पांडव सैनिकों द्वारा पांडवों की प्रशंसा और धृतराष्ट्र की निन्दा

महाभारत शल्य पर्व के अंतर्गत 19वें अध्याय में पांडव सैनिकों द्वारा पांडवों की प्रशंसा और धृतराष्ट्र की निन्दा का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

शल्य के वध से कौरव सेना का भयभीत होना

संजय कहते हैं- राजन! दुर्जय महारथी मद्रराज शल्य के मारे जाने पर आपके सैनिक और पुत्र प्रायः संग्राम से विमुख हो गये। महाराज! जैसे अगाध महासागर में नाव टूट जाने पर उस नौका रहित अपार समुद्र से पार जाने की इच्छा वाले व्यापारी व्याकुल हो उठते हैं, उसी प्रकार महात्मा युधिष्ठिर के द्वारा शूरवीर मद्रराज शल्य के मारे जाने पर आपके सैनिक बाणों से क्षत-विक्षत एवं भयभीत हो बड़ी घबराहट में पड़ गये।। वे अपने को अनाथ समझते हुए किसी नाथ (सहायक) की इच्छा रखते थे और सिंह के बताये हुए मृगों, टूटे सींग वाले साँड़ों तथा जीर्ण-शीर्ण दाँतों वाले हाथियों के समान असमर्थ हो गये थे। राजन! अजाताशत्रु युधिष्ठिर से पराजित हो दोपहर के समय हम लोग युद्ध से भाग चले थे। शल्य के मारे जाने से किसी भी योद्धा के मन में सेनाओं को संगठित करने तथा पराक्रम दिखाने का उत्साह नहीं होता था।

भारत! प्रजानाथ! भीष्म, द्रोण और सूतपुत्र कर्ण के मारे जाने पर आपके योद्धाओं को जो दुःख और भय प्राप्त हुआ था, वही भय और वही शोक पुनः (शल्य के मारे जाने पर) हमारे सामने उपस्थित हुआ। जिनके प्रमुख वीर मारे गये थे, वे कौरव-सैनिक महारथी शल्य का वध हो जाने पर पैने बाणों से क्षत-विक्षत और विध्वस्त हो विजय की ओर से निराश हो गये थे। राजन! मद्रराज की मृत्यु हो जाने पर आपके वे सभी योद्धा भय के मारे भागने लगे। कुछ सैनिक घोड़ों पर, कुछ हाथियों पर और दूसरे महारथी रथों पर आरूढ़ हो बड़े वेग से भागे। पैदल सैनिक भी वहाँ से भाग खडे़ हुए। दो हजार प्रहारकुशल पर्वताकार मतवाले हाथी शल्य के मारे जाने पर अंकुशों और पैर के अँगूठों से प्रेरित हो तीव्र गति से पलायन करने लगे। भरतश्रेष्ठ! आपके वे सैनिक रणभूमि में सम्पूर्ण दिशाओं की ओर भागे थे। हमने देखा, वे बाणों से क्षत-विक्षत हो हाँफते हुए दौडे़ जा रहे हैं। उन्हें हतोत्साह, पराजित एवं हताश होकर भागते देख विजय की अभिलाषा रखने वाले पांचाल और पाण्डव उनका पीछा करने लगे। बाणों की सनसनाहट, शूरवीरों का सिंहनाद और शंखध्वनि इन सबकी मिली-जूली आवाज बड़ी भयानक जान पड़ती थी।

पांडव सैनिकों द्वारा पांडवों की प्रशंसा और धृतराष्ट्र की निन्दा करना

कौरव-सेना को भय से संत्रस्त होकर भागती देख पाण्डवों सहित पांचाल योद्धा आपस में इस प्रकार वार्तालाप करने लगे। आज सत्यपरायण राजा युधिष्ठिर शत्रुहीन हो गये और आज दुर्योधन अपनी देदीप्यमान राजलक्ष्मी से भ्रष्ट हो गया। आज राजा धृतराष्ट्र अपने पुत्र को मारा गया सुनकर व्याकुल हो पृथ्वी पर पछाड़ खाकर गिरें और दुःख भोगें। आज वे समझ ले कि कुन्तीपुत्र अर्जुन सम्पूर्ण धनुर्धरों में श्रेष्ठ एवं सामर्थ्‍यशाली हैं। आज पापाचारी दुर्बुद्धि धृतराष्ट्र अपनी भरपेट निंदा करें और विदुर जी ने जो सत्य एवं हितकर वचन कहे थे, उन्हें याद करें। आज जो स्वयं ही दासतुल्य होकर कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर की परिचर्या करते हुए अच्छी तरह समझ लें कि पाण्डवों ने पहले कितना कष्ट उठाया था? आज राजा धृतराष्ट्र अनुभव करें कि भगवान श्रीकृष्ण का कैसा माहात्म्य है और आज वे यह भी जान लें कि युद्धस्थल में अर्जुन के गाण्डीव धनुष की टंकार कितनी भयंकर है? उनके अस्त्र-शस्त्रों की सारी शक्ति कैसी है तथा रणभूमि में उनकी दोनों भुजाओं का बल कितना अद्भुत है?[1]

जैसे इन्द्र ने असुरों की सेना का संहार किया था, उसी प्रकार युद्ध में भीमसेन के हाथ से दुर्योधन के मारे जाने पर आज धृतराष्ट्र को यह ज्ञात हो जायगा कि महामनस्वी भीम का बल कैसा भयंकर है! दुःशासन के वध के समय भीमसेन ने जो कुछ किया था, उसे महाबली भीमसेन के सिवा इस संसार में कोई नहीं कर सकता। देवताओं के लिये भी दुःसह मद्रराज शल्य के वध का वृत्तान्त सुनकर आज धृतराष्ट्र ज्येष्ठ पाण्डव युधिष्ठिर के पराक्रम को भी अच्छी तरह जान लें। आज संग्राम में सुबल पुत्र वीर शकुनि तथा दूसरे समस्त प्रमुख वीरेां के मारे जाने पर उन्हें शत्रु के लिये अत्यन्त दुःसह माद्रीकुमार नकुल-सहदेव की शक्ति का भी ज्ञान हो जायगा। जिनकी ओर से युद्ध करने वाले धनंजय, सात्यकि, भीमसेन, द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न, द्रौपदी के पाँचों पुत्र, माद्रीकुमार पाण्डुनन्दन नकुल-सहदेव, महाधनुर्धर शिखण्डी तथा स्वयं राजा युधिष्ठिर जैसे वीर हैं, उनकी विजय कैसे न हो? सम्पूर्ण जगत के स्वामी जनार्दन श्रीकृष्ण जिनके रक्षक हैं और जिन्हें धर्म का आश्रय प्राप्त है, उनकी विजय क्यों न हो?। कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर के सिवा दूसरा कौन ऐसा राजा है जो रणभूमि में भीष्म-द्रोण, कर्ण, मद्रराज शल्य तथा अन्य सैकड़ों-हजारों नरपतियों पर विजय प्राप्त कर सके। सदा सत्य और यश के सागर भगवान श्रीकृष्ण जिनके स्वामी एवं रक्षक हैं, उन्हीं को वह सफलता प्राप्त हो सकती है। इस तरह की बाते करते हुए सृंजयवीर अत्यन्त हर्ष में भरकर आपके भागते हुए योद्धाओं का पीछा करने लगे।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 19 श्लोक 1-20
  2. महाभारत शल्य पर्व अध्याय 19 श्लोक 21-40

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