मद्रराज के अनुचरों का वध और कौरव सेना का पलायन

महाभारत शल्य पर्व के अंतर्गत 18वें अध्याय में मद्रराज के अनुचरों का वध और कौरव सेना के पलायन होने का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

मद्रराज के अनुचरों का पांडवों पर आक्रमण करना

संजय कहते हैं- राजन! मद्रराज शल्य के मारे जाने पर उनके अनुगामी सात सौ वीर रथी विशाल कौरव सेना से निकल पड़े। उस समय दुर्योधन पर्वताकार हाथी पर आरूढ़ हो सिर पर छत्र धारण किये चामरों से वीजित होता हुआ वहाँ आया और न जाओ, न जाओ ऐसा कहकर उन मद्रदेशीय वीरों को रोकने लगा; परन्तु दुर्योधन के बारंबार रोकने पर भी वे वीर योद्धा युधिष्ठिर के वध की इच्छा से पाण्डवों की सेना में जा घुसे। महाराज! उन शूरवीरों ने युद्ध करने का दृढ़ निश्चय कर लिया था, अतः धनुष की गम्भीर टंकार करके पाण्डवों के साथ संग्राम आरम्भ कर दिया। शल्य मारे गये और मद्रराज का प्रिय करने में लगे हुए मद्रदेशीय महारथियों ने धर्मपुत्र युधिष्ठिर को पीड़ित कर रखा है; यह सुनकर कुन्तीपुत्र महारथी अर्जुन गाण्डीव धनुष की टंकार करते और रथ के गम्भीर घोष से सम्पूर्ण दिशाओं को परिपूर्ण करते हुए वहाँ आ पहुँचे।

पांडव योद्धाओं द्वारा मद्रराज के अनुचरों का वध

तदनन्तर अर्जुन, भीमसेन, माद्रीपुत्र पाण्डुकुमार नकुल, सहदेव, पुरुषसिंह सात्यकि, द्रौपदी के पाँचों पुत्र, धृष्टद्युम्न, शिखण्डी, पांचाल और सोमक वीर- इन सब ने युधिष्ठिर की रक्षा के लिये उन्हें चारों ओर से घेर लिया। युधिष्ठिर को सब ओर से घेरकर खडे़ हुए पुरुषप्रवर पाण्डव उस सेना को उसी प्रकार क्षुब्ध करने लगे, जैसे मगर समुद्र को। जैसे महावायु (आँधी) वृक्षों को हिला देती है, उसी प्रकार पाण्डव वीरों ने आपके सैनिकों को कम्पित कर दिया। राजन! जैसे पूर्वी हवा महानदी गंगा को क्षुब्ध कर देती है, उसी प्रकार उन सैनिकों ने पाण्डवों की सेना में भी हलचल मचा दी। वे बहुसंख्यक महामनस्वी मद्रमहारथी विशाल पाण्डव सेना को मथकर जोर-जोर से पुकार-पुकारकर कहने लगे कहाँ है वह राजा युधिष्ठिर? अथवा उसके वे शूरवीर भाई? वे सब यहाँ दिखायी क्यों नहीं देते? धृष्टद्युम्न, सात्यकि, द्रौपदी के सभी पुत्र, महापराक्रमी पांचाल और महारथी शिखण्डी-ये सब कहाँ हैं?। ऐसी बाते कहते हुए उन मद्रराज के अनुगामी वीर योद्धाओं को द्रौपदी के महारथी पुत्रों और सात्यकि ने मारना आरम्भ किया। समरांगण में आपके वे सैनिक शत्रुओं द्वारा मारा जाने लगे। कुछ योद्धा छिन्न-भिन्न हुए रथ के पहियों और कुछ कटे हुए विशाल ध्वजों के साथ ही धराशायी होते दिखायी देने लगे। राजन! भरतनन्दन! वे योद्धा युद्ध में सब ओर फैले हुए पाण्डवों को देखकर आपके पुत्र के मना करने पर भी वेगपूर्वक आगे बढ़ गये। दुर्योधन ने उन वीरों को सान्त्वना देते हुए बहुत मना किया, किंतु वहाँ किन्हीं महारथियों ने उनकी इस आज्ञा का पालन नहीं किया।

शकुनि और दुर्योधन का वार्तालाप

महाराज! तब प्रवचनपटु गान्धारराज पुत्र शकुनि ने दुर्योधन से यह बात कही- भारत! हम लोगों के देखते-देखते मद्रदेश की यह सेना क्यों मारी जाती है? तुम्हारे रहते ऐसा कदापि नहीं होना चाहिये। यह शपथ ली जा चुकी है कि हम सब लोग एक साथ होकर लडे़। नरेश्वर! ऐसी दशा शत्रुओं को अपनी सेना का संहार करते देखकर भी तुम क्‍यों सहन करते हो? दुर्योधन ने कहा- मैंने पहले ही इन्हें बहुत मना किया था, परन्तु इन लोगों ने मेरी बात नहीं मानी और पाण्डव सेना में घुसकर ये प्रायः सब-के-सब मारे गये।[1] शकुनि बोला- नरेश्वर! युद्धस्थल में रोषामर्ष के वशीभूत हुए वीर स्वामी की आज्ञा का पालन नहीं करते हैं; वैसी दशा में इन पर क्रोध करना उचित नहीं है। यह इनकी उपेक्षा करने का समय नहीं है। हम सब लोग एक साथ हो मद्रराज के महाधनुर्धर सेवकों की रक्षा के लिये हाथी, घोडे़ और रथसहित चलें तथा महान प्रयत्नपूर्वक एक दूसरे की रक्षा करें।[2]

मद्रराज के अनुचरों के वध से रणभूमि की स्थिति

संजय कहते हैं- राजन! ऐसा विचारकर सब लोग वहीं गये, जहाँ वे सैनिक मौजूद थे। शकुनि के कहने पर राजा दुर्योधन विशाल सेना के साथ सिंहनाद करता और पृथ्वी को कँपाता हुआ-सा आगे बढ़ा। भारत! उस समय आपकी सेना में मार डालो, घायल करो, पकड़ लो, प्रहार करो और टुकडे़-टुकडे़ कर डालो यह भयंकर शब्द गूँज रहा था रणभूमि में मद्रराज के सेवकों को एक साथ धावा करते देख पाण्डवों ने मध्यम गुल्म (सेना) का आश्रय ले उनका सामना किया। प्रजानाथ! वे मद्रराज के अनुगामी वीर रणभूमि में दो ही घड़ी के भीतर हाथों-हाथ मारे गये दिखायी दिये। वहाँ हमारे पहुँचते ही मद्रदेश के वे वेगशाली वीर काल के गाल में चले गये और शत्रुसैनिक अत्यन्त प्रसन्न हो एक साथ किलकारियाँ भरने लगे। सब ओर कबन्ध खडे़ दिखायी दे रहे थे और सूर्यमण्डल के बीच से वहाँ बड़ी भारी उल्का गिरी। टूटे-फुटे रथों, जूओं और घुरों से, मारे गये महारथियों से तथा धराशायी हुए घोड़ों से भूमि ढक गयी थी। महाराज! वहाँ समरांगण में बहुत-से योद्धा जूए में बँधे हुए वायु के समान वेगशाली घोड़ों द्वारा इधर-उधर ले जाये जाते दिखायी देते थे। कुछ घोड़े रणभूमि में टूटे पहियों वाले रथों को लिये जा रहे थे और कितने ही अश्व आधे ही रथ को लेकर दसों दिशाओं में चक्कर लगाते थे। जहाँ-तहाँ जोतों से जुड़े हुए घोडे़ और नरश्रेष्ठ रथी गिरते दिखायी दे रहे थे, मानो सिद्ध (पुण्यात्मा) पुरुष पुण्यक्षय होने पर आकाश से पृथ्वी पर गिर पड़े हों।

भयभीत होकर कौरव सेना का पलायन करना

मद्रराज के उन शूरवीर सैनिकों के मारे जाने पर हमें आक्रमण करते देख विजय की अभिलाषा रखने वाले महारथी पाण्डव-योद्धा शंखध्वनि के साथ बाणों की सनसनाहट फैलाते हुए हमारा सामना करने के लिये बड़े वेग से आये। हमारे पास पहुँचकर लक्ष्य वेधने में सफल हो प्रहारकुशल पाण्डव-सैनिक अपने धनुष हिलाते हुए जोर-जोर से सिंहनाद करने लगे। मद्रराज की वह विशाल सेना मारी गयी तथा शूरवीर मद्रराज शल्य पहले ही समरभूमि में धराशायी किये जा चुके हैं, यह सब अपनी आँखों देखकर दुर्योधन की सारी सेना पुनः पीठ दिखाकर भाग चली। महाराज! विजय से उल्लसित होने वाले दृढ़ धनुर्धर पाण्डवों की मार खाकर कौरव सेना घबरा उठी और भ्रान्त-सी होकर सम्पूर्ण दिशाओं में भागने लगी।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 18 श्लोक 1-21
  2. 2.0 2.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 18 श्लोक 22-40

सम्बंधित लेख

महाभारत शल्य पर्व में उल्लेखित कथाएँ


शल्य और दुर्योधन वध के समाचार से धृतराष्ट्र का मूर्च्छित होना | धृतराष्ट्र को विदुर द्वारा आश्वासन देना | दुर्योधन के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप करना | धृतराष्ट्र का संजय से युद्ध का वृत्तान्त पूछना | कर्ण के मारे जाने पर पांडवों के भय से कौरव सेना का पलायन | भीम द्वारा पच्चीस हज़ार पैदलों का वध | अर्जुन द्वारा कौरवों की रथसेना पर आक्रमण | दुर्योधन का अपने सैनिकों को समझाकर पुन: युद्ध में लगाना | कृपाचार्य का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना | दुर्योधन का कृपाचार्य को उत्तर देना | दुर्योधन का संधि स्वीकर न करके युद्ध का ही निश्चय करना | अश्वत्थामा का शल्य को सेनापति बनाने का प्रस्ताव | दुर्योधन के अनुरोध पर शल्य का सेनापति पद स्वीकार करना | शल्य के वीरोचित उद्गार | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को शल्यवध हेतु उत्साहित करना | उभयपक्ष की सेनाओं का रणभूमि में उपस्थित होना | कौरव-पांडवों की बची हुई सेनाओं की संख्या का वर्णन | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध | पांडव वीरों के भय से कौरव सेना का पलायन | नकुल द्वारा कर्ण के तीन पुत्रों का वध | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का भयानक युद्ध | शल्य का पराक्रम | कौरव-पांडव योद्धाओं के द्वन्द्वयुद्ध | भीम के द्वारा शल्य की पराजय | भीम और शल्य का भयानक गदा युद्ध | दुर्योधन द्वारा चेकितान का वध | दुर्योधन की प्रेरणा से कौरव सैनिकों का पांडव सेना से युद्ध | युधिष्ठिर और माद्रीपुत्रों के साथ शल्य का युद्ध | मद्रराज शल्य का अद्भुत पराक्रम | अर्जुन और अश्वत्थामा का युद्ध | अश्वत्थामा के द्वारा सुरथ का वध | दुर्योधन और धृष्टद्युम्न का युद्ध | शल्य के साथ नकुल और सात्यकि आदि का घोर युद्ध | पांडव सैनिकों और कौरव सैनिकों का द्वन्द्वयुद्ध | भीमसेन द्वारा दुर्योधन की पराजय | युधिष्ठिर द्वारा शल्य की पराजय | भीम द्वारा शल्य के घोड़े और सारथि का वध | युधिष्ठिर के द्वारा शल्य का वध | युधिष्ठिर के द्वारा शल्य के भाई का वध | सात्यकि और युधिष्ठिर द्वारा कृतवर्मा की पराजय | मद्रराज के अनुचरों का वध और कौरव सेना का पलायन | पांडव सैनिकों द्वारा पांडवों की प्रशंसा और धृतराष्ट्र की निन्दा | भीम द्वारा इक्कीस हज़ार पैदलों का संहार | दुर्योधन का अपनी सेना को उत्साहित करना | धृष्टद्युम्न द्वारा शाल्व के हाथी का वध | सात्यकि द्वारा शाल्व का वध | सात्यकि द्वारा क्षेमधूर्ति का वध | कृतवर्मा का सात्यकि से युद्ध तथा उसकी पराजय | दुर्योधन का पराक्रम | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घोर संग्राम | कौरव पक्ष के सात सौ रथियों का वध | उभय पक्ष की सेनाओं का मर्यादा शून्य घोर संग्राम | शकुनि का कूट युद्ध और उसकी पराजय | अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से दुर्योधन के दुराग्रह की निन्दा | अर्जुन द्वारा कौरव रथियों की सेना का संहार | अर्जुन और भीम द्वारा कौरवों की रथसेना एवं गजसेना का संहार | अश्वत्थामा आदि के द्वारा दुर्योधन की खोज | सात्यकि द्वारा संजय का पकड़ा जाना | भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध | भीम के द्वारा कौरवों की चतुरंगिणी सेना का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन के द्वारा सत्यकर्मा और सत्येषु का वध | अर्जुन के द्वारा सुशर्मा का उसके पुत्रों सहित वध | भीम के द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र सुदर्शन का अन्त | सहदेव के द्वारा उलूक का वध | सहदेव के द्वारा शकुनि का वध
ह्रदप्रवेश पर्व
बची हुई समस्त कौरव सेना का वध | संजय का क़ैद से छूटना | दुर्योधन का सरोवर में प्रवेश | युयुत्सु का राजमहिलाओं के साथ हस्तिनापुर में जाना
गदा पर्व
अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा की सरोवर में दुर्योधन से बातचीत | युधिष्ठिर का सेना सहित सरोवर पर जाना | कृपाचार्य आदि का सरोवर से दूर हट जाना | युधिष्ठिर और श्रीकृष्ण की बातचीत | सरोवर में छिपे दुर्योधन के साथ युधिष्ठिर का संवाद | युधिष्ठिर के कहने से दुर्योधन का सरोवर से बाहर आना | दुर्योधन का किसी एक पांडव से गदायुद्ध हेतु तैयार होना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को फटकारना | श्रीकृष्ण द्वारा भीमसेन की प्रशंसा | भीम और दुर्योधन में वाग्युद्ध | बलराम का आगमन और सम्मान | भीम और दुर्योधन के युद्ध का आरम्भ | बलदेव की तीर्थयात्रा | प्रभासक्षेत्र के प्रभाव तथा चंद्रमा के शापमोचन की कथा | उदपान तीर्थ की उत्पत्ति तथा त्रित मुनि के कूप में गिरने की कथा | त्रित मुनि का यज्ञ | त्रित मुनि का अपने भाइयों का शाप देना | वैशम्पायन द्वारा विभिन्न तीर्थों का वर्णन | नैमिषारण्य तीर्थ का वर्णन | बलराम का सप्त सारस्वत तीर्थ में प्रवेश | सप्तसारस्वत तीर्थ की उत्पत्ति | मंकणक मुनि का चरित्र | औशनस एवं कपालमोचन तीर्थ की माहात्म्य कथा | रुषंगु के आश्रम पृथूदक तीथ की महिमा | आर्ष्टिषेण एवं विश्वामित्र की तपस्या तथा वरप्राप्ति | अवाकीर्ण तीर्थ की महिमा और दाल्भ्य की कथा | यायात तीर्थ की महिमा और ययाति के यज्ञ का वर्णन | वसिष्ठापवाह तीर्थ की उत्पत्ति | ऋषियों के प्रयत्न से सरस्वती नदी के शाप की निवृत्ति | सरस्वती नदी के जल की शुद्धि | अरुणासंगम में स्नान से राक्षसों और इन्द्र का संकटमोचन | कुमार कार्तिकेय का प्राकट्य | कुमार कार्तिकेय के अभिषेक की तैयारी | स्कन्द का अभिषेक | स्कन्द के महापार्षदों के नाम, रूप आदि का वर्णन | स्कन्द की मातृकाओं का परिचय | स्कन्द देव की रणयात्रा | स्कन्द द्वारा तारकासुर, महिषासुर आदि दैत्यों का सेनासहित संहार | वरुण का अभिषेक | अग्नितीर्थ, ब्रह्मयोनि और कुबेरतीर्थ की उत्पत्ति का प्रसंग | श्रुतावती और अरुन्धती के तप की कथा | इन्द्रतीर्थ, रामतीर्थ, यमुनातीर्थ और आदित्यतीर्थ की महिमा | असित देवल तथा जैगीषव्य मुनि का चरित्र | दधीच ऋषि तथा सारस्वत मुनि के चरित्र का वर्णन | वृद्ध कन्या का चरित्र | वृद्ध कन्या का शृंगवान से विवाह तथा स्वर्गगमन | ऋषियों द्वारा कुरुक्षेत्र की सीमा और महिमा का वर्णन | प्लक्षप्रस्रवण आदि तीर्थों तथा सरस्वती की महिमा | बलराम का नारद से कौरवों के विनाश का समाचार सुनना | भीम-दुर्योधन का युद्ध देखने के लिए बलराम का जाना | बलराम की सलाह से सबका कुरुक्षेत्र के समन्तपंचक तीर्थ में जाना | समन्तपंचक तीर्थ में भीम और दुर्योधन में गदायुद्ध की तैयारी | दुर्योधन के लिए अपशकुन | भीमसेन का उत्साह | भीम और दुर्योधन का वाग्युद्ध | भीम और दुर्योधन का गदा युद्ध | कृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन के संकेत से भीम द्वारा दुर्योधन की जाँघें तोड़ना | दुर्योधन के धराशायी होने पर भीषण उत्पात प्रकट होना | भीमसेन द्वारा दुर्योधन का तिरस्कार | युधिष्ठिर का भीम को अन्याय करने से रोकना | युधिष्ठिर का दुर्योधन को सान्त्वना देते हुए खेद प्रकट करना | क्रोधित बलराम को कृष्ण का समझाना | युधिष्ठिर के साथ कृष्ण और भीम की बातचीत | पांडव सैनिकों द्वारा भीम की स्तुति | कृष्ण के आक्षेप पर दुर्योधन का उत्तर | कृष्ण द्वारा पांडवों का समाधान | पांडवों का कौरव शिबिर में पहुँचना | अर्जुन के रथ का दग्ध होना | पांडवों का कृष्ण को हस्तिनापुर भेजना | कृष्ण का हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र और गांधारी को आश्वासन देना | कृष्ण का पांडवों के पास लौटना | दुर्योधन का संजय के सम्मुख विलाप | दुर्योधन का वाहकों द्वारा अपने साथियों को संदेश भेजना | दुर्योधन को देखकर अश्वत्थामा का विषाद एवं प्रतिज्ञा करना | अश्वत्थामा का सेनापति पद पर अभिषेक

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः