विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
तीसरा अध्याय
किशोरलीला
द्वितीय प्रकरण
अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन
अक्रूरकृत स्तुति
इस प्रकार इन्द्रियाधीन होकर भी मैं असाधु पुरुषों के लिए दुर्लभ आप परमेश्वर की शरण में आया हूँ। (शंका-इन्द्रिय-परतंत्र कैसे शरम में आ सकता है? समाधान-) हे ईश्वर! इसे भी मैं आपका अनुग्रह ही मानता हूँ। (शंका-साधुसंग से यह बात हो सकती है मेरी शरण में आने की क्या आवश्यकता है? समाधान-) जब आपके अनुग्रह से जीव के संसार की समाप्ति का समय आता है तब हे पद्मनाभ! आपके भक्तों की उपासना से आपकी ओर मति होती है। (भाव यह है कि तुम्हारी कृपा के बिना साधुओं का समागम नहीं मिलता है और साधु-समागम के बिना आप में बुद्धि नहीं होती है; यदि ऐसा न हुआ तो मुक्ति भी प्राप्त नहीं होती है)।।28।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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