विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीजो जैसेहि तैसेहि उठि धायीं-3करवा दें दर्शन आपको? नारदजी बोले- न-न, हम अपने दर्शन के लिए नहीं रो रहे हैं, हम तो चाहे जब कर लें; हम उन लोगों के लिए रो रहे हैं जो तत्त्वज्ञान प्राप्त करके मुक्त हो गये- क्योंकि उनको कृष्ण-दर्शन का यह सुख अब नहीं मिल सकता। हाय, हाय। यह सुख पाये बिना ही वे संसार से चले गये- इसलिए हमें रोना आता है। नारायण। ये श्रीकृष्ण जो हैं- निवारण प्रकट परब्रह्म परमात्मा हैं। नेति-नेति जीवों के लिए हैं, परमात्मा के लिए नेति-नेति नहीं है। यह व्यतिरेकमुखी जो ज्ञान है कि निषेध करो फिर तुम ब्रह्म कहो, यह तो जिनमें अज्ञान का आवरण है उनके लिए है। परंतु जहाँ अज्ञान के आवरण का अत्यंताभाव है- अर्थात् पहले भी न कभी अज्ञा का आवरण था और न बाद में ज्ञान प्राप्त करके वह मिटाया गया, जहाँ अज्ञान का आवरण कभी आया ही नहीं, हुआ ही नहीं, जिनको कभी अज्ञान छुआ ही नहीं, वह श्रीकृष्ण- तमेव परमात्मानम्- वही है वही, दूसरा मत समझना। जिसका तीनों अवस्था में अन्वय है वह नहीं, जो तीनों अवस्था से व्यतिरिक्त है सो नहीं, जो सर्वत्म है- जिसमें तीन अवस्थाएं हैं जो हैं जिससे अलग नहीं हैं, तीन अवस्थाएँ जिसका स्वरूप हैं, ऐसा जो परमात्मा है- वह है श्रीकृष्ण। भले गोपी जारबुद्ध्यापि संगता- श्रीकृष्ण को पहचानती नहीं थी। परंतु व्यवहार में आप देखो नहि वस्तुशक्तिः बुद्धिमपेक्षते। वस्तु- शक्ति को बुद्धि की अपेक्षा नहीं होती। अच्छा, अनजान में कोई नमक खावे, तो क्या उसकी जीभ पर नमकीन पानी नहीं बनेगा? अनजाने में कोई आग में हाथ डाल ते, तो आग क्या उसके हाथों को नहीं जलावेगी अनजान में कोई अमृत पी ले, तो क्या वह अमर नहीं हो जावेगा? अनजान में कोई विष पी ले, तो क्या नहीं मरेगा? तो जब वही निरावरण परमब्रह्म परमात्मा जीवों के कल्याण के लिए आया, यहाँ भी यदि बुद्धि की अपेक्षा होवे कि पहचानो कि ये परब्रह्म हैं तो अवतारकाल में और सामान्य काल में अन्तर ही क्या होगा? ये तो अवतीर्ण ही हुए हैं, इसलिए कि लोग बिना श्रवण-मनन-निधिध्यासन के भी अमरत्व प्राप्त हो जायँ। वह अवतीर्ण हो इसीलिए हुए हैं कि बिना माला फेरे, बिना मूर्ति-पूजा किए, कल्याण को प्राप्त हो जायँ। यह तो अहीर का छोरा है न- देखो री, यह नन्द का छोरा बरछी मारे जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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