती। बोले- नहीं, हमको छोड़कर जाना धर्म नहीं है। गोपी ने कहा- मैं जहाँ जा रही हूँ तुमको अपने साथ लिए जा रही हूँ, मुझे तुम वहाँ मिलोगे? कहकर गोपी भागी। ता वार्यमाणाः पितृभिः भ्रातृबन्धुभिः- पिता ने पकड़ा। पिता ने स्नेह और वात्सल्य से वारण किया। बोले-बेटी! रात के समय घर से बाहर नहीं जाना, कहीं बिच्छू न काट ले। पिता को शंका नहीं थी अपनी बेटी पर! यह नहीं समझो कि वह समझता था कि हमारी बेटी बाहर जाकर कहीं गलत काम करेगी। माँ- बाप प्रायः अपनी बेटी-बेटों पर इतना विश्वास करते हैं कि देखकर दंग रह जाना पड़ता है, और बेटी-बेटा हमेशा से ही माँ-बाप को धोखा देते आये हैं और माँ-बाप हमेशा से ही विश्वास करते आये हैं। तो, गोपी ने कहा- पिताजी, तुम्हारा आशीर्वाद, तुम्हारा स्नेह, तुम्हारा वात्सल्य हमारी रक्षा करेगा। जहाँ भी जायेंगी वहाँ हमारी रक्षा करेगा। भ्रातृबन्धुभिः- भाई आये; बोले-बहिन। अकेले-अकेले मत जाओ, मैं साथ चलूँ? गोपी बोली- अभी बोलो मत। बन्धुभिः माने परिवारवाले लोग आये, बोले अरे- सुनो, कहाँ जाती हो? पर वहाँ सुनने वाला कौन था। गोपी का चित्त तो गोविन्द ने चुरा लिया था। वह महाराज, चोर-जार शिखामणि, गोविन्द जिसका नाम है उसने गोपी का चित्त चुरा लिया था। असल में ‘गोपेन्द्र’ जो शब्द है, वही लौकिक व्याकरण से गोविन्द बनता है। वैदिक व्याकरण से गोविन्द बनता है। वैदिक व्याकरण से तो गोविन्द बनता है- इन्द्र का इन्द हो गया। गवीन्द्र-गवेन्द जैसे होता है न, वैसे गोविन्द हुआ। पर उसकी भी व्युत्पत्ति निकालें। गां विन्दति इति- गायों के पीछे-पीछे चलता है, इसलिए गोविन्द है। ‘गोभिः विहिते इति’ वेदवाणी के द्वारा प्राप्त होता है, इसलिए गोविन्द है। गोविन्द शब्द का बहुत मजेदार मतलब है। यह जो वेदान्तियों का ब्रह्म है वह तो स्वयं है, वह किसी से मिलता नहीं द्रष्टा जो है वह विवेक से मिलता है; बुद्धि से विवेक कर लो तो द्रष्टा जो है वह विवेक से मिलता है; बुद्धि से विवेक कर लो तो द्रष्टा मिलेगा। सगुण भगवान् जो है वह भक्ति से, प्रेम से मिलता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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