कर्ण की रणयात्रा

महाभारत द्रोण पर्व मेंं द्रोणाभिषेक पर्व के अंतर्गत दूसरे अध्याय मेंं 'संजय ने धृतराष्ट्र से कर्ण द्वारा कौरवों की रक्षा करने का निश्चय और युद्ध में पांडवों पर विजय हेतु रणभूमि में जाने' का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है-[1]

कर्ण का दुर्योधन के पास जाना

संजय कहते हैं- राजन! अधिरथनन्‍दन सूतपुत्र कर्ण यह जानकर कि भीष्‍मजी के मारे जाने पर कौरवों की सेना अगाध महासागर में टूटी हुई नौका के समान संकट में पड़ गयी है, सगे भाई के समान आपके पुत्र की सेना को संकट से उबारने के लिये चला। राजन! तत्‍पश्‍चात योद्धाओं के मुख से अपनी मर्यादा से कभी च्‍युत न होने वाले पुरुषप्रवर शान्‍तनुनन्‍दन महारथी भीष्‍म के मारे जाने का विस्‍तृत वृत्तान्‍त सुनकर धनुर्धरों में श्रेष्‍ठ शत्रुसूदन कर्ण सहसा दुर्योधन के समीप चल दिया। रथियों में श्रेष्‍ठ भीष्‍म के शत्रुओं द्वारा मारे जाने पर, जैसे पिता अपने पुत्रों को संकट से बचाने के लिये जाता हो, उसी प्रकार सूतपुत्र कर्ण डूबती हुई नौका के समान आपके पुत्र की सेना को संकट से उबारने के लिये बड़ी उतावली के साथ दुर्योधन के निकट आ पहुँचा।

शत्रुसमूह का विनाश करने वाले कर्ण ने परशुराम जी के दिये हुए दिव्‍य धनुष पर प्रत्‍यंचा चढ़ा ली और उस पर हाथ फेरकर कालाग्नि तथा वायु के समान शक्तिशाली बाणों को ऊपर उठाते हुए इस प्रकार कहा। कर्ण बोला– ब्राह्मणों के शत्रुओं का विनाश करने वाले तथा अपने ऊपर किये हुए उपकारों का आभार मानने वाले जिन वीर शिरोमणि भीष्‍म जी में चन्‍द्रमा में सदा सुशोभित होने वाले शशचिह्न के समान सदा धृति, बुद्धि, पराक्रम, ओज, सत्‍य, स्‍मृति, विनय, लज्‍जा, प्रियवाणी तथा अनसूया[2]– ये सभी विरोचित गुण तथा दिव्‍यास्‍त्र शोभा पाते थे, वे शत्रुवीरों के हन्‍ता देवव्रत यदि सदा के लिये शान्‍त हो गये तो मैं सम्‍पूर्ण वीरों को मारा गया ही मानता हूँ। निश्‍चय ही इस संसार में कर्मों के अनित्‍य सम्‍बन्‍ध से कभी कोई वस्‍तु स्थिर नहीं रहती है। श्रेष्‍ठ एवं महान व्रतधारी भीष्‍म जी के मारे जाने पर कौन संशयरहित होकर कह सकता है कि कल सूर्योदय होगा ही[3] भीष्‍मजी में वसु देवताओं के समान प्रभाव था। वसुओं के समान शक्तिशाली महाराज शान्‍तनु से उनकी उत्‍पति हुई थी। ये वसुधा के स्‍वामी भीष्‍म अब वसु देवताओं को ही प्राप्‍त हो गये हैं; अत: उनके अभाव में तुम सभी लोग अपने धन, पुत्र, वसुन्‍धरा, कुरुवंश, कुरूदेश की प्रजा तथा इस कौरव सेना के लिये शोक करो।

कर्ण द्वारा कौरव सेना का हर्ष बढ़ाना

संजय कहते हैं- महान प्रभावशाली वर देने में समर्थ लोकेश्वर शासक तथा अमित तेजस्‍वी भीष्‍म के मारे जाने पर भरतवंशियों की पराजय होने से कर्ण मन-ही-मन बहुत दुखी हो नेत्रों से आँसू बहाता हुआ लंबी साँस खीचनें लगा। राजन! राधानन्‍दन कर्ण की यह बात सुनकर आपके पुत्र और सैनिक एक-दूसरे की ओर देखकर शोकवश बारंबार फूट-फूटकर रोने तथा नेत्रों से आँसू बहाने लगे। पाण्‍डव सेना के राजा लोगों द्वारा जब कौरव-सेना का ध्‍वंस होने लगा और बड़ा भारी संग्राम आरम्‍भ हो गया, तब सम्‍पूर्ण महारथियों में श्रेष्‍ठ कर्ण समस्‍त श्रेष्‍ठ रथियों का हर्ष और उत्‍साह बढ़ाता हुआ इस प्रकार बोला। ‘सदा मृत्यु की ओर दौड़ लगाने वाले इस अनित्‍य संसार में आज मुझे बहुत चिन्‍तन करने पर भी कोई वस्‍तु स्थिर नहीं दिखायी देती; अन्‍यथा युद्ध में आप जैसे शूरवीरों के रहते हुए पर्वत के समान प्रकाशित होने वाले कुरुश्रेष्‍ठ भीष्‍म कैसे मार गिराये गये? ‘महारथी शान्‍तनुनन्‍दन भीष्‍म का रण में गिराया जाना सूर्य के आकाश से गिरकर पृथ्वी पर आ पड़ने के समान है। यह हो जाने पर समस्‍त भूपाल अर्जुन का वेग सहन करने में असमर्थ हैं, जैसे पर्वतों को भी ढोने वाले वायु का वेग साधारण वृक्ष नहीं सह सकते हैं।[1] आज यह कौरवदल अपने प्रधान सेनापति के मारे जाने से अनाथ एवं अत्‍यन्‍त पीड़ित हो रहा है। शत्रुओं ने इसके उत्‍साह को नष्‍ट कर दिया है। इस समय संग्रामभूमि में मुझे इस कौरव सेना की उसी प्रकार रक्षा करनी है, जैसे महात्‍मा भीष्‍म किया करते थे। मैंने यह भार अपने ऊपर ले लिया। जब मैं यह देखता हूँ कि सारा जगत अनित्‍य है तथा युद्धकुशल भीष्‍म भी युद्ध में मारे गये हैं, तब ऐसे अवसर पर मैं भय किस लिये करूँ? मैं उन कुरुप्रवर पाण्‍डवों को अपने सीधे जाने वाले बाणों द्वारा यमलोक पहुँचाकर रणभूमि में विचरूँगा और संसार में उत्तम यश का विस्‍तार करके रहूँगा अथवा शत्रुओं के हाथ से मारा जाकर युद्धभूमि में सदा के लिये सो जाऊँगा।[4]

युधिष्ठिर धैर्य, बुद्धि, सत्‍य और सत्त्वगुण से सम्‍पन्‍न हैं। भीमसेन का पराक्रम सैकड़ों हाथियों के समान है तथा अर्जुन भी देवराज इन्‍द्र के पुत्र एवं तरुण हैं। अत: पाण्‍डवों की सेना को सम्‍पूर्ण देवता भी सुगमतापूर्वक नहीं जीत सकते। जहाँ रणभूमि में यमराज के समान नकुल और सहदेव विद्यमान हैं, जहाँ सात्‍यकि तथा देवकीनन्‍दन भगवान श्रीकृष्‍ण हैं, उस सेना में कोई कायर मनुष्‍य प्रवेश कर जाये तो वह मौत के मुख से जीवित नहीं निकल सकता। मनस्‍वी पुरुष बढ़े हुए तप का तप से और प्रचण्‍ड बल का बल से ही निवारण करते हैं। यह सोचकर मेरा मन भी शत्रुओं को रोकने के लिये दृढ़ निश्चय किये हुए है तथा अपनी रक्षा के लिये भी पर्वत की भाँति अविचल भाव से स्थित है।

कर्ण द्वारा कौरव की रक्षा करने का निश्चय करना

फिर कर्ण अपने सारथि से कहने लगा- सूत! इस प्रकार मैं युद्ध में जाकर इन शत्रुओं के बढ़ते हुए प्रभाव को नष्‍ट करते हुए आज इन्‍हें जीत लूँगा। मेरे मित्रों के साथ कोई द्रोह करे, यह मुझे सह्य नहीं। जो सेना के भाग जाने पर भी साथ देता है, व‍ही मित्र है। या तो मैं सत्‍पुरुषों के करने योग्‍य इस श्रेष्‍ठ कार्य को सम्‍पन्‍न करूँगा अथवा अपने प्राणों का परित्‍याग करके भीष्‍मजी के ही पथ पर चला जाऊँगा। मैं संग्रामभूमि में शत्रुओं के समस्‍त समुदायों का संहार कर डालूँगा अथवा उन्‍हीं के हाथ से मारा जाकर वीर-लोक प्राप्‍त कर लूँगा। सूत! दुर्योधन का पुरुषार्थ प्रतिहत हो गया है। उसके स्‍त्री-बच्‍चे रो-रोकर 'त्राहि-त्राहि' पुकार रहे हैं। ऐसे अवसर पर मुझे क्‍या करना चाहिये, यह मैं जानता हूँ। अत: आज मैं राजा दुर्योधन के शत्रुओं को अवश्‍य जीतूँगा। कौरवों की रक्षा और पाण्‍डवों के वध की इच्‍छा करके मैं प्राणों की भी परवाह न कर इस महाभयंकर युद्ध में समस्‍त शत्रुओं का संहार कर डालूँगा और दुर्योधन को सारा राज्‍य सौंप दूँगा।

तुम मेरे शरीर में मणियों तथा रत्‍नों से प्रकाशित सुन्‍दर एवं विचित्र सुवर्णमय कवच बाँध दो और मस्‍तक पर सूर्य के समान तेजस्‍वी शिरस्‍त्राण रख दो। अग्नि, विष तथा सर्प के समान भयंकर बाण एवं धनुष ले आओ। 'मेरे सेवक बाणों से भरे हुए सोलह तरकश रख दें, दिव्‍य धनुष ले आ दें, बहुत- से खड्गों, शक्तियों, भारी गदाओं तथा सुवर्णजटित विचित्र नाल वाले शंख को भी ले आकर रख दें। हाथी को बाँधने के लिये बनी हुई इस विचित्र सुनहरी रस्‍सी को तथा कमल के चिह्न से युक्‍त दिव्‍य एवं अद्भुत ध्वज को स्‍वच्‍छ सुन्‍दर वस्‍त्रों से पोंछकर ले आवें। इसके सिवा सुन्‍दर ढंग से गुँथी हुई विचित्र माला और खील आदि मांगलिक वस्‍तुएँ प्रस्‍तुत करें।[4] सूतपुत्र! तुम शीघ्र ही मेरे लिये श्रेष्‍ठ एवं शीघ्रगामी घोड़े ले आओ, जो श्‍वेत बादलों के समान उज्‍ज्‍वल तथा मन्‍त्रपूत जल से नहाये हुए हों, शरीर से हृष्‍टपुष्‍ट हों और जिन्‍हें सोने के आभूषणों से सजाया गया हो। उन्‍ही घोड़ों से जुता हुआ सुन्‍दर रथ शीघ्र ले आओ, जो सोने की मालाओं से अलंकृत, सूर्य और चन्‍द्रमा के समान प्रकाशित होने वाले विचित्र रत्‍नों से जटित तथा युद्धोपयोगी सामग्रियों से सम्‍पन्‍न हो। विचित्र एवं वेगशाली धनुष, उत्तम प्रत्‍यंचा, कवच, बाणों से भरे हुए विशाल तरकश और शरीर के आवरण- इन सबको लेकर शीघ्र तैयार हो जाओ। वीर! रणयात्रा की सारी आवश्‍यक सामग्री, दही से भरे हुए कांस्‍य और सुवर्ण के पात्र आदि सब कुछ शीघ्र ले आओ। यह सब लाने के पश्चात् मेरे गले में माला पहनाकर विजय-यात्रा के लिये तुम लोग तुरंत नगाड़े बजवा दो।[5]

सूत! यह सब कार्य करके तुम शीघ्र ही रथ लेकर उस स्‍थान पर चलो, जहाँ किरीटधारी अर्जुन, भीमसेन, धर्मपुत्र युधिष्ठिर तथा नकुल-सहदेव खड़े हैं। वहाँ युद्धस्‍थल में उनसे भिड़कर या तो उन्‍हीं को मार डालूँगा। या स्वंय ही शत्रुओं के हाथ से मारा जाकर भीष्म के पास चला जाऊँगा। जिस सेना में सत्‍यधृति राजा युधिष्ठिर खड़े हों, भीमसेन, अर्जुन, वासुदेव, सात्‍यकि तथा सृंजय मौजूद हों, उस सेना को मैं राजाओं के लिये अजेय मानता हूँ। तथापि मैं समरभूमि में सावधान रहकर युद्ध करूँगा और यदि सबका संहार करने वाली मृत्यु स्‍वयं आकर अर्जुन की रक्षा करे तो भी मैं युद्ध के मैदान में उनका सामना करके उन्‍हें मार डालूँगा अथवा स्‍वयं ही भीष्‍म के मार्ग से यमराज का दर्शन करने के लिये चला जाऊँगा। अब ऐसा तो नहीं हो सकता कि मैं उन शूरवीरों के बीच में न जाऊँ। इस विषय में मैं इतना ही कहता हूँ कि जो मित्रद्रोही हों, जिनकी स्‍वामी भक्ति दुर्बल हो तथा जिनके मन में पाप भरा हो; ऐसे लोग मेरे साथ न रहें।

कर्ण का युद्ध के लिये जाना

संजय कहते हैं- राजन! ऐसा कहकर कर्ण वायु के समान वेगशाली उत्तम घोड़ों से जुते हुए, कूबर और पताका से युक्‍त, सुवर्णभूषित, सुन्‍दर, समृद्धिशाली, सुदृढ़ तथा श्रेष्‍ठ रथ पर आरूढ़ हो युद्ध में विजय पाने के लिये चल दिया। उस समय देवगणों से इन्‍द्र की भाँति समस्‍त कौरवों से पूजित हो रथियों में श्रेष्‍ठ, भयंकर धनुर्धर, महामनस्‍वी कर्ण युद्ध के उस मैदान में गया, जहाँ भरतशिरोमणि भीष्‍म का देहावसान हुआ था। सुवर्ण, मुक्‍ता, मणि तथा रत्‍नों की माला से अलंकृत सुन्‍दर ध्‍वजा से सुशोभित, उत्तम घोड़ों से जुते हुए तथा मेघ के समान गंभीर घोष करने वाले रथ के द्वारा अमित तेजस्‍वी कर्ण विशाल सेना साथ लिये युद्धभूमि की ओर चल दिया। अग्नि के समान तेजस्‍वी अपने सुन्‍दर रथ पर बैठा हुआ अग्नि सदृश कान्तिमान, सुन्‍दर एवं धनुर्धर महारथी अधिरथपुत्र कर्ण विमान में विराजमान देवराज इन्‍द्र के समान सुशोभित हुआ।[5]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 2 श्लोक 1-12
  2. दोषदृष्टि का अभाव
  3. अर्थात जीवन अनित्‍य होने के कारण हम में से कौन कल का सूर्योदय देख सकेगा, यह कहना कठिन है। जब मृत्‍युंजयी भीष्‍म जी मारे गये, तब हमारे जीवन की क्‍या आशा है?
  4. 4.0 4.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 2 श्लोक 13-25
  5. 5.0 5.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 2 श्लोक 26-37

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प्रतिज्ञा पर्व
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जयद्रथवध पर्व
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युधिष्ठिर का संवाद | सात्यकि की अर्जुन के पास जाने की तैयारी और उनका प्रस्थान | सात्यकि का भीम को युधिष्ठिर की रक्षा हेतु लौटाना | सात्यकि का पराक्रम | सात्यकि का द्रोणाचार्य से युद्ध | सात्यकि का कृतवर्मा से युद्ध | धृतराष्ट्र का संजय से विषादयुक्त वचन | संजय का धृतराष्ट्र को दोषी बताना | कृतवर्मा का भीमसेन से युद्ध | कृतवर्मा का शिखण्डी से युद्ध | सात्यकि द्वारा कृतवर्मा की पराजय | सात्यकि द्वारा त्रिगर्तों की गजसेना का संहार | सात्यकि द्वारा जलसंध का वध | सात्यकि का पराक्रम तथा दुर्योधन और कृतवर्मा की पुन: पराजय | सात्यकि और द्रोणाचार्य का घोर युद्ध | सात्यकि द्वारा द्रोण की पराजय और कौरव सेना का पलायन | सात्यकि द्वारा सुदर्शन का वध | सात्यकि और उनके सारथि का संवाद | सात्यकि द्वारा काम्बोजों और यवन आदि सेना की पराजय | सात्यकि द्वारा दुर्योधन की सेना का संहार | दुर्योधन का भाइयों सहित पलायन | सात्यकि द्वारा पाषाणयोधी म्लेच्छों की सेना का संहार | दु:शासन का सेना सहित पलायन | द्रोणाचार्य का दु:शासन को फटकारना | द्रोणाचार्य द्वारा वीरकेतु आदि पांचालों का वध | द्रोणाचार्य का धृष्टद्युम्न से घोर युद्ध तथा उनका मूर्च्छित होना | धृष्टद्युम्न का पलायन और द्रोणाचार्य की विजय | सात्यकि का घोर युद्ध और दु:शासन की पराजय | कौरव-पांडव सेना का घोर युद्ध | पांडवों के साथ दुर्योधन का संग्राम | द्रोणाचार्य द्वारा बृहत्क्षत्र का वध | द्रोणाचार्य द्वारा धृष्टकेतु का वध | द्रोणाचार्य द्वारा जरासन्धपुत्र सहदेव तथा क्षत्रधर्मा का वध | द्रोणाचार्य द्वारा चेकितान की पराजय | अर्जुन और सात्यकि के प्रति युधिष्ठिर की चिन्ता | युधिष्ठिर का भीमसेन को अर्जुन और सात्यकि का पता लगाने के लिए भेजना | भीमसेन का कौरव सेना में प्रवेश | भीमसेन द्वारा द्रोणाचार्य के सारथि सहित रथ को चूर्ण करना | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध | भीमसेन का द्रोणाचार्य के रथ को आठ बार फेंकना | भीमसेन की गर्जना सुनकर युधिष्ठिर का प्रसन्न होना | भीमसेन और कर्ण का युद्ध तथा कर्ण की पराजय | दुर्योधन का द्रोणाचार्य को उपालम्भ देना | द्रोणाचार्य का दुर्योधन को द्यूत का परिणाम दिखाकर युद्ध हेतु वापस भेजना | युधामन्यु तथा उत्तमौजा का दुर्योधन के साथ युद्ध | भीमसेन द्वारा कर्ण की पराजय | भीमसेन और कर्ण का घोर युद्ध | भीमसेन द्वारा कर्ण के सारथि सहित रथ का विनाश | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुर्जय का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुर्मुख का वध | कर्ण-भीमसेन युद्ध में कर्ण का पलायन | धृतराष्ट्र का खेदपूर्वक भीमसेन के बल का वर्णन और अपने पुत्रों की निन्दा | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के पाँच पुत्रों का वध | भीमसेन और कर्ण का युद्ध तथा कर्ण का पलायन | भीमसेन का पराक्रम तथा धृतराष्ट्र के सात पुत्रों का वध | भीमसेन का कर्ण से युद्ध तथा दुर्योधन के सात भाइयों का वध | भीमसेन और कर्ण का भयंकर युद्ध | पहले भीम की और पीछे कर्ण की विजय | अर्जुन के बाणों से व्यथित होकर कर्ण और अश्वत्थामा का पलायन | सात्यकि द्वारा अलम्बुष का और दु:शासन के घोड़ों का वध | सात्यकि का अद्भुत पराक्रम | श्रीकृष्ण का अर्जुन को सात्यकि के आगमन की सूचना देना | सात्यकि के आगमन से अर्जुन की चिन्ता | भूरिश्रवा और सात्यकि का रोषपूर्ण सम्भाषण और युद्ध | अर्जुन द्वारा भूरिश्रवा की भुजा का उच्छेद | भूरिश्रवा का अर्जुन को उपालम्भ देना और अर्जुन का उत्तर | भूरिश्रवा का आमरण अनशन | सात्यकि द्वारा भूरिश्रवा का वध | भूरिश्रवा द्वारा सात्यकि के अपमानित होने का कारण | वृष्णिवंशी वीरों की प्रशंसा | अर्जुन का जयद्रथ पर आक्रमण तथा दुर्योधन और कर्ण का वार्तालाप | अर्जुन का कौरव योद्धाओं के साथ युद्ध | कर्ण और अर्जुन का युद्ध तथा कर्ण की पराजय | अर्जुन का अद्भुत पराक्रम | अर्जुन द्वारा सिन्धुराज जयद्रथ का वध | अर्जुन के बाणों से कृपाचार्य का मूर्छित होना तथा अर्जुन का खेद | कर्ण और सात्यकि का युद्ध एवं कर्ण की पराजय | अर्जुन का कर्ण को फटकारना और वृषसेन वध की प्रतिज्ञा | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रतिज्ञा पूर्ण होने पर बधाई देना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को रणभूमि का दृश्य दिखाते हुए युधिष्ठिर के पास जाना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को अर्जुन की विजय का समाचार सुनाना | युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति | युधिष्ठिर द्वारा अर्जुन, भीम एवं सात्यकि का अभिनन्दन | दुर्योधन का व्याकुल होकर द्रोणाचार्य को उपालम्भ देना | द्रोणाचार्य का दुर्योधन को उत्तर और युद्ध के लिए प्रस्थान | दुर्योधन और कर्ण की बातचीत तथा पुन: युद्ध का आरम्भ
घटोत्कचवध पर्व
कौरव-पांडव सेना का युद्ध | दुर्योधन और युधिष्ठिर का संग्राम तथा दुर्योधन की पराजय | रात्रियुद्ध में पांडव सैनिकों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण | द्रोणाचार्य द्वारा शिबि का वध | भीमसेन द्वारा ध्रुव, जयरात एवं कलिंग राजकुमार का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुष्कर्ण और दुर्मद का वध | सोमदत्त और सात्यकि का युद्ध तथा सोमदत्त की पराजय | द्रोणाचार्य का पांडवों से घोर संग्राम | घटोत्कच और अश्वत्थामा का युद्ध तथा अंजनपर्वा का वध | अश्वत्थामा द्वारा एक अक्षौहिणी राक्षस सेना का संहार | अश्वत्थामा का अद्भुत पराक्रम तथा द्रुपदपुत्रों का वध | सोमदत्त की मूर्छा तथा भीमसेन द्वारा बाह्लीक का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों और शकुनि के पाँच भाइयों का वध | द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर के युद्ध में युधिष्ठिर की विजय | दुर्योधन और कर्ण की बातचीत | कृपाचार्य द्वारा कर्ण को फटकारना | कर्ण द्वारा कृपाचार्य का अपमान | अश्वत्थामा का कर्ण को मारने के लिये उद्यत होना | पांडवों और पांचालों का कर्ण पर आक्रमण तथा कर्ण का पराक्रम | अर्जुन द्वारा कर्ण की पराजय | दुर्योधन का अश्वत्थामा से पांचालों के वध का अनुरोध | अश्वत्थामा का दुर्योधन को उपालम्भपूर्ण आश्वासन तथा पांचालों से युद्ध | अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न से युद्ध तथा उसका अद्भुत पराक्रम | भीमसेन और अर्जुन का आक्रमण तथा कौरव सेना का पलायन | सात्यकि द्वारा सोमदत्त का वध | द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर का युद्ध | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को द्रोणाचार्य से दूर रहने का आदेश | कौरवों और पांडवों की सेनाओं में प्रदीपों का प्रकाश | कौरवों और पांडवों की सेनाओं का घमासान युद्ध | दुर्योधन का द्रोणाचार्य की रक्षा हेतु सैनिकों को आदेश | कृतवर्मा द्वारा युधिष्ठिर की पराजय | सात्यकि द्वारा भूरि का वध | घटोत्कच और अश्वत्थामा का घोर युद्ध | भीम और दुर्योधन का युद्ध तथा दुर्योधन का पलायन | कर्ण द्वारा सहदेव की पराजय | शल्य द्वारा विराट के भाई शतानीक का वध और विराट की पराजय | अर्जुन से पराजित होकर अलम्बुष का पलायन | शतानीक के द्वारा चित्रसेन की पराजय | वृषसेन के द्वारा द्रुपद की पराजय | प्रतिबिन्ध्य एवं दु:शासन का युद्ध | नकुल के द्वारा शकुनि की पराजय | शिखण्डी और कृपाचार्य का घोर युद्ध | धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य से युद्ध | धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुमसेन का वध | सात्यकि और कर्ण का युद्ध | कर्ण की दुर्योधन को सलाह | शकुनि का पांडव सेना पर आक्रमण | सात्यकि से दुर्योधन की पराजय | अर्जुन से शकुनि और उलूक की पराजय | धृष्टद्युम्न से कौरव सेना की पराजय | दुर्योधन के उपालम्भ से द्रोणाचार्य और कर्ण का घोर युद्ध | अर्जुन सहित भीमसेन का कौरवों पर आक्रमण | कर्ण द्वारा धृष्टद्युम्न एवं पांचालों की पराजय | कर्ण के पराक्रम से युधिष्ठिर की घबराहट | श्रीकृष्ण और अर्जुन का घटोत्कच को कर्ण के साथ युद्ध हेतु भेजना | घटोत्कच और जटासुरपुत्र अलम्बुष का घोर युद्ध | घटोत्कच द्वारा जटासुरपुत्र अलम्बुष का वध | घटोत्कच और उसके रथ आदि के स्वरूप का वर्णन | कर्ण और घटोत्कच का घोर संग्राम | अलायुध के स्वरूप और रथ आदि का वर्णन | भीमसेन और अलायुध का घोर युद्ध | घटोत्कच द्वारा अलायुध का वध और दुर्योधन का पश्चाताप | कर्ण द्वारा इन्द्रप्रदत्त शक्ति से घटोत्कच का वध | घटोत्कच वध से पांडवों का शोक तथा श्रीकृष्ण की प्रसन्नता | श्रीकृष्ण का अर्जुन को जरासंध आदि के वध करने का कारण बताना | कर्ण द्वारा अर्जुन पर शक्ति न छोड़ने के रहस्य का वर्णन | धृतराष्ट्र का पश्चाताप और संजय का उत्तर | युधिष्ठिर का शोक और श्रीकृष्ण तथा व्यास द्वारा उसका निवारण
द्रोणवध पर्व
| अर्जुन के कहने से उभयपक्ष के सैनिकों का सो जाना | उभयपक्ष के सैनिकों का चन्द्रोदय के बाद पुन: युद्ध में लग जाना | दुर्योधन का उपालम्भ और द्रोणाचार्य का व्यंग्यपूर्ण उत्तर | पांडव वीरों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण | द्रुपद के पौत्रों तथा द्रुपद और विराट आदि का वध | धृष्टद्युम्न की प्रतिज्ञा और दोनों दलों में घमासान युद्ध | युद्धस्थल की भीषण अवस्था का वर्णन | नकुल के द्वारा दुर्योधन की पराजय | दु:शासन और सहदेव का घोर युद्ध | कर्ण और भीमसेन का घोर युद्ध | द्रोणाचार्य और अर्जुन का घोर युद्ध | धृष्टद्युम्न का दु:शासन को हराकर द्रोणाचार्य पर आक्रमण | दुर्योधन और सात्यकि का संवाद तथा युद्ध | कर्ण और भीमसेन का संग्राम तथा अर्जुन का कौरवों पर आक्रमण | द्रोणाचार्य का घोर कर्म | ऋषियों का द्रोण को अस्त्र त्यागने का आदेश | अश्वत्थामा की मृत्यु सुनकर द्रोण की जीवन से निराशा | द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्न का घोर युद्ध | सात्यकि की शूरवीरता और प्रशंसा | उभयपक्ष के श्रेष्ठ महारथियों का परस्पर युद्ध | धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य पर आक्रमण और घोर युद्ध | द्रोणाचार्य का अस्त्र त्यागकर योगधारणा द्वारा ब्रह्मलोक गमन | धृष्टद्युम्न द्वारा द्रोणाचार्य के मस्तक का उच्छेद
नारायणास्त्र-मोक्षपर्व
| कौरव सैनिकों तथा सेनापतियों का भागना | कृपाचार्य का अश्वत्थामा को द्रोणवध का वृत्तान्त सुनाना | धृतराष्ट्र का प्रश्न | अश्वत्थामा के क्रोधपूर्ण उद्गार | अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्राकट्य | कौरव सेना का सिंहनाद सुनकर युधिष्ठिर का अर्जुन से कारण पूछना | अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा के क्रोध एवं गुरुहत्या के भीषण परिणाम का वर्णन | भीमसेन के वीरोचित उद्गार | धृष्टद्युम्न के द्वारा अपने कृत्य का समर्थन | सात्यकि और धृष्टद्युम्न का परस्पर क्रोधपूर्ण वाग्बाणों से लड़ना | भीम, सहदेव तथा युधिष्ठिर द्वारा सात्यकि और धृष्टद्युम्न को लड़ने से रोकना | अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्रयोग | नारायणास्त्र के प्रयोग से युधिष्ठिर का खेद | श्रीकृष्ण के बताये हुए उपाय से सैनिकों की रक्षा | भीम का वीरोचित उद्गार और उन पर नारायणास्त्र का प्रबल आक्रमण | श्रीकृष्ण का भीम को रथ से उतारकर नारायणास्त्र को शान्त करना | अश्वत्थामा का पुन: नारायणास्त्र के प्रयोग में असमर्थता बताना | अश्वत्थामा द्वारा धृष्टद्युम्न की पराजय | सात्यकि का दुर्योधन, कृपाचार्य, कृतवर्मा, कर्ण और वृषसेन को भगाना | सात्यकि का अश्वत्थामा से घोर युद्ध | अश्वत्थामा द्वारा मालव, पौरव और चेदिदेश के युवराज का वध | भीम और अश्वत्थामा का घोर युद्ध | अश्वत्थामा के आग्नेयास्त्र से एक अक्षौहिणी पांडव सेना का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन पर आग्नेयास्त्र का प्रभाव न होने से अश्वत्थामा की चिन्ता | व्यास का अश्वत्थामा को शिव और श्रीकृष्ण की महिमा बताना | व्यास का अर्जुन से शिव की महिमा बताना | द्रोण पर्व के पाठ और श्रवण का फल

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