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महाभारत: द्रोण पर्व: द्वितीय अध्याय: श्लोक 26-37 का हिन्दी अनुवाद
- सूतपुत्र! तुम शीघ्र ही मेरे लिये श्रेष्ठ एवं शीघ्रगामी घोड़े ले आओ, जो श्वेत बादलों के समान उज्ज्वल तथा मन्त्रपूत जल से नहाये हुए हों, शरीर से हृष्टपुष्ट हों और जिन्हें सोने के आभूषणों से सजाया गया हो। (26)
- उन्ही घोड़ों से जुता हुआ सुन्दर रथ शीघ्र ले आओ, जो सोने की मालाओं से अलंकृत, सूर्य और चन्द्रमा के समान प्रकाशित होने वाले विचित्र रत्नों से जटित तथा युद्धोपयोगी सामग्रियों से सम्पन्न हो। (27)
- विचित्र एवं वेगशाली धनुष, उत्तम प्रत्यंचा, कवच, बाणों से भरे हुए विशाल तरकश और शरीर के आवरण- इन सबको लेकर शीघ्र तैयार हो जाओ। (28)
- वीर! रणयात्रा की सारी आवश्यक सामग्री, दही से भरे हुए कांस्य और सुवर्ण के पात्र आदि सब कुछ शीघ्र ले आओ। यह सब लाने के पश्चात मेरे गले में माला पहनाकर विजय-यात्रा के लिये तुम लोग तुरंत नगाड़े बजवा दो। (29)
- सूत! यह सब कार्य करके तुम शीघ्र ही रथ लेकर उस स्थान पर चलो, जहाँ किरीटधारी अर्जुन, भीमसेन, धर्मपुत्र युधिष्ठिर तथा नकुल-सहदेव खड़े हैं। वहाँ युद्धस्थल में उनसे भिड़कर या तो उन्हीं को मार डालूँगा। या स्वंय ही शत्रुओं के हाथ से मारा जाकर भीष्म के पास चला जाऊँगा। (30)
- जिस सेना में सत्यधृति राजा युधिष्ठिर खड़े हों, भीमसेन, अर्जुन, वासुदेव, सात्यकि तथा सृंजय मौजूद हों, उस सेना को मैं राजाओं के लिये अजेय मानता हूँ। (31)
- तथापि मैं समरभूमि में सावधान रहकर युद्ध करूँगा और यदि सबका संहार करने वाली मृत्यु स्वयं आकर अर्जुन की रक्षा करे तो भी मैं युद्ध के मैदान में उनका सामना करके उन्हें मार डालूँगा अथवा स्वयं ही भीष्म के मार्ग से यमराज का दर्शन करने के लिये चला जाऊँगा। (32)
- अब ऐसा तो नहीं हो सकता कि मैं उन शूरवीरों के बीच में न जाऊँ। इस विषय में मैं इतना ही कहता हूँ कि जो मित्रद्रोही हों, जिनकी स्वामी भक्ति दुर्बल हो तथा जिनके मन में पाप भरा हो; ऐसे लोग मेरे साथ न रहें। (33)
- संजय कहते हैं- राजन! ऐसा कहकर कर्ण वायु के समान वेगशाली उत्तम घोड़ों से जुते हुए, कूबर और पताका से युक्त, सुवर्णभूषित, सुन्दर, समृद्धिशाली, सुदृढ़ तथा श्रेष्ठ रथ पर आरूढ़ हो युद्ध में विजय पाने के लिये चल दिया। (34)
- उस समय देवगणों से इन्द्र की भाँति समस्त कौरवों से पूजित हो रथियों में श्रेष्ठ, भयंकर धनुर्धर, महामनस्वी कर्ण युद्ध के उस मैदान में गया, जहाँ भरतशिरोमणि भीष्म का देहावसान हुआ था। (35)
- सुवर्ण, मुक्ता, मणि तथा रत्नों की माला से अलंकृत सुन्दर ध्वजा से सुशोभित, उत्तम घोड़ों से जुते हुए तथा मेघ के समान गंभीर घोष करने वाले रथ के द्वारा अमित तेजस्वी कर्ण विशाल सेना साथ लिये युद्धभूमि की ओर चल दिया। (36)
- अग्नि के समान तेजस्वी अपने सुन्दर रथ पर बैठा हुआ अग्नि सदृश कान्तिमान, सुन्दर एवं धनुर्धर महारथी अधिरथपुत्र कर्ण विमान में विराजमान देवराज इन्द्र के समान सुशोभित हुआ। (37)
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गत द्रोणाभिषेकपर्व में कर्ण की रणयात्राविषयक दूसरा अध्याय पूरा हुआ।
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