योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
पहला अध्याय
कृष्ण की जन्मभूमि
व्रजमण्डल-मथुरा का निकटस्थ प्रदेश जो 42 मील की लम्बाई तथा 30 मील की चौड़ाई में बसा है उसे व्रजमण्डल कहते हैं। कृष्ण मत के मानने वाले इस सारे प्रान्त की यात्रा करते हैं। इस यात्रा को ‘वनयात्रा’ कहते हैं। व्रज का अर्थ पशुओं के खेड़े से है जैसे गोकुल का अर्थ गऊओं से है। यह यात्रा भाद्रपद मास में कृष्णचन्द्र के जन्मदिन के उत्सव से आरम्भ होती है। यात्रीगण मथुरा से यात्रा प्रारम्भ करते हैं और सारे ब्रजमण्डल के मन्दिरों, वनों तथा घाटों की फेरी करते हुए गोकुल, वृन्दावन इत्यादि स्थानों में होकर फिर मथुरा लौट आते हैं। हम स्थानान्तर में सिद्ध करेंगे कि यह वनयात्रा तथा रासलीला आदि प्राचीन काल की नहीं हैं। इन्हें पौराणिक समय के स्वार्थी पुजारियों तथा ब्राह्मणों ने अपनी जीविका के लिए रचा है। खेद है कि कृष्ण महाराज की जन्मभूमि में इन्हीं के नाम पर उन्हीं पर विश्वास रखने वाले ऐसा अत्याचार करें जिसे देखकर कौन-सा विचारवान पुरुष है जिसका हृदय काँप न उठता हो, या जिसके अन्तः करण से एक बार दीर्घ निश्वास न निकलता हो। कुटिल काल! तूने बड़ी अनीति मचा रखी है। और तो सब अनर्थ किया ही था, स्वतंत्रता छीनी, धन छीना, हीरे-जवाहर तक लूटे, संसार की सबसे बलवान तथा सम्पन्न जाति को भिखारी बना दिया, धार्मिक से अधर्मयुक्त किया, विद्या और विज्ञान, कला और कौशल सब कुछ ले लिया, पर हमारे पूज्य महापुरुषों के पवित्र जीवनों को तो अकलंकित छोड़ देता। हाय, तूने उनके नाम और यश को भी नष्ट कर मृतक बना छोड़ा, जिनके नाम से हमारी मृतक जाति अब तक अपने को जीवित समझती थी और जिनका श्रेष्ठ नाम लेने से हमे फिर श्रेष्ठता की आशा होती थी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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