विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीश्रीकृष्ण के प्रति गोपियों का अभिसारकाम का नाम सुनकर घबड़ाना नहीं। काम बुरा नहीं है, उसका विषय बुरा और भला होता है। जैसे-अपने पति के प्रति या अपनी पत्नी के प्रति यदि कामवासना हो तो धर्म के विरुद्ध नहीं है; धर्म के विरुद्ध नहीं होने से वह पाप की वासना नहीं है। ऐसे ही भक्ति मार्ग में अपना पति परमात्मा है, परमेश्वर है। उस परमेश्वर के प्रति जो वासना होती है, वह संसार में फँसाने वाली नहीं है। और यह कहो कि हम तो बिलकुल निर्वासन होना चाहते हैं तो आपको बड़ा अभिमान होगा, आप बड़ा गौरव अनुभव करेंगे कि हमारे बराबर और कौन है? अरे, ये ईश्वर के पीछे लगे हए बहुत लोग तो वासना वाले हैं और हम हैं निष्काम निर्वासन। अब हमसे आकर पूछो तो हम बतावें। यह निर्वासन होने की जो वासना है, आत्मकाम इसे बोलते हैं- तुम, अभी तो निर्वासन हो नहीं, निर्वासन होना चाहते हो; तो यह निर्वासन होने की कामना त्वंपदार्थ-विषयक कामना है। और ईश्वर की प्राप्ति की कामना तत्पदार्थ-विषयक कामना है। क्योंकि असल में त्वपदार्थ और तत्पदार्थ दो होते नहीं है इसलिए बिलकुल निर्वासन होने में भला क्या गौरव हुआ? कोई त्वं-पद के लक्ष्यार्थ का शोधन करना चाहता है, की तत्पद के लक्ष्यार्थ का शोधन करना चाहता है। निर्वासन होने की वासना भी वासना है और ईश्वर को पाने की वासना भी वासना है। अरो। मुक्ति की वासना से भी वासना है। भागवत् में जहाँ कामनाओं की गिनती करायी गयी है वहाँ बताया है- अकामः सर्वकामो वा मोक्षकाम उदारधीः । ज्ञान की कामना तो कामना नहीं, मोक्ष की कामना तो कामना नहीं और भगवत् प्राप्ति की कामना, कामना! अरे भाई। एकांगी विचार मत करो, उस पर दृष्टिपात करो। जहाँ सर्वनियन्ता, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, अन्तर्यामी, हमारी बुद्धि के और हमारे बीच में बैठकर अंतः प्रविष्टः शास्ता जनानां। भीतर बैठकर, जो सबका प्रशासन कर रहा है उसकी कामना भी कामना नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
प्रवचन संख्या | विषय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज