विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
चौथा अध्याय
द्वारकालीला
चतुर्थ प्रकरण
बाणासुर का अभिमान भंजन
रुद्रकृत स्तुति
(निर्गुण का बोध होना तो कठिन है ही किन्तु आपकी लीला से धारण किये गये इस ब्रह्माण्ड देह का भी ज्ञान नहीं हो सकता ऐसा कहने के लिए दो श्लोकों से विराट स्वरूप की स्तुति करते हैं-) आपकी नाभि आकाश है, मुख अग्नि है, वीर्य जल है, मस्तक स्वर्ग है, कान दिशायें हैं, चरण भूमि है, मन चंद्रमा है, चक्षु सूर्य है, आत्मा (अहंकार) मैं शिव हूँ, पेट समुद्र है और बाहु इन्द्र है, जिसके रोम औषधियाँ हैं, केश मेघ हैं, बुद्धि ब्रह्मा है, शिश्न प्रजापति है, हृदय धर्म है, ऐसे आप अवयवरूपी सब लोकों से वर्णन किये गये विराट् पुरुष हैं।।35-36।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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