महाभारत शल्य पर्व अध्याय 7 श्लोक 24-46

सप्तम (7) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

Prev.png

महाभारत: शल्य पर्व: सप्तम अध्याय: श्लोक 24-46 का हिन्दी अनुवाद

उस समय आपकी सेना का वह महान हर्षनाद सुनकर राजा युधिष्ठिर ने समस्त क्षत्रियों के सामने ही भगवान श्रीकृष्ण से कहा- माधव! धृतराष्ट्रपुत्र दुर्योधन ने समस्त सेनाओं द्वारा सम्मानित महाधनुर्धर मद्रराज शल्य को सेनापति बनाया है। माधव! वह यथार्थ रूप से जानकर आप जो उचित हो वैसा करें; क्योंकि आप ही हमारे नेता और संरक्षक हैं। इसलिये अब जो कार्य आवश्यक हो, उसका सम्पादन कीजिये। महाराज! तब भगवान श्रीकृष्ण ने राजा से कहा- भारत! मैं ऋतायनकुमार राजा शल्य को अच्छी तरह जानता हूँ। वे बलशाली, महातेजस्वी, महामनस्वी, विद्वान, विचित्र युद्ध करने वाले और शीघ्रतापूर्वक अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग करने वाले हैं। भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण- ये सब लोग युद्ध में जैसे पराक्रमी थे, वैसे ही या उनसे भी बढ़कर पराक्रमी मैं मद्रराज शल्य को मानता हूँ। भारत! नरेश्वर! मैं बहुत सोचने पर भी युद्धपरायण शल्य के अनुरूप दूसरे किसी योद्धा को नहीं पा रहा हूँ। भरतनन्दन! शिखण्डी, अर्जुन, भीम, सात्यकि और धृष्टद्युम्न से भी वे रणभूमि में अधिक बलशाली हैं।

मद्रराज! सिंह और हाथी के समान पराक्रमी मद्रराज शल्य प्रलयकाल में प्रजा पर कुपित हुए काल के समान निर्भय होकर रणभूमि में विचरेंगे। पुरुषसिंह! आपका पराक्रम सिंह के समान है। आज आपके सिवा युद्धस्थल में दूसरे को ऐसा नहीं देखता, जो शल्य के सम्मुख होकर युद्ध कर सके। कुरुनन्दन! देवताओं सहित इस सम्पूर्ण जगत में आपके सिवा दूसरा कोई ऐसा पुरुष नहीं है, जो रण में कुपित हुए मद्रराज शल्य को मार सके। इसलिये प्रतिदिन समरांगण में जूझते और आपकी सेना को विक्षुब्ध करते हुए राजा शल्य को युद्ध में आप उसी प्रकार मार डालिये, जैसे इन्द्र ने शम्बरासुर का वध किया था। वीर शल्य अजेय हैं। दुर्योधन ने उनका बड़ा सम्मान किया है। युद्ध में मद्रराज के मारे जाने पर निश्चय आपकी ही जीत होगी। महाराज! कुन्तीकुमार! उनके मारे जाने पर आप समझ लें कि दुर्योधन की सारी विशाल सेना ही मार डाली गयी। इस समय मेरी इस बात को सुनकर महारथी मद्रराज पर चढ़ाई कीजिये और महाबाहो! जैसे इन्द्र ने नमुचि का वध किया था, उसी प्रकार आप भी उन्हें मार डालिये। ये मेरे मामा हैं ऐसा समझकर आपको उन पर दया नहीं करनी चाहिये। आप क्षत्रिय धर्म को सामने रखते हुए मद्रराज शल्य को मार डालें। भीष्म, द्रोण और कर्णरूपी महासागर को पार करके आप अपने सेवकों सहित शल्यरूपी गाय की खुरी में न डूब जाइये।

राजन! आपका जो तपोबल और क्षात्रबल है, वह सब रणभूमि में दिखाईये और इन महारथी शल्य को मार डालिये। शत्रुवीरों का संहार करने वाले भगवान श्रीकृष्ण यह बात कहकर सांयकाल पाण्डवों से सम्मानित हो अपने शिविर में चले गये। श्रीकृष्ण के चले जाने पर उस समय धर्मपुत्र युधिष्ठिर ने अपने सब भाईयों तथा पांचालों और सोमकों को भी विदा करके रात में अंकुश रहित हाथी के समान शयन किया। वे सभी महाधनुर्धर पांचाल और पाण्डव-योद्धा कर्ण के मारे जाने से हर्ष में भरकर रात्रि में सुख की नींद सोये। माननीय नरेश! सूतपुत्र कर्ण के मारे जाने से विजय पाकर महान धनुष एवं विशाल रथों से सुशोभित पाण्डव सेना बहुत प्रसन्न हुई थी, मानो वह युद्ध से पार होकर निश्चिन्त हो गयी हो।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्यपर्व में शल्य का सेनापति के पद पर अभिषेकविषयक सातवाँ अध्याय पूरा हुआ।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः