भागवत स्तुति संग्रह पृ. 393

भागवत स्तुति संग्रह

चौथा अध्याय

द्वारकालीला
नवम् प्रकरण
देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार

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वसुदेवकृत स्तुति

 
एतन्नानाविधं विश्वमात्मसृष्टमधोक्षज।
आत्मनानुप्रविश्यात्मन्प्राणो जीवो बिभर्ष्यजः।।5।।

हे अधोक्षज! अपने ही में आप ही उत्पन्न किये गये देव, पशु और मनुष्यादिरूप इस जगत् में अंतर्यामीरूप से स्वयं प्रवेश करके जन्मादि विकाररहित होते हुए भी आप (क्रियाशक्ति रूप) प्राण और (ज्ञान शक्तिरूप) जीव होकर इसका धारण और पोषण करते हैं।।5।।

 
प्राणादीनां विश्वसृजां शक्तयो याः परस्य ताः।
पारतन्त्र्याद्वै सादृश्याद् द्वयोश्चष्टैव चेष्टताम्।।6।।

(शंका- यदि प्राणादि की विचित्र शक्तियाँ ही कारण हैं तो कारण होने से परमेश्वर को सर्वात्मक कैसे कहते हो? समाधान- प्राणादि का भी कारण परमेश्वर ही है) जगत को उत्पन्न करने वाले प्राणादि की जो शक्तियाँ हैं वह परमेश्वर की ही हैं, क्योंकि प्राणादि परतंत्र हैं- (जैसे बाण में स्वतः लक्ष्यवेधनशक्ति नहीं है किन्तु उसमें जो वेधनशक्ति आती है वह बाण चलाने वाले पुरुष की है। शंका-परमेश्वर के समान प्राण भी स्वतंत्र क्यों न समझा जाय? अर्थात भगवान और प्राणवर्ग को स्वतंत्र ही क्यों न समझा जाय? समाधान- ऐसा कहना ठीक नहीं, क्योंकि) दोनों में समानता नहीं है, प्राण जड़ है और ईश्वर चेतन है, इस कारण प्राण स्वतंत्र नहीं है, चेतन भगवान के अधीन है (शंका- प्राणादि में शक्ति न होने से उनमें क्रिया कैसे आती है? समाधान-) चेष्टा करने वाले की ही उनमें शक्ति होती है जैसे वायु की शक्ति से तिनके उड़ते हैं और मनुष्य की शक्ति से बाण में वेग आता है।।6।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भागवत स्तुति संग्रह
प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

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