ज्ञानेश्वरी पृ. 296

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर

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अध्याय-10
विभूति योग

ब्रह्मज्ञान का स्पष्ट बोध कराने में परम समर्थ हे गुरुदेव, आपको नमस्कार है। हे गुरुदेव, विद्यारूपी कमल का विकास आप ही हैं। पराप्रकृतिरूपी तरुणी के साथ सुखपर्वूक क्रीड़ा करने वाले आप ही हैं। आपको नमस्कार है। संसाररूपी अन्धकार का नाश करने वाले सूर्य आप ही हैं। आपका स्वरूप अमर्याद है। आपकी सामर्थ्य अनन्त है। जो तुरीयावस्था अर्थात् आत्म-समाधि अभी हाल में युवावस्था में प्राप्त होने को है, सहज रीति से उसका लालन-पालन करने वाले आप ही हैं। आपको नमस्कार है। आप सारे जगत् का पालन-पोषण करने वाले और मंगलमणि-निधान हैं। हे गुरुदेव सज्जनरूपी वन को सुगन्धित करने वाले चन्दन तथा आराधना करने योग्य देवता आप ही हैं आपको नमस्कार है। जैसे चक्रवाक पक्षी के चित्त को चन्द्रमा शान्त करता है, वैसे ही चतुर व्यक्तियों के चित्त को आप शान्त करते हैं। आप आत्म साक्षात्कार के सर्वाधिकारी हैं, वेद के ज्ञानरस के सागर हैं और सारे जगत् को मथने वाला जो काम-विकार है, उसका भी मन्थन करने वाले आप ही हैं; आपको नमस्कार है।

आप सद्भक्तों के भजन के पात्र हैं, संसाररूपी गजराज का गण्डस्थल तोड़ने वाले आप ही हैं और संसार की उत्पत्ति के आदि स्थान भी आप ही हैं। हे गुरुदेव, आपको नमस्कार है। हे महाराज आपके अनुग्रह यही विद्यापति गणेश हैं और जिस समय उन गणेश जी की कृपा मिलती है, उस समय मतिमन्द बालक भी समस्त विद्याओं के क्षेत्र में प्रवेश कर सकता है। जिस समय गुरु की उदार वाचा अभय वचन देती है, उसी समय श्रृंगार इत्यादि नौ रसोंरूपी दीपक प्रज्वलित हो जाता है अर्थात् दीख जाता है। हे महाराज! यदि आपकी स्नेहिल वागीश्वरी किसी गूँगे पर भी कृपा करे, तो वह भी ग्रन्थ-प्रणयन में स्वयं बृहस्पति के साथ प्रतिज्ञापूर्वक स्पर्धा कर सकता है। सिर्फ इतना ही नहीं, जिस किसी पर आपकी कृपादृष्टि का प्रकाश पड़ जाता है अथवा आपका कोमल हाथ जिसके मस्तक पर जा पड़ता है, वह जीव होने पर भी शिव के समकक्ष हो जाता है। जिसके कार्यों की ऐसी महिम है; उसका मैं अपनी मर्यादित वाचा की सामर्थ्य से भला कैसे वर्णन कर सकता हूँ। क्या कभी कोई सूर्य के शरीर में भी उबटन लगा सकता है? पुष्पों के द्वारा भला कल्प तरु का कहाँ तक श्रृंगार किया जा सकता है? क्षीरसागर का आवभगत भला किस प्रकार के व्यंजनों से किया जा सकता है? कपूर को किस सुगन्धित चीज से सुगन्धित किया जा सकता है? चन्दन पर किस वस्तु का लेप लगाया जा सकता है? अमृत को कैसे राँधा (पकाया) जा सकता है? क्या गगन को और भी ऊपर उठाने का कोई उपाय हो सकता है?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
पहला अर्जुन विषाद योग 1
दूसरा सांख्य योग 28
तीसरा कर्म योग 72
चौथा ज्ञान कर्म संन्यास योग 99
पाँचवाँ कर्म संन्यास योग 124
छठा आत्म-संयम योग 144
सातवाँ ज्ञान-विज्ञान योग 189
आठवाँ अक्षर ब्रह्म योग 215
नवाँ राज विद्याराज गुह्य योग 242
दसवाँ विभूति योग 296
ग्यारहवाँ विश्व रूप दर्शन योग 330
बारहवाँ भक्ति योग 400
तेरहवाँ क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 422
चौदहवाँ गुणत्रय विभाग योग 515
पंद्रहवाँ पुरुषोत्तम योग 552
सोलहवाँ दैवासुर सम्पद्वि भाग योग 604
सत्रहवाँ श्रद्धात्रय विभाग योग 646
अठारहवाँ मोक्ष संन्यास योग 681

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