- महाभारत शल्य पर्व के अंतर्गत सातवें अध्याय में संजय ने श्रीकृष्ण के द्वारा युधिष्ठिर को शल्यवध हेतु उत्साहित करने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-
विषय सूची
श्रीकृष्ण द्वारा युधिष्ठिर को शल्यवध हेतु उत्साहित करना
संजय कहते हैं- मानद! भरतनन्दन! इस प्रकार आपकी सेनाओं में राजा शल्य का अभिषेक होने पर समस्त योद्धाओं को कर्ण के मारे जाने का थोड़ा-सा भी दुःख नहीं रह गया। वे सब-के-सब प्रसन्नचित्त होकर हर्ष से भर गये और यह मानने लगे कि कुन्ती के पुत्र मद्रराज शल्य के वश में पड़कर अवश्य ही मारे जायँगे। भरतश्रेष्ठ! आपकी सेना महान हर्ष पाकर उस रात में वहीं रही और सो गयी। उसके मन में बड़ा उत्साह था।[1] उस समय आपकी सेना का वह महान हर्षनाद सुनकर राजा युधिष्ठिर ने समस्त क्षत्रियों के सामने ही भगवान श्रीकृष्ण से कहा- माधव! धृतराष्ट्रपुत्र दुर्योधन ने समस्त सेनाओं द्वारा सम्मानित महाधनुर्धर मद्रराज शल्य को सेनापति बनाया है। माधव! वह यथार्थ रूप से जानकर आप जो उचित हो वैसा करें; क्योंकि आप ही हमारे नेता और संरक्षक हैं। इसलिये अब जो कार्य आवश्यक हो, उसका सम्पादन कीजिये। महाराज! तब भगवान श्रीकृष्ण ने राजा से कहा- भारत! मैं ऋतायनकुमार राजा शल्य को अच्छी तरह जानता हूँ। वे बलशाली, महातेजस्वी, महामनस्वी, विद्वान, विचित्र युद्ध करने वाले और शीघ्रतापूर्वक अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग करने वाले हैं। भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण- ये सब लोग युद्ध में जैसे पराक्रमी थे, वैसे ही या उनसे भी बढ़कर पराक्रमी मैं मद्रराज शल्य को मानता हूँ। भारत! नरेश्वर! मैं बहुत सोचने पर भी युद्धपरायण शल्य के अनुरूप दूसरे किसी योद्धा को नहीं पा रहा हूँ। भरतनन्दन! शिखण्डी, अर्जुन, भीम, सात्यकि और धृष्टद्युम्न से भी वे रणभूमि में अधिक बलशाली हैं।
मद्रराज! सिंह और हाथी के समान पराक्रमी मद्रराज शल्य प्रलयकाल में प्रजा पर कुपित हुए काल के समान निर्भय होकर रणभूमि में विचरेंगे। पुरुषसिंह! आपका पराक्रम सिंह के समान है। आज आपके सिवा युद्धस्थल में दूसरे को ऐसा नहीं देखता, जो शल्य के सम्मुख होकर युद्ध कर सके। कुरुनन्दन! देवताओं सहित इस सम्पूर्ण जगत में आपके सिवा दूसरा कोई ऐसा पुरुष नहीं है, जो रण में कुपित हुए मद्रराज शल्य को मार सके। इसलिये प्रतिदिन समरांगण में जूझते और आपकी सेना को विक्षुब्ध करते हुए राजा शल्य को युद्ध में आप उसी प्रकार मार डालिये, जैसे इन्द्र ने शम्बरासुर का वध किया था। वीर शल्य अजेय हैं। दुर्योधन ने उनका बड़ा सम्मान किया है। युद्ध में मद्रराज के मारे जाने पर निश्चय आपकी ही जीत होगी। महाराज! कुन्तीकुमार! उनके मारे जाने पर आप समझ लें कि दुर्योधन की सारी विशाल सेना ही मार डाली गयी। इस समय मेरी इस बात को सुनकर महारथी मद्रराज पर चढ़ाई कीजिये और महाबाहो! जैसे इन्द्र ने नमुचि का वध किया था, उसी प्रकार आप भी उन्हें मार डालिये। ये मेरे मामा हैं ऐसा समझकर आपको उन पर दया नहीं करनी चाहिये। आप क्षत्रिय धर्म को सामने रखते हुए मद्रराज शल्य को मार डालें। भीष्म, द्रोण और कर्णरूपी महासागर को पार करके आप अपने सेवकों सहित शल्यरूपी गाय की खुरी में न डूब जाइये।
राजन! आपका जो तपोबल और क्षात्रबल है, वह सब रणभूमि में दिखाईये और इन महारथी शल्य को मार डालिये। शत्रुवीरों का संहार करने वाले भगवान श्रीकृष्ण यह बात कहकर सांयकाल पाण्डवों से सम्मानित हो अपने शिविर में चले गये। श्रीकृष्ण के चले जाने पर उस समय धर्मपुत्र युधिष्ठिर ने अपने सब भाईयों तथा पांचालों और सोमकों को भी विदा करके रात में अंकुश रहित हाथी के समान शयन किया। वे सभी महाधनुर्धर पांचाल और पाण्डव-योद्धा कर्ण के मारे जाने से हर्ष में भरकर रात्रि में सुख की नींद सोये। माननीय नरेश! सूतपुत्र कर्ण के मारे जाने से विजय पाकर महान धनुष एवं विशाल रथों से सुशोभित पाण्डव सेना बहुत प्रसन्न हुई थी, मानो वह युद्ध से पार होकर निश्चिन्त हो गयी हो।[2]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
सम्बंधित लेख
महाभारत शल्य पर्व में उल्लेखित कथाएँ
शल्य और दुर्योधन वध के समाचार से धृतराष्ट्र का मूर्च्छित होना
| धृतराष्ट्र को विदुर द्वारा आश्वासन देना
| दुर्योधन के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप करना
| धृतराष्ट्र का संजय से युद्ध का वृत्तान्त पूछना
| कर्ण के मारे जाने पर पांडवों के भय से कौरव सेना का पलायन
| भीम द्वारा पच्चीस हज़ार पैदलों का वध
| अर्जुन द्वारा कौरवों की रथसेना पर आक्रमण
| दुर्योधन का अपने सैनिकों को समझाकर पुन: युद्ध में लगाना
| कृपाचार्य का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना
| दुर्योधन का कृपाचार्य को उत्तर देना
| दुर्योधन का संधि स्वीकर न करके युद्ध का ही निश्चय करना
| अश्वत्थामा का शल्य को सेनापति बनाने का प्रस्ताव
| दुर्योधन के अनुरोध पर शल्य का सेनापति पद स्वीकार करना
| शल्य के वीरोचित उद्गार
| श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को शल्यवध हेतु उत्साहित करना
| उभयपक्ष की सेनाओं का रणभूमि में उपस्थित होना
| कौरव-पांडवों की बची हुई सेनाओं की संख्या का वर्णन
| कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध
| पांडव वीरों के भय से कौरव सेना का पलायन
| नकुल द्वारा कर्ण के तीन पुत्रों का वध
| कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का भयानक युद्ध
| शल्य का पराक्रम
| कौरव-पांडव योद्धाओं के द्वन्द्वयुद्ध
| भीम के द्वारा शल्य की पराजय
| भीम और शल्य का भयानक गदा युद्ध
| दुर्योधन द्वारा चेकितान का वध
| दुर्योधन की प्रेरणा से कौरव सैनिकों का पांडव सेना से युद्ध
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| मद्रराज शल्य का अद्भुत पराक्रम
| अर्जुन और अश्वत्थामा का युद्ध
| अश्वत्थामा के द्वारा सुरथ का वध
| दुर्योधन और धृष्टद्युम्न का युद्ध
| शल्य के साथ नकुल और सात्यकि आदि का घोर युद्ध
| पांडव सैनिकों और कौरव सैनिकों का द्वन्द्वयुद्ध
| भीमसेन द्वारा दुर्योधन की पराजय
| युधिष्ठिर द्वारा शल्य की पराजय
| भीम द्वारा शल्य के घोड़े और सारथि का वध
| युधिष्ठिर के द्वारा शल्य का वध
| युधिष्ठिर के द्वारा शल्य के भाई का वध
| सात्यकि और युधिष्ठिर द्वारा कृतवर्मा की पराजय
| मद्रराज के अनुचरों का वध और कौरव सेना का पलायन
| पांडव सैनिकों द्वारा पांडवों की प्रशंसा और धृतराष्ट्र की निन्दा
| भीम द्वारा इक्कीस हज़ार पैदलों का संहार
| दुर्योधन का अपनी सेना को उत्साहित करना
| धृष्टद्युम्न द्वारा शाल्व के हाथी का वध
| सात्यकि द्वारा शाल्व का वध
| सात्यकि द्वारा क्षेमधूर्ति का वध
| कृतवर्मा का सात्यकि से युद्ध तथा उसकी पराजय
| दुर्योधन का पराक्रम
| कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घोर संग्राम
| कौरव पक्ष के सात सौ रथियों का वध
| उभय पक्ष की सेनाओं का मर्यादा शून्य घोर संग्राम
| शकुनि का कूट युद्ध और उसकी पराजय
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| अर्जुन द्वारा कौरव रथियों की सेना का संहार
| अर्जुन और भीम द्वारा कौरवों की रथसेना एवं गजसेना का संहार
| अश्वत्थामा आदि के द्वारा दुर्योधन की खोज
| सात्यकि द्वारा संजय का पकड़ा जाना
| भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध
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| अर्जुन के द्वारा सत्यकर्मा और सत्येषु का वध
| अर्जुन के द्वारा सुशर्मा का उसके पुत्रों सहित वध
| भीम के द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र सुदर्शन का अन्त
| सहदेव के द्वारा उलूक का वध
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| दुर्योधन का सरोवर में प्रवेश
| युयुत्सु का राजमहिलाओं के साथ हस्तिनापुर में जाना
गदा पर्व
अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा की सरोवर में दुर्योधन से बातचीत
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| कृपाचार्य आदि का सरोवर से दूर हट जाना
| युधिष्ठिर और श्रीकृष्ण की बातचीत
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| पांडव सैनिकों द्वारा भीम की स्तुति
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