योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
7. पुराणों की प्राचीनता
पाणिनि ऋषि कृत अष्टाध्यायी के सूत्रों में युधिष्ठिर, कुन्ती तथा वासुदेव और अर्जुन के नाम आते हैं जैसे आठवें अध्याय के तीसरे पाद के 95वें सूत्र में युधिष्ठिर शब्द आया है।[1] इसी प्रकार चौथे अध्याय के पहले पाद के 174वें सूत्र में कुन्ती शब्द का प्रयोग हुआ है[2] फिर इसी अध्याय के तीसरे पाद के 98वें सूत्र में वासुदेव तथा अर्जुन का नाम आता है।[3] प्रोफेसर गोल्डस्टकर की सम्मति है कि पाणिनि मुनि ब्राह्मण ग्रंथों और उपनिषदों से भी बहुत पहले हुए हैं। श्री स्वामी दयानन्द की भी यही सम्मति है। ब्राह्मण ग्रंथों में ऐतरेय और शतपथ में परीक्षित और जनमेजय का वर्णन आया है। जनमेजय पाण्डवों के प्रपौत्र का नाम था जिसके दरबार में प्रथम महाभारत सुनाई गई। इसके अतिरिक्त तैत्तिरीय आरण्यक में श्रीकृष्ण का नाम आता है। छान्दोग्य उपनिषद में ‘देवकी के पुत्र कृष्ण’ का वर्णन है। आश्वलायन गृह्य सूत्र में भी महाभारत के युद्ध का वर्णन आया है। इसी तरह महर्षि पतंजलि के भाष्य में कई जगह आया है कि कृष्ण वासुदेव ने अपने मामा कंस को मारा, इत्यादि। यह भी याद रखना चाहिए कि छः दर्शनकारों में सबसे अन्तिम दर्शनकार व्यास हुए हैं। व्यास को वेदान्त दर्शन का कर्ता मानते हैं। अब इन बातों के रहते यह निर्णय करना बड़ा कठिन है कि महाभारत का युद्ध कब हुआ, महाभारत ग्रंथ कब रचा गया और कौन-से व्यास ने उसको बनाया। तथापि यह परिणाम निकला कि महाभारत के युद्ध को बहुत काल बीता है और असल महाभारत ग्रंथ युद्ध से कुछ काल पीछे लिखा गया परन्तु कालान्तर में उसमें परिवर्तन होते रहे। यहाँ तक कि आज यह सब कुछ अस्पष्ट हो गया है और हमारे लिए महाभारत के युद्ध तथा महाभारत नामक ग्रंथ के रचे जाने के समय का निर्णय करना भी असम्भव हो गया है। यदि वास्तव में महाभारत का युद्ध उपनिषद तथा सूत्रों के समय से पहले हुआ और असल ग्रंथ भी उससे पहले बना तो फिर इसमें संदेह नहीं कि वर्तमान महाभारत में जितनी बातें उस समय के धर्म से विरुद्ध पाई जाती हैं वह सब कालांतर में मिला दी गई थीं और वास्तविक ग्रंथकर्ता की लेखनी से नहीं निकली हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गावि युधिभ्यां स्थिरः। 8/3/95
- ↑ स्त्रियाभवन्तिकुन्तिकुरुभ्यश्च। 4/1/174
- ↑ वासुदेवार्जुनाभ्यां वुन्। 4/3/98
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