विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती‘लौट-जाओ’ सुनकर गोपियों की दशा का वर्णनअब कृष्ण ने जब यह कहा कि लौट जाओ तो यह तो उनके गोपीपने के नाश का प्रसंग उपस्थित हो गया। क्योंकि गोपी तो वह है इंद्रियवृत्ति से भगवत-रस का पान करें। यदि भगवान् उनको लौटा दें तो इंद्रियवृत्ति से भगवत-रस का पान नहीं होगा और तब उसके गोपीपने का नाश हो जायेगा। गोपी जिन्दा नहीं रह सकती, मर जावेगी, और हमेशा के लिए मर जावेगी। गोपी नाम की चीज न कभी हुई और न होगी, अगर उसको उसकी इन्द्रियों के द्वारा भगवत्-रस की प्राप्ति न हो और न होगी, अगर उसको उसकी इन्द्रियों के द्वारा भगवत्-रस की प्राप्ति न हो और उस भगवान् को जाने दो जो इन्द्रियों के सामने आने से डरता है कि हम दृश्य हो जाएंगे, जड़ हो जाएंगे, विकारी हो जाएंगे, अनित्य हो जाएंगे, दुःख हो जाएंगे, उस डरे हुए भगवान् को जरा हिमालय की ओर रहने दो। इस भगवान् को जो वृन्दावन में है, इसको डर नहीं लगता है। यह जानता है कि हम इंद्रियों के सामने आवेंगे तब भी जड़ नहीं होवेंगे, चेतन ही रहेंगे। दृश्य होने पर भी दृंङ्मात्र रहेंगे। जन्म और मरण हमारे अन्दर दिखने पर भी हम अविनाशी रहेंगे? हमारी वजह से लोगों को दुःख होगा, त ब भी हम रस-स्वरूप ही रहेंगे। यह कोई डरने वाला भगवान् नहीं है, अभय है, स्वतंत्र ब्रह्म है। ‘गोविन्दभाषितं’- गोपी के लिए यह कहना कि तुम कृष्ण के सामने मत रहो, लौट जाओ, यह गोपी के स्वरूप के वितरित है; और गोविन्द का यह कहना कि तुम लौट जाओ यह गोविन्द के स्वरूप के भी विपरीत है। क्योंकि गोविन्द किसको बोलते हैं? गोविन्द ने हाथ पर गोवर्धन पर्वत उठाकर गौ और व्रज की रक्षा की थी। इसलिए उनका नाम गोविन्द है। इंद्र ने श्रीकृष्ण को गोविन्द संज्ञा दी है। व्याकरण से यह सिद्ध है- ‘गां पृथ्वीं विन्दति, गां व्रजववासिनं विन्दति, गां इंद्रियवृत्तिं विन्दति।’ ‘विद् लाभे’ से गोविन्द शब्द का अर्थ होगा- जो लोगों की इंद्रियों को अपनी ओर खींच ले। जो लोगों की इंद्रियों का विषय बन जाय। शब्द हो जाय कृष्ण-कृष्ण-कृष्ण; स्पर्श हो जाय- आकर छुए रूप हो जाय- आँख से आँखें मिले; गंध बनकर आवे, नाक में समा जाय। रस बनकर आवे, जिह्वा में समा जाय! यह भगवान् ऐसा गोविन्द है, सर्वात्मक है। जो लोग ज्यादा पढ़े-लिखे होते हैं उनके मन में ईश्वर के निराकार होने का संस्कार थोड़ा प्रबल हो जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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