योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 15

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

Prev.png

सम्पादकीय


प्रस्तुत पुस्तक को लिखने से पहले लाला जी ने कृष्ण विषयक सभी महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का सम्यक अनुशीलन किया था। महाभारत तो कृष्ण-चरित्र का प्रमुख उपादान है ही, इसके अतिरिक्त भागवत, हरिवंश, विष्णुपुराण तथा ब्रह्यवैवर्तपुराण आदि में जहाँ-जहाँ कृष्ण की प्रमुखता से या प्रसंगोपात्त स्वल्प चर्चा आई है, लाला जी ने इन सभी ग्रन्थों के प्रासंगिक स्थलों की समुचित पर्यालोचना की थी।

उधर अंग्रेजी के कुछ ग्रन्थों से भी उन्होंने सहायता ली जिनका उल्लेख वे ग्रन्थ की प्रस्तावना में करते हैं। मथुरा-क्षेत्र की भौगोलिक, ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक जानकारी के लिए उन्होंने एफ. एस. ग्राउस की ‘मथुरा मेमोयर’ नामक पुस्तक से सहायता ली। ग्राउस एक हिन्दी-प्रेमी आई. सी. एस. अधिकारी थे जो मथुरा तथा बुलन्दशहर के जिलाधीश रह चुके थे। उन्होंने दो बंगाली लेखकों की अंग्रेजी पुस्तकों से भी सहायता ली है। जिसकी चर्चा वे अपनी प्रस्तावना में करते हैं। सम्भवतः वे बंकिम-रचित कृष्ण-चरित्र को नहीं देख सके थे।

प्रथम तो लाला जी बँगला नहीं जानते थे और तब तक उसका हिन्दी अनुवाद भी नहीं हुआ था। तथापि अपने विस्तृत अध्ययन, मौलिक विवेचना-कौशल और सर्वोपरि कृष्ण जैसे युगपुरुष के प्रति असामान्य श्रद्धा भाव से ही लाला जी जैसा उत्कृष्ट लेखक इस श्रेष्ठ कृति की रचना कर सका। निश्चय ही कृष्ण के प्रति उनकी यह आस्था, कृष्ण के महामानव होने में उनका प्रगाढ़ विश्वास तथा पुराण वर्णित कृष्णचरित्र के प्रति उनकी अनास्था एवं अरुचि का प्रमुख कारण उनके अन्तर्मन में उभरे वे ही विचार थे जो स्वामी दयानन्द की बौद्धिक विरासत ने उन्हें दिये थे। अतः प्रकारान्तर से यही मानना होगा कि कृष्णचरित्र के अध्ययन और आलोचन में जो सूत्र स्वामी दयानन्द ने दिया था उसका विस्तार करना ही लाला जी की इस कृति का लक्ष्य रहा है। कालान्तर में आर्यसमाज से जुड़े अन्य लेखकों ने भी कृष्णचरित्र की विवेचना और मीमांसा उसी शैली में की है जिसे लाला जी ने आदर्श बनाकर प्रस्तुत किया था। गुरुकुल कांगड़ी के भूतपूर्व आचार्य पं. चमूपति का ‘योगेश्वर कृष्ण’ 2006 वि. में प्रकाशित हुआ तथा इन पंक्तियों के लेखक की कृति ‘श्रीकृष्णचरित्र’ प्रथम बार 1958 में प्रकाशित हुई।

लाला जी ने इस कृति को आज से 103 वर्ष पूर्व 6 नवम्बर, 1900 को पूरा किया था। इस पुस्तक का कालान्तर में हिन्दी अनुवाद गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर में अंग्रेजी के अध्यापक मास्टर हरिद्वारीसिंह ‘बेदिल’ ने किया था। मास्टर जी का विस्तृत परिचय तो उपलब्ध नहीं हैं, किन्तु जो जानकारी मिलती है उससे पता चलता है कि वे उर्दू में काव्य रचना भी करते थे जो उनके ‘बेदिल’ उपनाम से प्रकट होता है। उन्होंने प्रसिद्ध रूसी लेखक निकोलस नोटोविच की उस पुस्तक का भी हिन्दी में अनुवाद किया था जिसमें ईसा मसीह की कथित भारत-यात्रा का विवरण दिया गया है। यह पुस्तक ‘भारत शिष्य ईसा’ नाम से 1914 में प्रकाशित हुई थी। लाला लाजपतराय-रचित ‘कृष्णचरित्र’ का यह अनुवाद द्वितीय बार पं. शंकरदत्त शर्मा द्वारा वैदिक पुस्तकालय मुरादाबाद से 1924 में प्रकाशित हुआ था।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः