योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 146

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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पैंतीसवाँ अध्याय
कृष्ण महाराज की शिक्षा


उनका विश्वास ऐसा दृढ़ हो, उनकी श्रद्धा ऐसी पक्की हो, उनका हृदय ऐसा दृढ़ हो, उनकी बुद्धि ऐसी प्रबल हो कि वे जिस चीज को अपना धर्म समझ लें फिर उसी के हो रहें। न सुख-दुख की परवाह करें, न आराम व कष्ट की, न दुख और सुख का ख्याल करें, न सफलता और असफलता का विचार करें।

क्या वास्तव में इसी प्रकार के मनुष्यों का अभाव नही है जिसके कारण सारा देश दुखी है और नित्य नई आपत्तियों और क्लेशों का सामना करता है। देश में देशभक्ति, जाति प्रेम और धर्म-प्रचार का हल्ला मचा हुआ है तो भी सारे देश में एक आदमी भी ऐसा दिखाई नहीं पड़ता जिसने देशभक्ति को, जाति-प्रेम को और धर्म-प्रचार को अपना मुख्य कर्त्तव्य बनाया हो। किन्तु क्या सम्भव था कि इतने हल्ला-गुल्ला होने पर भी धर्म की अवस्था इस देश में एक इंच भी उन्नत न होती और इस देश का दुख निवारण न होता।

यह ठीक है कि धर्म की चर्चा तो बहुत कुछ है, वाद-विवाद भी बहुत होता है, व्याख्यान और उपदेश भी अधिक होते हैं, चंदे भी खूब दिये जाते हैं, किन्तु कमी है तो यह है कि धर्म-परायण जीवन नहीं है और धर्म-परायण हुए बिना धर्म पास ही नहीं फटकता। धर्म तो उन लोगों के पास भी नहीं जाता जो उसे अपना जीवन नहीं बनाते। धर्म इतनी ईर्ष्या करने वाला है कि वह अपने सामने दूसरे को देख भी नहीं सकता। वह तो अपने भक्त को अपना ही मतवाला बनाना चाहता है। उसको न खाने से रोकता है, न पीने से, न भोगने से और न द्रव्य-संचय करने से, न संतान पैदा करने से और न स्त्री रखने से। वह तो यही चाहता है कि जो कुछ करो मेरे लिए करो, मेरे नाम पर करो, मेरी खातिर करो, मेरे परायण होकर करो। वह अपने भक्त से यह नहीं चाहता, कि उसका भक्त किसी से प्रेम न करे, वह देश की सेवा न करे, वह जाति की सेवा न करे, वह लोगों की सहायता न करे। वह तो कहता है चाहे जितना प्रेम करो, परन्तु जिस चीज से प्रेम करो वह इसलिए करो जिससे तुम्हारा वह प्रेम मेरे नाम पर हो, मेरी खातिर हो और मेरे अर्पण हो।

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योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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