योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
पहला अध्याय
कृष्ण की जन्मभूमि
समय के हेर-फेर से, अंग्रेजी शिक्षा से तथा नवीन वासनाओं के उत्पन्न हो जाने से भारतवर्षीय शिक्षित मंडली के मानसिक भावों और विश्वासों में चाहे कितने ही परिवर्तन क्यों न हुए हों, पर कौन-सा हिन्दू है जिसको गंगा और यमुना ये दोनों नाम प्यारे न मालूम होते हों? अथवा जिसके चित्त में इन दोनों नामों के मुँह में आते ही या कान में पड़ते ही किसी तरह का कोई भाव उत्पन्न न होता हो? प्यारी यमुना! क्या तू वही यमुना है जिसकी रेती में हमारे महान पुरुष, वीर योद्धागण अपनी बाल्यावस्था में क्रीड़ा किया करते थे और जिसके तट पर कुछ बड़े होने पर उन्होंने धनुष-विद्या सीखी थी? यमुने! क्या सचमुच तू वही नदी है जिसके जल ने अनाथ पांडवों के संतप्त हृदय को शान्ति दी थी और जिसके तट पर उन्होंने बड़े परिश्रम और चाहना से इन्द्रप्रस्थ बसाया था? यमुने! क्या वास्तव में तू वही यमुना है जिसके किनारे के वनों को पांडवों ने काट डाला था और उन पर अनेक नगरियाँ बसा दी थीं जो बाद में आर्यों की वह राजधानी बनीं जहाँ उनकी राज्यपताका इतनी ऊँचाई से फहराती दीख पड़ती थी कि उसे सैकड़ों कोसों से देखकर उनके शत्रुओं का चित्त भी भयभीत हो जाता था? यमुने! क्या तेरी धारा वही धारा है जिसमें कृष्ण महाराज जलक्रीड़ा किया करते थे और जिसमें गर्भवती देवकी कृष्ण जैसे पराक्रमी महान पुरुष को प्रसव करके स्नान करने आती थी तथा स्नान करने के बाद परमात्मा से अपने बच्चे की रक्षार्थ प्रार्थना करती थी? यमुने! हमें तुझसे इन प्रश्नों के करने की इसलिए आवश्यकता हुई है, कि काल की कुटिलता ने तेरी दशा बदल दी, दुख सहते-सहते तेरा हृदय विदीर्ण हो गया और नख से सिर तक तेरे अंग-प्रत्यंगों पर उदासी छा गई। तुर्को ने तेरी छाती पर वह-वह मूँग दले कि उनके आघातों से छाती चलनी-सी हो गई है। तेरे तट पर भाँति-भाँति के सुन्दर भवनों की जो पंक्तियाँ थीं उनका आज कहीं चिह्न भी नहीं बाकी रहा। जो किसी समय धन-सम्पन्न तथा ऊँचे- ऊँचे राजप्रसादों से सुशोभित होने के कारण इन्द्रापुरी कहलाती थी, उसकी आज जर्जर अवस्था देखकर आठ-आठ आँसू रोना पड़ता है। केवल यही नहीं, वरन् दूर-दूर से यात्रीगण तेरी पुरानी संपत्ति को याद कर-करके रोने के लिए अब भी उमड़े चले आते हैं। तेरे तट पर अब भी एक शहर बसा हुआ है जो हमको तेरी सारी पुरानी बड़ाई का स्मरण दिलाता है और जिसके पुराने खंडहर उसके नवीन मन्दिरों के साथ मिलकर काल की कुटिल गति का संदेह प्रमाण दिखा रहे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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