विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
चौथा अध्याय
द्वारकालीला
षष्ठ प्रकरण
भगवान् का गार्हस्थ्य जीवन
बंदी राजाओं का प्रार्थनापत्र
हे अजित! हे चक्रधर! जरासन्ध ने आपके साथ हुए अठारह बार के युद्धों मे सतरह बार आपसे हार खायी, पश्चात अनन्त पराक्रमी स्वेच्छया मनुष्यलीला को स्वीकृत करने वाले आपको एक बार जीतकर वह घमण्ड में चूर हो गया है और आपकी प्रजा (हमलोगों)- को दुःख देता है, उससे हमारा उद्धार कीजिए।।30।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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प्रकरण | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
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