विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास की दिव्यता का ध्यानकिसने? क्या रात्रि ने? बोले- नहीं, स्वयं ईश्वर ने ये हीरे-मोती-रूप आकाश के तारे अपने हाथ से साड़ी में है जड़ दिए और फिर उसको पहनाया। अच्छा, यह चाँदनी की शीतलता क्या रात के घर में थी? नहीं, भगवान ने स्वयं चाँदनी, उसकी शीतलता और सुगन्धित बहने वाली वायु बनायी। वीक्ष्य का अर्थ है- अपने भोग के योग्य उन्होंने रात्रि आदि को बनाया। माने उनमें अपने आनन्द का संचार किया। स ऐक्षत एकोऽहं बहु स्याम प्रजायेय । भगवान ने कहा- मैं अकेला हूँ। कहा आप क्या चाहते हो?
भगवान गृहस्थ बन गये; अकेले उनको अच्छा नहीं लगा। ‘प्रजायेय’- अरे अब तो हमारे बच्चे-कच्चे होंगे। ‘प्रजायेय’ माने ‘अब मैं अनेक रूप में प्रकट होऊँगा।’ यह ईश्वर का संकल्प है। कृष्ण ने कैसे होरी मचायी-
तो वीक्ष्य का अर्थ क्या है? कि अपने बिहार के योग्य रात्रि माने काल की सृष्टि की। अपने बिहार के योग्य स्थान की रचना की। उन निषद् में ‘ऐक्षत’ माने सर्जन होता है, सृष्टि करना या बनाना। फिर उसके बाद गोपियों को बनाया। गोपियों में भगवान सांसारिक आनन्द का उपभोग नहीं करते, भवदीय आनन्द का उपभोग करते हैं। अपने हृदय का जो आनन्द है वह उनमें स्थापित किया और फिर स्वयं भोक्ता और भोग्य! वीक्ष्य माने विश्लेषण ‘ईक्षित्वा सृष्ट्वा इत्यर्थः।’ किसीमें सामर्थ्य नहीं जो भगवान् को आकर्षित कर सके। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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