कृतवर्मा का सात्यकि से युद्ध तथा उसकी पराजय

महाभारत शल्य पर्व के अंतर्गत 21वें अध्याय में कृतवर्मा का सात्यकि से युद्ध तथा उसकी पराजय का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

सात्यकि और कृतवर्मा का द्वैरथ युद्ध

संजय कहते हैं- राजन! तीखें बाणों की वर्षा करते हुए शिनि-पौत्र महाबाहु सात्यकि को आते देख बुद्धिमान कृतवर्मा बड़े वेग से उनका सामना करने के लिये आ पहुँचा। फिर तो उत्तम अस्त्र-शस्त्र धारण करने वाले, रथियों में श्रेष्ठ, महापराक्रमी, धनुर्धर वीर सात्वतवंशी सात्यकि और कृतवर्मा एक दूसरे पर धावा करने लगे। उन दोनों के घोर संग्राम में पांचालों सहित पाण्डव और दूसरे नृपश्रेष्ठ योद्धा दर्शक होकर तमाशा देखने लगे। वृष्णि और अंधकवंश के वे दोनों वीर महारथी हर्ष में भरकर लड़ते हुए दो हाथियों के समान एक दूसरे पर नाराचों और वत्सदन्तों का प्रहार करने लगे। कृतवर्मा और सात्यकि दोनों नाना प्रकार के पैंतरे दिखाते हुए विचरते थे और बारंबार बाणों की वर्षा करके वे एक दूसरे को अदृश्य कर देते थे। वृष्णिवंश के उन दोनों सिंहों के धनुष के वेग और बल से चलाये हुए शीघ्रगामी बाणों को हम आकाश में छिपाये हुए टिड्डीदलों के समान देखते थे। कृतवर्मा अद्वितीय वीर सत्यपराक्रमी सात्यकि के पास पहुँचकर चार पैने बाणों से उनके चारों घाड़ों को घायल कर दिया। तब महाबाहु सात्यकि ने अंकुशों की चोट खाये हुए गजराज के समान अत्यन्त क्रोध में भरकर आठ उत्तम बाणो द्वारा कृतवर्मा को घायल कर दिया। यह देख कृतवर्मा ने धनुष को पूर्णतः खींचकर छोडे़ गये और शिला पर तेज किये हुए तीन बाणों से सात्यकि को घायल करके एक से उनके धनुष को काट डाला।[1]

उस कटे हुए श्रेष्ट धनुष को फेंककर शिनिप्रवर सात्यकि ने बाणसहित दूसरे धनुष को वेगपूर्वक हाथ में ले लिया। सम्पूर्ण धनुर्धरों में श्रेष्ठ महाबली एवं महापराक्रमी युयुधान ने उस उत्तम धनुष को लेकर शीघ्र ही उस पर बाण चढ़ाया और कृतवर्मा के द्वारा अपने धनुष का काटा जाना सहन न करके उन अतिरथी वीर ने कुपित हो शीघ्रतापूर्वक उस पर आक्रमण किया। तत्पश्चात् शिनिप्रवर सात्यकि ने अत्यन्त तीखें दस बाणों के द्वारा कृतवर्मा के ध्वज, सारथि और घोड़ों को नष्ट कर दिया। राजन! महधनुर्धर महारथी कृतवर्मा अपने सुवर्णभूषित रथ को घोडे़ और सारथि से रहित देख महा रोष से भर गया।[2]

सात्यकि द्वारा कृतवर्मा की पराजय

मान्यवर! फिर उसने शिनिप्रवर सात्यकि को मार डालने की इच्छा से एक शूल उठाकर उसे अपनी भुजाओं के सम्पूर्ण वेग-से चला दिया। परंतु सात्यकि ने युद्धस्थल में अपने बाणों द्वारा उस शूल को काटकर चकनाचूर कर दिया और कृतवर्मा को मोह में डालते हुए से उस चूर-चूर हुए शूल को पृथ्वी पर गिरा दिया।। इसके बाद उन्होंने कृतवर्मा की छाती में एक भल्ल द्वारा गहरी चोट पहुँचायी। तब वह युयुधान द्वारा घोड़ों और सारथि से रहित किया हुआ कृतवर्मा रथ छोड़कर युद्धस्थल में पृथ्वी पर खड़ा हो गया। उस द्वैरथ युद्ध में सात्यकि द्वारा वीर कृतवर्मा के रथहीन हो जाने पर आपके सारे सैनिक के मन में महान भय समा गया।। जब कृतवर्मा के घोड़े और सारथि मारे गये तथा वह रथ हीन हो गया, तब आपके पुत्र दुर्योधन के मन में बड़ा खेद हुआ।

कृपाचार्य और सात्यकि का युद्ध

शत्रुदमन नरेश! कृतवर्मा के घोड़ों और सारथि को मारा गया देख कृपाचार्य सात्यकि को मार डालने की इच्छा से वहाँ दौडे़ हुए आये। फिर सम्पूर्ण धनुर्धरों के देखते-देखते महाबाहु कृतवर्मा को अपने रथ पर बिठाकर वे उसे तुरन्त ही युद्ध से दूर हटा ले गये। राजन! जब सात्यकि युद्ध के लिये डटे रहे और कृतवर्मा रथहीन होकर भाग गया, तब दुर्योधन की सारी सेना पुनः युद्ध से विमुख हो वहाँ से पलायन करने लगी। परन्तु सेनाद्वारा उड़ायी हुई धूल से आच्छादित होने के कारण शत्रुओं के सैनिक कौरव-सेना के भागने की बात न जान सके।

दुर्योधन द्वारा पांडव योद्धाओं पर आक्रमण करना

राजन! राजा दुर्योधन के सिवा, आपके सभी योद्धा वहाँ से भाग गये। दुर्योधन अपनी सेना को निकट से भागती देख बड़े वेग से शत्रुओं पर टूट पड़ा और उन सबको अकेले ही शीघ्रतापूर्वक रोकने लगा। माननीय नरेश! उस समय क्रोध में भरा हुआ आपका महाबली पुत्र दुर्धर्ष दुर्योधन सावधान हो बिना किसी घबराहट के समस्त पाण्डवों, द्रुपदपुत्र धृष्‍टद्युम्न, शिखण्डी, द्रौपदी के पाँचों पुत्रों, पांचालों, केकयों, सोमकों और सृंजयों- पर पैने बाणों की वर्षा करने लगा तथा निर्भय होकर युद्धभूमि में डटा रहा। जैसे यज्ञ में मन्त्रों द्वारा पवित्र हुए महान अग्निदेव प्रकाशित होते हैं, उसी प्रकार संग्राम में राजा दुर्योधन सब ओर से देदीप्यमान हो रहा था। जैसे मरणधर्मा मनुष्य अपनी मृत्यु का उल्लंघन नहीं कर सकते, उसी प्रकार युद्धभूमि में शत्रुसैनिक राजा दुर्योधन का सामना न कर सके। इतने ही में कृतवर्मा दूसरे रथ पर आरूढ़ होकर वहाँ आ पहुँचा।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 21 श्लोक 1-17
  2. 2.0 2.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 21 श्लोक 18-37

सम्बंधित लेख

महाभारत शल्य पर्व में उल्लेखित कथाएँ


शल्य और दुर्योधन वध के समाचार से धृतराष्ट्र का मूर्च्छित होना | धृतराष्ट्र को विदुर द्वारा आश्वासन देना | दुर्योधन के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप करना | धृतराष्ट्र का संजय से युद्ध का वृत्तान्त पूछना | कर्ण के मारे जाने पर पांडवों के भय से कौरव सेना का पलायन | भीम द्वारा पच्चीस हज़ार पैदलों का वध | अर्जुन द्वारा कौरवों की रथसेना पर आक्रमण | दुर्योधन का अपने सैनिकों को समझाकर पुन: युद्ध में लगाना | कृपाचार्य का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना | दुर्योधन का कृपाचार्य को उत्तर देना | दुर्योधन का संधि स्वीकर न करके युद्ध का ही निश्चय करना | अश्वत्थामा का शल्य को सेनापति बनाने का प्रस्ताव | दुर्योधन के अनुरोध पर शल्य का सेनापति पद स्वीकार करना | शल्य के वीरोचित उद्गार | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को शल्यवध हेतु उत्साहित करना | उभयपक्ष की सेनाओं का रणभूमि में उपस्थित होना | कौरव-पांडवों की बची हुई सेनाओं की संख्या का वर्णन | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध | पांडव वीरों के भय से कौरव सेना का पलायन | नकुल द्वारा कर्ण के तीन पुत्रों का वध | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का भयानक युद्ध | शल्य का पराक्रम | कौरव-पांडव योद्धाओं के द्वन्द्वयुद्ध | भीम के द्वारा शल्य की पराजय | भीम और शल्य का भयानक गदा युद्ध | दुर्योधन द्वारा चेकितान का वध | दुर्योधन की प्रेरणा से कौरव सैनिकों का पांडव सेना से युद्ध | युधिष्ठिर और माद्रीपुत्रों के साथ शल्य का युद्ध | मद्रराज शल्य का अद्भुत पराक्रम | अर्जुन और अश्वत्थामा का युद्ध | अश्वत्थामा के द्वारा सुरथ का वध | दुर्योधन और धृष्टद्युम्न का युद्ध | शल्य के साथ नकुल और सात्यकि आदि का घोर युद्ध | पांडव सैनिकों और कौरव सैनिकों का द्वन्द्वयुद्ध | भीमसेन द्वारा दुर्योधन की पराजय | युधिष्ठिर द्वारा शल्य की पराजय | भीम द्वारा शल्य के घोड़े और सारथि का वध | युधिष्ठिर के द्वारा शल्य का वध | युधिष्ठिर के द्वारा शल्य के भाई का वध | सात्यकि और युधिष्ठिर द्वारा कृतवर्मा की पराजय | मद्रराज के अनुचरों का वध और कौरव सेना का पलायन | पांडव सैनिकों द्वारा पांडवों की प्रशंसा और धृतराष्ट्र की निन्दा | भीम द्वारा इक्कीस हज़ार पैदलों का संहार | दुर्योधन का अपनी सेना को उत्साहित करना | धृष्टद्युम्न द्वारा शाल्व के हाथी का वध | सात्यकि द्वारा शाल्व का वध | सात्यकि द्वारा क्षेमधूर्ति का वध | कृतवर्मा का सात्यकि से युद्ध तथा उसकी पराजय | दुर्योधन का पराक्रम | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घोर संग्राम | कौरव पक्ष के सात सौ रथियों का वध | उभय पक्ष की सेनाओं का मर्यादा शून्य घोर संग्राम | शकुनि का कूट युद्ध और उसकी पराजय | अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से दुर्योधन के दुराग्रह की निन्दा | अर्जुन द्वारा कौरव रथियों की सेना का संहार | अर्जुन और भीम द्वारा कौरवों की रथसेना एवं गजसेना का संहार | अश्वत्थामा आदि के द्वारा दुर्योधन की खोज | सात्यकि द्वारा संजय का पकड़ा जाना | भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध | भीम के द्वारा कौरवों की चतुरंगिणी सेना का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन के द्वारा सत्यकर्मा और सत्येषु का वध | अर्जुन के द्वारा सुशर्मा का उसके पुत्रों सहित वध | भीम के द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र सुदर्शन का अन्त | सहदेव के द्वारा उलूक का वध | सहदेव के द्वारा शकुनि का वध
ह्रदप्रवेश पर्व
बची हुई समस्त कौरव सेना का वध | संजय का क़ैद से छूटना | दुर्योधन का सरोवर में प्रवेश | युयुत्सु का राजमहिलाओं के साथ हस्तिनापुर में जाना
गदा पर्व
अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा की सरोवर में दुर्योधन से बातचीत | युधिष्ठिर का सेना सहित सरोवर पर जाना | कृपाचार्य आदि का सरोवर से दूर हट जाना | युधिष्ठिर और श्रीकृष्ण की बातचीत | सरोवर में छिपे दुर्योधन के साथ युधिष्ठिर का संवाद | युधिष्ठिर के कहने से दुर्योधन का सरोवर से बाहर आना | दुर्योधन का किसी एक पांडव से गदायुद्ध हेतु तैयार होना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को फटकारना | श्रीकृष्ण द्वारा भीमसेन की प्रशंसा | भीम और दुर्योधन में वाग्युद्ध | बलराम का आगमन और सम्मान | भीम और दुर्योधन के युद्ध का आरम्भ | बलदेव की तीर्थयात्रा | प्रभासक्षेत्र के प्रभाव तथा चंद्रमा के शापमोचन की कथा | उदपान तीर्थ की उत्पत्ति तथा त्रित मुनि के कूप में गिरने की कथा | त्रित मुनि का यज्ञ | त्रित मुनि का अपने भाइयों का शाप देना | वैशम्पायन द्वारा विभिन्न तीर्थों का वर्णन | नैमिषारण्य तीर्थ का वर्णन | बलराम का सप्त सारस्वत तीर्थ में प्रवेश | सप्तसारस्वत तीर्थ की उत्पत्ति | मंकणक मुनि का चरित्र | औशनस एवं कपालमोचन तीर्थ की माहात्म्य कथा | रुषंगु के आश्रम पृथूदक तीथ की महिमा | आर्ष्टिषेण एवं विश्वामित्र की तपस्या तथा वरप्राप्ति | अवाकीर्ण तीर्थ की महिमा और दाल्भ्य की कथा | यायात तीर्थ की महिमा और ययाति के यज्ञ का वर्णन | वसिष्ठापवाह तीर्थ की उत्पत्ति | ऋषियों के प्रयत्न से सरस्वती नदी के शाप की निवृत्ति | सरस्वती नदी के जल की शुद्धि | अरुणासंगम में स्नान से राक्षसों और इन्द्र का संकटमोचन | कुमार कार्तिकेय का प्राकट्य | कुमार कार्तिकेय के अभिषेक की तैयारी | स्कन्द का अभिषेक | स्कन्द के महापार्षदों के नाम, रूप आदि का वर्णन | स्कन्द की मातृकाओं का परिचय | स्कन्द देव की रणयात्रा | स्कन्द द्वारा तारकासुर, महिषासुर आदि दैत्यों का सेनासहित संहार | वरुण का अभिषेक | अग्नितीर्थ, ब्रह्मयोनि और कुबेरतीर्थ की उत्पत्ति का प्रसंग | श्रुतावती और अरुन्धती के तप की कथा | इन्द्रतीर्थ, रामतीर्थ, यमुनातीर्थ और आदित्यतीर्थ की महिमा | असित देवल तथा जैगीषव्य मुनि का चरित्र | दधीच ऋषि तथा सारस्वत मुनि के चरित्र का वर्णन | वृद्ध कन्या का चरित्र | वृद्ध कन्या का शृंगवान से विवाह तथा स्वर्गगमन | ऋषियों द्वारा कुरुक्षेत्र की सीमा और महिमा का वर्णन | प्लक्षप्रस्रवण आदि तीर्थों तथा सरस्वती की महिमा | बलराम का नारद से कौरवों के विनाश का समाचार सुनना | भीम-दुर्योधन का युद्ध देखने के लिए बलराम का जाना | बलराम की सलाह से सबका कुरुक्षेत्र के समन्तपंचक तीर्थ में जाना | समन्तपंचक तीर्थ में भीम और दुर्योधन में गदायुद्ध की तैयारी | दुर्योधन के लिए अपशकुन | भीमसेन का उत्साह | भीम और दुर्योधन का वाग्युद्ध | भीम और दुर्योधन का गदा युद्ध | कृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन के संकेत से भीम द्वारा दुर्योधन की जाँघें तोड़ना | दुर्योधन के धराशायी होने पर भीषण उत्पात प्रकट होना | भीमसेन द्वारा दुर्योधन का तिरस्कार | युधिष्ठिर का भीम को अन्याय करने से रोकना | युधिष्ठिर का दुर्योधन को सान्त्वना देते हुए खेद प्रकट करना | क्रोधित बलराम को कृष्ण का समझाना | युधिष्ठिर के साथ कृष्ण और भीम की बातचीत | पांडव सैनिकों द्वारा भीम की स्तुति | कृष्ण के आक्षेप पर दुर्योधन का उत्तर | कृष्ण द्वारा पांडवों का समाधान | पांडवों का कौरव शिबिर में पहुँचना | अर्जुन के रथ का दग्ध होना | पांडवों का कृष्ण को हस्तिनापुर भेजना | कृष्ण का हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र और गांधारी को आश्वासन देना | कृष्ण का पांडवों के पास लौटना | दुर्योधन का संजय के सम्मुख विलाप | दुर्योधन का वाहकों द्वारा अपने साथियों को संदेश भेजना | दुर्योधन को देखकर अश्वत्थामा का विषाद एवं प्रतिज्ञा करना | अश्वत्थामा का सेनापति पद पर अभिषेक

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः