भागवत स्तुति संग्रह पृ. 132

भागवत स्तुति संग्रह

दूसरा अध्याय

माधुर्यलीला
तृतीय प्रकरण
रास का आह्वान्

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नागपत्नियों द्वारा की हुई स्तुति


किन्तु भगवान तो माया के स्वामी हैं इस कारण वे उस समय भी स्वतंत्र थे। दूसरी उक्ति है ‘आत्मारामोऽप्यरीरमत्’[1] इन शब्दों से स्पष्ट प्रतीत होता है कि भगवान का असली स्वरूप अमनस्क है। यदि वे माया को स्वीकार न करें तो किस प्रकार रमण बनेगा? फिर यह भी विचारणीय बात है कि यहाँ पर कहा गया है कि भगवान ने दया से रमण किया। इससे स्पष्टतया विदित होता है कि यह रमण काम प्रेरित नहीं था। तीसरी उक्ति है ‘साक्षान्मन्मथमन्मथः’।[2] इस पद से यह बोधित होता है कि जो साक्षात् मन्मथ के भी मन्मथ हैं उनके काम के वश में होने की संभावना नहीं हो सकती। चौथी उक्ति है ‘आत्मन्यवरुद्धसौरतः’।[3] ये शब्द पूर्णतया स्पष्ट करते हैं कि शरद्-ऋतु की जिस रात्रि में वृन्दावन में भगवान श्रीकृष्ण जी ने कीड़ा की थी और जिसका आश्रय लेकर बहुत से प्राचीन, अर्वाचीन एवं वर्तमान कवियों के काव्यों में नाना प्रकार की कथाएं तथा रस वर्णित हैं उस रात्रि में रमण करते हुए भी भगवान् अवरुद्धवीर्य रहे अर्थात् काम के ऊपर विजय प्राप्त की।

उपर्युक्त विवेचन से प्रतीत होगा कि यह रासलीला श्रीमद्भागवत में एक अति उत्कृष्ट स्थल है। जिन महानुभावों ने ‘माधुर्य का[4]प्रादुर्भाव’ तथा ‘चीरहरणलीला’ के प्रकरणों का तात्पर्य समझ लिया उनको इस लीला का रहस्य समझने में सरलता होगी। कुछ महानुभावों का यह मत है कि यह रासलीला इस लोक की नहीं है।[5] इसका समर्थन उस लीला से किया जाता है कि जब भगवान् ने नन्द जी को वरुण लोक से छुड़ाया था जहाँ उनको वरुण के अनुचर इस कारण पकड़ ले गये थे कि उन्होंने यमुना में राक्षसी वेला में (रात्रि में) स्नान किया था। नन्द जी ने लौटकर गोपों से वरुणलोक के ऐश्वर्य का वर्णन किया था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भा. 10।29।42।
  2. भा. 10।30।2।
  3. भा. 10।33।26।
  4. ये महत्त्व के शब्द हैं, इनका अर्थ पण्डितवर श्रीधनपति सूरि ने गूढार्थदीपिका में इस प्रकार किया है- ‘चरमधातुर्न स्खलितो यस्येति कामविजयोक्तिः।’
  5. कल्याण मासिक पत्रिका का श्रीकृष्णांक।

संबंधित लेख

भागवत स्तुति संग्रह
प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

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