योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 44

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

Prev.png

पहला अध्याय
कृष्ण की जन्मभूमि


"यद्यपि वृन्दावन के कुंज में जहाँ किसी समय कृष्ण गोपियों के संग क्रीड़ा किया करते थे अब उनकी वंशी की गूँज सुनाई नहीं देती, यद्यपि यमुना की धारा प्रतिदिन गोरक्त से रँगी जाती है, तथापि यात्रियों के लिए वह भूमि अब भी पवित्र है। उसके लिए वह पवित्र जारडन[1] के समान है जिसके तट पर बैठकर देशनिकाला दिया गया, इसराइल नबी की प्राचीन लड़ाइयों का स्मरण कर आँसू बहाता है।"-कर्नल टाड[2]

समय के हेर-फेर से, अंग्रेजी शिक्षा से तथा नवीन वासनाओं के उत्पन्न हो जाने से भारतवर्षीय शिक्षित मंडली के मानसिक भावों और विश्वासों में चाहे कितने ही परिवर्तन क्यों न हुए हों, पर कौन-सा हिन्दू है जिसको गंगा और यमुना ये दोनों नाम प्यारे न मालूम होते हों? अथवा जिसके चित्त में इन दोनों नामों के मुँह में आते ही या कान में पड़ते ही किसी तरह का कोई भाव उत्पन्न न होता हो? प्यारी यमुना! क्या तू वही यमुना है जिसकी रेती में हमारे महान पुरुष, वीर योद्धागण अपनी बाल्यावस्था में क्रीड़ा किया करते थे और जिसके तट पर कुछ बड़े होने पर उन्होंने धनुष-विद्या सीखी थी?

यमुने! क्या सचमुच तू वही नदी है जिसके जल ने अनाथ पांडवों के संतप्त हृदय को शान्ति दी थी और जिसके तट पर उन्होंने बड़े परिश्रम और चाहना से इन्द्रप्रस्थ बसाया था? यमुने! क्या वास्तव में तू वही यमुना है जिसके किनारे के वनों को पांडवों ने काट डाला था और उन पर अनेक नगरियाँ बसा दी थीं जो बाद में आर्यों की वह राजधानी बनीं जहाँ उनकी राज्यपताका इतनी ऊँचाई से फहराती दीख पड़ती थी कि उसे सैकड़ों कोसों से देखकर उनके शत्रुओं का चित्त भी भयभीत हो जाता था?

यमुने! क्या तेरी धारा वही धारा है जिसमें कृष्ण महाराज जलक्रीड़ा किया करते थे और जिसमें गर्भवती देवकी कृष्ण जैसे पराक्रमी महान पुरुष को प्रसव करके स्नान करने आती थी तथा स्नान करने के बाद परमात्मा से अपने बच्चे की रक्षार्थ प्रार्थना करती थी? यमुने! हमें तुझसे इन प्रश्नों के करने की इसलिए आवश्यकता हुई है, कि काल की कुटिलता ने तेरी दशा बदल दी, दुख सहते-सहते तेरा हृदय विदीर्ण हो गया और नख से सिर तक तेरे अंग-प्रत्यंगों पर उदासी छा गई। तुर्को ने तेरी छाती पर वह-वह मूँग दले कि उनके आघातों से छाती चलनी-सी हो गई है। तेरे तट पर भाँति-भाँति के सुन्दर भवनों की जो पंक्तियाँ थीं उनका आज कहीं चिह्न भी नहीं बाकी रहा। जो किसी समय धन-सम्पन्न तथा ऊँचे- ऊँचे राजप्रसादों से सुशोभित होने के कारण इन्द्रापुरी कहलाती थी, उसकी आज जर्जर अवस्था देखकर आठ-आठ आँसू रोना पड़ता है। केवल यही नहीं, वरन् दूर-दूर से यात्रीगण तेरी पुरानी संपत्ति को याद कर-करके रोने के लिए अब भी उमड़े चले आते हैं। तेरे तट पर अब भी एक शहर बसा हुआ है जो हमको तेरी सारी पुरानी बड़ाई का स्मरण दिलाता है और जिसके पुराने खंडहर उसके नवीन मन्दिरों के साथ मिलकर काल की कुटिल गति का संदेह प्रमाण दिखा रहे हैं।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मक्के के पास एक नदी का नाम है।
  2. सुप्रसिद्ध अंग्रेज इतिहासकार-कर्नल जेम्स टॉड

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः