उनको आप अपनी तरफ क्यों नहीं खींच लेते?
मैं मनुष्यों की दी हुई स्वतन्त्रता को छीनता नहीं हूँ, प्रत्युत जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक जिस-जिस देवता का पूजन करना चाहता है, उस-उस देवता के प्रति मैं उसकी श्रद्धा को दृढ़ कर देता हूँ और वह उसी श्रद्धा से युक्त होकर सकामभाव से उस देवता की उपासना करता है। परन्तु भैया, एक विचित्र बात है कि उनको उस उपासना से जो फल मिलता है, वह मेरे द्वारा विधान किया हुआ ही मिलता है, पर सकामभावपूर्वक देवताओं की उपासना करने के कारण उन अल्पबुद्धि वाले मनुष्यों को अन्तवाला अर्थात् उत्पन्न और नष्ट होने वाला फल ही मिलता है, मैं नहीं मिलता। देवताओं का पूजन करने वाले अधिक-से-अधिक देवताओं के पुनरावर्ती लोकों में जा सकते हैं, पर मेरे भक्त मेरे को ही प्राप्त होते हैं।।21-23।।
जब आपके भक्त आपको ही प्राप्त होते हैं तो फिर सब आपके भक्त क्यों नहीं हो जाते?
भैया! बुद्धिहीन मनुष्य मेरे सर्वश्रेष्ठ अविनाशी परमभाव को न जानते हुए मुझ अव्यक्त परमात्मा को जन्मने-मरने वाला मनुष्य ही मानते हैं। फिर वे मेरे भक्त कैसे बन सकते हैं।।24।।
वे आपके परमभाव को नहीं जानते तो न सही, पर आप उनके सामने अपने असली रूप से प्रकट क्यों नहीं हो जाते?
नहीं भैया! जब वे मूढ़लोग मेरे को अजन्मा और अविनाशी नहीं मानते, तब योगमाया से अच्छी तरह से आवृत हुआ मैं उनके सामने अपने असली रूप से प्रकट नहीं होता।।25।।
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