योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अट्ठाईसवाँ अध्याय
भीष्म की पराजय
उधर दुर्योधन और उसके भाइयों ने पूर्ण रीति से भीष्म की रक्षा की और उनकी सहायता का प्रबंध किया। यहाँ तक कि सात दिन इसी दाँवपेंच में समाप्त हो गये। नित्यप्रति हजारों सैनिकों का वारा-न्यारा होता था परन्तु सात दिन तक भीष्म रणक्षेत्र से हटे, न अर्जुन को किसी प्रकार का कष्ट पहुँचा। सातवें दिन अर्जुन और शिखण्डी ने मिलकर भीष्म को अपने बाणों से पिरो[1] दिया। यहाँ तक कि वृद्ध, बाल जितेन्द्रिय, बाल ब्रह्मचारी योद्धाओं के योद्धा युद्ध के योग्य न रहा और गिर गया। जब भीष्म के गिरने का समाचार सैन्य दल में फैल गया तो द्रोण की आज्ञा से लड़ाई बन्द हो गई और दोनों ओर के योद्धा मान-मर्यादा के विचार से उनके सिरहाने एकत्रित हुए। भीष्म ने तकिये की इच्छा प्रकट की जिस पर दुर्योधन आदि कौरवों ने भाँति-भाँति के बहुमूल्य और नरम तकिये मँगाये, जिनको भीष्म ने स्वीकार नहीं किया और अर्जुन की ओर ध्यान देकर कहा कि मेरी समयानुकूल अवस्था के अनुसार मेरे लिए तकिये बना दे। अर्जुन ने ऐसी योग्यता से तीन बाण भूमि पर चलाये जिससे इन तीन बाणों से भीष्म के सिर के लिए तकिया बन गया। बाण-शैय्या के लिए बाणों का ही तकिया उपयुक्त था। भीष्म बहुत प्रसन्न हुए और अर्जुन को आर्शीवाद दिया। भीष्म की मृत्यु के संबंध में यह कहावत प्रचलित है कि जिस समय वह धरती पर गिरे वहाँ अनगिनत बाण थे और वह इसी तरह बाणों पर पड़े हुए कई दिनों तक जीवित रहे, मानो उनकी शैय्या बाणों की बनी हुई थी। इसीलिए अर्जुन ने बाणों का सिरहाना उनके लिए बनाया जिससे वे अत्यन्त प्रसन्न हुए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ बींध
संबंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज