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जन सेवा के कार्य
लाला जी केवल राजनैतिक नेता और कार्यकर्ता ही नहीं थे, उन्होंने जन-सेवा का भी सच्चा पाठ पढ़ा था। जब 1896 तथा 1899[1] में उत्तर भारत में भयंकर दुष्काल पड़ा तो लाला जी ने अपने साथी लाला हंसराज के सहयोग से अकाल-पीड़ित लोगों को सहायता पहुँचाई। जिन अनाथ बच्चों को ईसाई पादरी अपनाने के लिए तैयार थे और अन्ततः जो उनका धर्म-परिवर्तन करने के इरादे रखते थे, उन्हें इन मिशनरियों के चंगुल से बचाकर फीरोजपुर तथा आगरा के आर्य अनाथालायों में भेजा। 1905 में कांगड़ा[2] में भयंकर भूकम्प आया। उस समय भी लालाजी सेवा-कार्य में जुट गये और डी. ए. वी. कॉलेज, लाहौर के छात्रों के साथ भूकम्प-पीड़ितों को राहत प्रदान की। 1907-1908 में उड़ीसा, मध्य प्रदेश तथा संयुक्त प्रान्त[3] में भी भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा और लाला जी को पीड़ितों की सहायता के लिए आगे आना पड़ा।
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