योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 38

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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7. पुराणों की प्राचीनता


(10) प्राचीन संस्कृत साहित्य में कृष्ण तथा अन्य वीरों का वर्णन

पाणिनि ऋषि कृत अष्टाध्यायी के सूत्रों में युधिष्ठिर, कुन्ती तथा वासुदेव और अर्जुन के नाम आते हैं जैसे आठवें अध्याय के तीसरे पाद के 95वें सूत्र में युधिष्ठिर शब्द आया है।[1] इसी प्रकार चौथे अध्याय के पहले पाद के 174वें सूत्र में कुन्ती शब्द का प्रयोग हुआ है[2] फिर इसी अध्याय के तीसरे पाद के 98वें सूत्र में वासुदेव तथा अर्जुन का नाम आता है।[3]

प्रोफेसर गोल्डस्टकर की सम्मति है कि पाणिनि मुनि ब्राह्मण ग्रंथों और उपनिषदों से भी बहुत पहले हुए हैं। श्री स्वामी दयानन्द की भी यही सम्मति है। ब्राह्मण ग्रंथों में ऐतरेय और शतपथ में परीक्षित और जनमेजय का वर्णन आया है। जनमेजय पाण्डवों के प्रपौत्र का नाम था जिसके दरबार में प्रथम महाभारत सुनाई गई। इसके अतिरिक्त तैत्तिरीय आरण्यक में श्रीकृष्ण का नाम आता है। छान्दोग्य उपनिषद में ‘देवकी के पुत्र कृष्ण’ का वर्णन है। आश्वलायन गृह्य सूत्र में भी महाभारत के युद्ध का वर्णन आया है। इसी तरह महर्षि पतंजलि के भाष्य में कई जगह आया है कि कृष्ण वासुदेव ने अपने मामा कंस को मारा, इत्यादि। यह भी याद रखना चाहिए कि छः दर्शनकारों में सबसे अन्तिम दर्शनकार व्यास हुए हैं। व्यास को वेदान्त दर्शन का कर्ता मानते हैं। अब इन बातों के रहते यह निर्णय करना बड़ा कठिन है कि महाभारत का युद्ध कब हुआ, महाभारत ग्रंथ कब रचा गया और कौन-से व्यास ने उसको बनाया।

तथापि यह परिणाम निकला कि महाभारत के युद्ध को बहुत काल बीता है और असल महाभारत ग्रंथ युद्ध से कुछ काल पीछे लिखा गया परन्तु कालान्तर में उसमें परिवर्तन होते रहे। यहाँ तक कि आज यह सब कुछ अस्पष्ट हो गया है और हमारे लिए महाभारत के युद्ध तथा महाभारत नामक ग्रंथ के रचे जाने के समय का निर्णय करना भी असम्भव हो गया है।

यदि वास्तव में महाभारत का युद्ध उपनिषद तथा सूत्रों के समय से पहले हुआ और असल ग्रंथ भी उससे पहले बना तो फिर इसमें संदेह नहीं कि वर्तमान महाभारत में जितनी बातें उस समय के धर्म से विरुद्ध पाई जाती हैं वह सब कालांतर में मिला दी गई थीं और वास्तविक ग्रंथकर्ता की लेखनी से नहीं निकली हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गावि युधिभ्यां स्थिरः। 8/3/95
  2. स्त्रियाभवन्तिकुन्तिकुरुभ्यश्च। 4/1/174
  3. वासुदेवार्जुनाभ्यां वुन्। 4/3/98

संबंधित लेख

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अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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