योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 120

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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उन्तीसवाँ अध्याय
महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व


इस प्रकार कई दिन तक लड़ाई होती रही और दोनों दलों के प्रसिद्ध क्षत्रिय जान की बाजी लगाकर मृत्यु के मुँह में जाते रहे। द्रोण कई दिन तक बड़ी वीरता तथा होशियारी से पाण्डव सेना का नाश करते रहे, परन्तु अंत में वे इतने घायल हो गये कि उनके हाथ से शस्त्र गिर गये और धृष्टद्युम्न ने उनका सिर काट डाला। द्रोण की मृत्यु से महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य समाप्त हुआ। दूसरा दृश्य क्या समाप्त हुआ मानो आधा भाग युद्ध ही समाप्त हुआ।

नोट- द्रोण की मृत्यु के संबंध में भी एक किंवदन्ती है जो वास्तव में पीछे से मिलाई हुई मालूम होती है। यह इस प्रकार है। द्रोण ने युद्ध में इस प्रकार के शस्त्र प्रयोग किये जिन्हें दूसरी ओर के लोग नहीं जानते थे और इसलिए वे इन शस्त्रों की मार से बचने की प्रणाली से भी अनभिज्ञ थे। परिणाम यह हुआ कि द्रोण ने पाण्डव सेना को अत्यन्त हानि पहुँचाई। इस हानि को देखकर श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को यह सलाह दी कि द्रोण को किसी-न-किसी प्रकार मारना चाहिए, चाहे इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कोई झूठी और अधर्म की चाल भी क्यों न चलनी पड़े। अतः उन्होंने यह सम्मति दी कि यदि द्रोण का पुत्र अश्वत्थामा मारा जाये तो वे लड़ना छोड़ देंगे। इसलिए झूठमूठ ही उनको यह खबर पहुँचा दी जाये कि अश्वत्थामा मर गया है।

अर्जुन और युधिष्ठिर ने इस सलाह को अस्वीकार किया, परन्तु भीम और अन्य दरबारियों को यह चाल बहुत पसन्द आई। उन्होंने युधिष्ठिर पर दबाव डाला कि वे स्वयं अपने मुख से यह कहें, क्योंकि उनके अतिरिक्त और किसी के कथन का द्रोण विश्वास नहीं करेंगे।

युधिष्ठिर ने बहुत कुछ संकोच किया परन्तु भीम इत्यादि ने उन पर बड़ा जोर डाला। अतः यह निश्चित करके अश्वत्थामा नाम के एक हाथी को मारा गया और द्रोण के आगे यह प्रकट किया गया कि तुम्हारा पुत्र अश्वत्थामा मर गया। द्रोण ने किसी के कहने पर इसका विश्वास नहीं किया और युधिष्ठिर से पूछा। युधिष्ठिर ने कहा कि "हाँ, अश्वत्थामा मारा गया" परन्तु धीरे से यह भी कह दिया-'हाथी'। द्रोण ने 'हाथी' तो सुना नहीं और अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार सुनकर अत्यन्त दुखित हुए। यद्यपि उसके बाद भी वे बराबर लड़ते रहे परन्तु दिल टूट जाने से दुःखित होकर उन्होंने शस्त्र डाल दिये। उनके शस्त्र डालते ही विपक्षियों ने उनका सिर काट डाला।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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