गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 116

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

पन्द्रहवाँ अध्याय

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तो फिर इससे सम्बन्ध तोड़ने के लिये मनुष्य को क्या करना चाहिये?
तादात्म्य, ममता और कामनारूपी शाखाओं के दृढ़ मूलवाले संसारवृक्ष को असंगता-रूप शस्त्र के द्वारा काटकर उस परमपद परमात्मा की खोज करनी चाहिये।

खोज न कर सके तो क्या करना चाहिये भगवन्?
जिसको प्राप्त होने पर मनुष्य फिर लौटकर संसार में नही आते और जिससे अनादिकाल से यह सृष्टि फैली हुई है, उस आदिपुरुष परमात्मा के शरण हो जाना चाहिये।।3-4।।

शरण होने से क्या होगा?
शरण होने वाले मनुष्य मान और मोह से रहित हो जाते हैं, आसक्ति न रहने के कारण उनमें ममता आदि दोष नहीं रहते, वे नित्य-निरन्तर परमात्मा में ही स्थित रहते हैं, वे सम्पूर्ण कामनाओं से रहित हो जाते हैं, वे सुख-दुःखरूप द्वन्द्वों से रहित होकर अविनाशी पद को प्राप्त हो जाते हैं।।5।।

वह अविनाशी पद कैसा है भगवन्?
सूर्य, चन्द्रमा और अग्नि जिसको प्रकाशित नहीं कर सकते तथा जहाँ जाने पर मनुष्य लौटकर संसार में नहीं आते, वह अविनाशी पद ही मेरा परमधाम है।।6।।

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