गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 34

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

तीसरा अध्याय

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सम्पूर्ण कर्तव्यकर्मों को आपके अर्पण करने से क्या होगा?
जो मनुष्य दोषदृष्टि से रहित होकर श्रद्धापूर्वक सदा मेरे इस मतके अनुसार चलते हैं, वे भी सम्पूर्ण कर्मों के बन्धन से मुक्त हो जाते हैं।।31।।

परन्तु जो आपके मत के अनुसार नहीं चलते, उनका क्या होता है?
जो मेरे इस मत में दोषदृष्टि करके इसके अनुसार नहीं चलते, उन सांसारिक ज्ञानों में मोहित और पारमार्थिक ज्ञान से रहित अविवेकी मनुष्यों को तुम नष्ट हुए ही समझो।।32।।

आपके मत के अनुसार न चलने से उनका नाश (पतन) क्यों होता है?
ज्ञानी तो अपने राग-द्वेषरहित शुद्ध स्वभाव के अनुसार क्रिया करता है। परन्तु ये मनुष्य अपने राग-द्वेषयुक्त दूषित स्वभाव के अनुसार कर्म करते हैं, इसलिये शास्त्रमर्यादा के अनुसार कर्म करने में उनका वश नहीं चलता, जबर्दस्ती नहीं चलती। इस प्रकार अपने दूषित स्वभाव के वश में होने के कारण उनका पतन हो जाता है।।33।।

इस पतन से बचने का क्या उपाय है भगवन्?
प्रत्येक इन्द्रिय के विषय में राग-द्वेष अनुकूलता और प्रतिकूलता के द्वारा स्थित हैं, इसलिये मनुष्य राग-द्वेष के वशीभूत होकर कर्म न करें; क्योंकि ये दोनों ही मनुष्य के शत्रु हैं।।34।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
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