विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास की दिव्यता का ध्यानजहाँ अपना स्वार्थ है, वहाँ अपनी तीन चीज देखना – 1. अपनी स्वार्थ- सत्ता में प्रियतम छूट गया। प्रियतम सत्य नहीं रहा, अहं सत्य हो गया। 2. यदि प्रियतम की बुद्धि अपनी बुद्दि नहीं तो उसको कर दिया जड़ और स्वयं ज्ञानी चैतन्य बन गये। और 3. यदि उसका सुख नहीं हमारा सुख, तो प्रियतम को दुःख कर दिया और स्वयं सुख बन गये। सच्चिदानन्द प्रियतम है, यह बात छूट गयी। तो ‘ता: वीक्ष्य’ अब ऐश्वर्य माधुर्य की बात सुनाता हुँ। पहले ऐश्वर्य की बात करूँ। ईश्वर के लिए भोग संसार में कोई वस्तु हो सकती है? क्योकि वह तो देश- काल- वस्तु से अपरिच्छिन्न है। जो सब जगह हो, सब समय हो, सब में हो, वह ईश्वर। ईश्वर जो आनन्द का मालिक है, आनन्द रूप है, उसके लिए भोग्य क्या संसार में कुछ हो सकता है? वह क्या किसी के शरीर के भोग के बिना दुःखी हो जाएगा? वह क्या किसी के देखे बिना दुःखी हो जायेगा? उसके लिए कौन सी ऐसी गन्ध है जो आकर्षित कर सके, कौन सा ऐसा रस है जो आकर्षित कर ले? कौन सा- ऐसा रूप है जो अपनी ओर खींच ले? कौन सा स्पर्श है जो अपनी ओर खींच सके? कौन सी ऐसी मीठी आवाज है कि जिसके सुनने के लिए ईश्वर व्याकुल हो जाए? ईश्वर के अन्दर व्याकुलता उत्पन्न कर सके, ऐसी वस्तु सृष्टि में है कोई? यह ऐश्वर्य की बात है। कहा- हनीं, नहीं है। तब ईश्वर क्या करता है? फिर ईश्वर लोगों के प्रेम को कैसे स्वीकार करता है? वल्लभाचार्य जी महाराज ने स्थान स्थान पर इसका निरूपण किया है। अब ‘ताः वीक्ष्य’ में उसको देखो- ‘ताः वीक्ष्य, रात्रीः वीक्ष्य, शदोत्फुल्लमल्लिका वीक्ष्य’। वीक्ष्य का एक विशेष अर्थ है- ‘विशेषण ईक्षित्वा’ विशेष रूप से देखकर। ईश्वर देखता है, ईश्वर की नजर जिसको जैसा बनाना चाहे उसको वैसा बना दे। ईश्वर ने कहा- मैं आनन्द की गठरी अपने शिर पर लिए बैठा हूँ, उसको उतारना चाहिए। उतारो, उतारकर क्या करोगे? कहा- आनन्द का जो सार है, आनन्द का जो परिपूर्णतम रूप है, उसको गोपियों में रखूँगा। आनन्द का जो परिपूर्णतर रूप है, वह रात्रि में रख दूँगा। आनन्द का जो परिपूर्णतर रूप है उसको शरदोत्फुल्लमल्लिका में रख दूँगा। वीक्ष्य का अर्थ है कि जैसा सच्चिदानन्द भगवान है पहले उसने रात को अपने हाथ से सँवारा। उसकी यह नीली साड़ी जो आसमान में है उसकी इस्तरी किया; गुड़मुड़ी साड़ी भगवान को पसन्द नहीं है। आकाश यह रात की नीली साड़ी है, इसमें ‘क्रीज’ कहीं नहीं है। अच्छा किसने सँवारा है? यह ईश्वर ने अपने हाथ से सँवारा है। ‘ता रात्रीः वीक्ष्य’- यही वीक्षण है। फिर बोले- इस नीली साड़ी में हीरे, मोती आकाश के तारे टाँक दिए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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