विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीकृपायोग का आश्रय और चंद्रोदयमिथ्यापवादवचसाप्यभिमानसिद्धि। यदि गाँव में कृष्ण के साथ मिथ्यापवाद मुझे लगेगा, तो हमें अभिमान होगा कि वाह! वाह! में भी सुन्दरी हूँ, तब लोग कृष्ण के साथ कलंक लगाते हैं! आप फिर अपने प्रसंग पर आ जाओ। व्रजवासियों के साथ ब्रह्मा, इंद्र, चंद्र, रुद्र आदि देवता अपना झूठा संबंध बना करके अपने को कृष्ण के पास पहुँचाना चाहते हैं। झूठ-मूठ, लोग चाहते हैं कि कृष्ण के साथ झूठा कलंक भी लग जाए! जब श्रीकृष्ण चंद्र के मन में रमण का, विहार का संकल्प उदय हुआ, मन आया, तब चंद्रमा ने कहा- कि हम तो मनके देवता बनेंगे। जब मन हुआ तो चंद्रमा जरूर रहेगा। मन बनता है औषधि वनस्पतियों से जैसा अन्न वैसा मन। और औषधि वनस्पतियों के राजा चंद्रमा हैं, जब चंद्रमा शैत्य बरसाते हैं, अमृत बरसाते हैं तब जौ में गेहूँ में, अंगूर में अनार में शक्ति का संचार होता है। और वही अन्न जब आदमी खाता है तब मन बनता है। तो जैसे चंद्र देवता का अनुग्रह अन्न द्वारा मन पर है; तब मन में संकल्प करने की शक्ति आती है, इसलिए मन का देवता है चंद्रमा। तो बोले भाई। अन्न से यदि मन बना हो तब त उसका देवता चंद्रमा हो और भगवान् का मन तो अन्न से बना ही नहीं है, वह तो बिलकुल सच्चिदानन्दघन ही है। तो वहाँ चंद्रमा कहाँ से आयेगा? चंद्रमा ने कहा- भले श्रीकृष्ण का मन अन्न से न बना हो; परंतु उनके मन का नाम मन है कि नहीं? हम मन पर अपना दावा रखते हैं, जहाँ मन होगा वहाँ चंद्रमा होगा। बोले- अरे, भगवान् का मन अप्राकृत और तू प्राकृत चंद्रमा वहाँ कैसे पहुँचेगा? कहाँ- पहुँचे चाहे न पहुँचे; हमने युक्ति निकाल ली है। क्या? कि ठीक उसी समय जब भगवान् का मन उदय हुआ, उसी समय हम भी उदय हो जाएंगे। लोग कार्य कारण संबंध जरूर जोड़ लेंगे। दुनिया में हमारी प्रसिद्धि भी हो जाएगी। तदोडुराजः ककुभः करैर्मुखं प्राच्या विलिम्पन्नरुणेन शन्तमैः । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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