गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 33

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

तीसरा अध्याय

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अज्ञानी और ज्ञानी- इन दोनों के कर्मों के करने में क्या अन्तर होता है?
सम्पूर्ण कर्म सब प्रकार से प्रकृति के गुणों द्वारा किये जाते हैं, परन्तु अहंकार से मोहित अन्तःकरणवाला अज्ञानी मनुष्य ‘मैं कर्ता हूँ’ ऐसा मान लेता है और हे महाबाहो! गुण-विभाग और कर्म-विभाग को[1]तत्त्व से जानने वाला ज्ञानी महापुरुष ‘सम्पूर्ण गुण ही गुणों में बरत रहे हैं अर्थात् सम्पूर्ण क्रियाएँ प्रकृति में ही हो रही हैं’- ऐसा अनुभव करके उनमें आसक्त नहीं होता।।27-28।।

जितनी जिम्मेवारी आप पर है, उतनी ही जिम्मेवारी क्या ज्ञानी महापुरुष पर भी होती है?
नहीं, ज्ञानी महापुरुष अज्ञानियों की तरह कर्म न करे तो कोई बात नहीं, पर वह किसी भी रीति से कम-से-कम प्रकृतिजन्य गुणों से मोहित और गुणों तथा कर्मों में आसक्त अज्ञानियों को विचलित न करे।।29।।

पर मैं तो विचलित हो जाता हूँ भगवन्! क्या करूँ?
तू विवेकवती बुद्धि के द्वारा सम्पूर्ण कर्मों को मेरे अर्पण करके कामना, ममता और सन्ताप से रहित होकर युद्ध (कर्तव्यकर्म) कर।।30।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
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अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153
  1. सत्त्व, रज और तम- इन तीनों गुणों का कार्य होने से शरीर, इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि, प्राणी, पदार्थ आदि सब संसार ‘गुण-विभाग’ है और उसमें होने वाली सब क्रियाएँ ‘कर्म-विभाग’ है।

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