विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
तीसरा अध्याय
किशोरलीला
द्वितीय प्रकरण
अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन
अक्रूरकृत स्तुति
(अब पैरों में पड़कर दो श्लोकों से नमस्कार करते हैं-) चैतन्य- मूर्ति, सकल ज्ञानों के कारण, पुरुष को सुख-दुख देने वाले काल, कर्म, स्वभाव के भी ईश्वर अथवा नियन्ता, अनन्त शक्तिसंपन्न परिपूर्ण ब्रह्मरूप आपको नमस्कार है।।29।। हे हृषीकेश! हे वासुदेव! हे सकल प्राणियों के आश्रय, (नाश के उपरान्त निवास स्थान अर्थात् संकर्षण रूप) आपको नमस्कार है, हे प्रभो! मुझ शरणागत की रक्षा कीजिए।।30।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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प्रकरण | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
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