विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
चौथा अध्याय
द्वारकालीला
चतुर्थ प्रकरण
बाणासुर का अभिमान भंजन
ज्वर तथा रुद्रकृत स्तुतियाँ
अनिरुद्ध गुप्तरीति से उषा के साथ रहन लगे। धीरे-धीरे द्वारपालों को यह विदित हो गया कि राजकुमारी के पास कोई पुरुष रहता है। उन्होंने अपना संदेह बाणासुर के पास जाकर निवेदन किया। यह वृत्तान्त सुनकर बाणासुर क्रोध से भरकर उषा के महल में गया और अनिरुद्ध को नागपाश में बाँधकर कारागृह में डाल दिया। यह हाल नारद जी से द्वारकावासियों ने सुना। तब भगवान कृष्ण तथा बलराम आदि ने बहुत से यादवों के साथ बाणासुर की राजधानी शोणितपुर पर चढ़ाई कर दी। बाणासुर की रक्षा करने के लिए भगवान शंकर उपस्थित हुए। और जब बाणासुर विशेष व्याकुल हुआ तो वे स्वयं भगवान से लड़ने लगे। बहुत देर तक घमासान युद्ध होने पर श्रीमहादेव जी ने भगवान पर माहेश्वर ज्वर छोड़ा। उसे भगवान ने वैष्णव ज्वर से परास्त कर दिया। तब माहेश्वर ज्वर ने भगवान की स्तुति की जो इस प्रकरण में लिखी है। भगवान ने उसको छोड़ दिया। व्यास भगवान कहते हैं कि इस स्तुति का पाठ करने से ज्वर की पीड़ा छूट जाती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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प्रकरण | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
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