क्या उस योगमाया का परदा आपके सामने नहीं रहता?
नहीं अर्जुन, मैं तो भूत, भविष्य और वर्तमान में होने वाले सम्पूर्ण प्राणियों को जानता हूँ, पर वे माया से मोहित जीव मेरे को नहीं जानते।।26।।
आपको न जानने में मुख्य कारण क्या है?
हे भरतवंशी अर्जुन! मुझे न जानने में मुख्य कारण है- राग और द्वेष से उत्पन्न होने वाला द्वन्द्वमोह। हे परंतप! इसी द्वन्द्वमोह से मोहित सम्पूर्ण प्राणी संसार में जन्म-मरण को प्राप्त होते रहते हैं।।27।।
तो क्या सभी द्वन्द्वमोह से मोहित रहते हैं?
नहीं, जिन पुण्यकर्मा मनुष्यों के पाप नष्ट हो गये हैं, वे द्वन्द्वमोह से रहित हो जाते हैं और दृढ़व्रती होकर मेरे भजन में लग जाते हैं।।28।।
दृढ़व्रती होकर आपके भजन में लग जाने से क्या होता है?
जो जरा-मरण आदि दुःखों से मुक्ति पाने के लिये केवल मेरा ही आश्रय लेकर यत्न करते हैं, वे उस ब्रह्म को, सम्पूर्ण अध्यात्म को और सम्पूर्ण कर्म को जान जाते हैं तथा वे अधिभूत, अधिदैव और अधियज्ञ के सहित मेरे को अर्थात् मेरे समग्ररूप को (‘सब कुछ वासुदेव ही है’- इस रूप को) जान जाते हैं। इतना ही नहीं, वे अनन्य भक्त अन्तकाल में मेरे को ही प्राप्त होते हैं।।29-30।।
|