योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 45

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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पहला अध्याय
कृष्ण की जन्मभूमि


सहृदय पाठक! आप समझ ही गए होंगे कि हमारा तात्पर्य मथुरा की नगरी से है, जो श्रीकृष्ण की जन्मभूमि होने के कारण हिन्दुओं का एक महान तीर्थ-स्थान गिना जाता है, जिसकी स्तुति में हिन्दू कवियों ने अनेक कविताएँ रच डाली हैं।

ऐसा कहते है कि महाराज रामचन्द्र के समय में उस स्थान पर एक घना बन था जो एक जंगली राजा मधु के सत्त्व में था और जिसके नाम पर इस प्रान्त को मधुवन कहते थे। राज मधु के मरने के उपरान्त उसका पुत्र लवण महाराजा रामचन्द्र से लड़ने के लिए तत्पर हुआ जिस पर शत्रुघ्न को उसे लड़ने को भेजा गया। लड़ाई में लवण मारा गया और महाराज शत्रुघ्न की जय हुई जिसके स्मारक रूप में उन्होंने इस स्थान पर मथुरा नगरी बसाई। इसका मथुरा नाम क्यों पड़ा, यह प्रश्न ऐसा है जिसका उत्तर देना कठिन है। संभव है कि मधुपुरी से बिगड़कर मथुरा बन गया हो अथवा संस्कृत शब्द ‘मथ’ से यह कुछ संबंध रखता हो। ‘मथ’ शब्द के अर्थ मथने अर्थात मक्खन निकालने के हैं। संभव है कि दूध, दही और मक्खन की बहुतायत से इसका नाम मथुरा पड़ गया हो। जिन्दावस्था[1] में मथुरा शब्द गोचर के लिए प्रयोग हुआ है फिर गोकुल[2], ब्रज और वृन्दावन ये सब नाम भी यही प्रकट करते हैं कि प्राचीन समय में इस प्रान्त में बड़े-बड़े वन थे जो अपने गोचरों तथा पशुओं के लिए प्रसिद्ध थे और जहाँ दूध, दही तथा मक्खनादि बहुतायत से मिलता था।

ऐतिहासिक समय में सर्वप्रथम मथुरा का वर्णन महात्मा बुद्ध के जीवनचरित्र में आया है जिससे प्रकट होता है कि उस समय भी यह शहर भारतवर्ष के दक्षिण प्रांत के प्रसिद्ध शहरों में था। यह नहीं कहा जा सकता कि उस समय भी इसे कोई धार्मिक श्रेष्ठता प्राप्त थी या नहीं, पर प्रायः बुद्धदेव के वहाँ व्याख्यान देने से विदित होता है कि यह शहर उस समय भी एक बड़ा केन्द्र होगा, क्योंकि महात्मा बुद्ध विशेषतः ऐसे ही बड़े-बड़े स्थानों में व्याख्यान दिया करते थे जहाँ लोगों की अधिक भीड़-भाड़ होती थी। मथुरा कई शताब्दियों तक बौद्ध-शिक्षा का केन्द्र स्थल बना रहा।

इसके उपरान्त मथुरा का वर्णन यूनानियों के संदर्भ में हुआ है और इसमें कुछ संदेह नहीं कि यूनानियों ने इस पर विजय प्राप्त की और कुछ काल तक मथुरा बैक्ट्रिया वंश के अधीन रही।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पारसी धर्मग्रन्थ जेन्दावस्ता
  2. श्रीमद्भागवत में गोकुल व गाय का निकास ‘गो’ शब्द अर्थात गाय से बताया है। मा. अ. श्लोक 25।

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अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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