श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
अध्याय-18
मोक्ष संन्यास योग
और जैसे चोरों के लिये राजमार्ग हितकर नहीं होता और वे जिस समय चलते हैं, उस समय प्रायः राजमार्ग से बचकर चलते हैं अथवा लोगों के लिये जो दिन होता है, राक्षसों के लिये वही रात होती है; जैसे किसी भाग्यहीन को जमीन में गड़ा हुआ खजाना कोयलों का ढेर ही प्रतीत होता है अथवा सच्चा आत्मस्वरूप जैसे जीव को नहीं के सदृश जान पड़ता है, ठीक वैसे ही जिस बुद्धि को समस्त धर्म कृत्य पातक ही जान पड़ते हैं, जो बुद्धि खरे को खोटा समझती है, सारे अर्थों को अनर्थों का रूप प्रदान करती है और सद्गुणों को दोष मानती है, किंबहुना वेदों में जो बातें उचित और करणीय बतलायी गयी हैं, उन्हीं सबको जो बुद्धि अनुचित और अकरणीय समझती है, उस बुद्धि को हे पाण्डुपुत्र! बिना किसी से पूछे ही तामसी कहना चाहिये। भला काली रात की भाँति ऐसी बुद्धि धर्म-कार्य के लिये किस प्रकार योग्य कहीं जा सकती है? हे आत्मबोधरूपी कुमुदचन्द्र! इस प्रकार मैंने तुम्हें बुद्धि के तीनों भेद स्पष्ट रूप से बतला दिये हैं। अब इसी बुद्धि के आधार पर निश्चय करके जो धृति समस्त कार्यों में सहायक होती है, उस धृति के भी तीन प्रकार उनके लक्षणोंसहित मैं तुमकों बतलाता हूँ; ध्यानपूर्वक सुनो।[1] |
टीका टिप्पडी और संदर्भ
- ↑ (724-732)
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |