विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीकृपायोग का आश्रय और चंद्रोदयतो वही ईश्वर करुणालय‘योगमायामुपाश्रितः’- वही योगमाया का आश्रय लेकर के यह रासलीला करता है। अब योगमाया का आश्रय लेकरके रासलीला करना क्या है? देखो, संसार में लोग रास्ते पर चलते रहते हैं, कोई दुकान में लगा है, कोई अपने रास्ते चला जा रहा है। लेकिन मदारी को जब खेल दिखाना होता है तो महाराज! डमरू बजाता है, खंझरी बजाता है, और लोग दुकानों में से निकल आते हैं, रास्ता चलना बन्द कर देते हैं, खड़े होकर मदारी का तमाशा देखने लगते हैं। ईश्वर जब देखता है कि ये जीव अपनी वासना के रास्ते पर चल रहे हैं, ये ईश्वर की तरफ देखते नहीं है, ये तो जहाँ पैसा मिले उसको देखते हैं जहाँ भोग मिले उसको देखते हैं, जहाँ कारखाने खुले उसको देखते हैं, जहाँ कोई काम न करना पड़े उसको देखते हैं; तो खंझरी लेकर जैसे कोई नट आ गया हो- ऐसे ये नटवर श्याम योगमाया या माया तां उपाश्रितः- योग के लिए संसार में बिखरे हुए संसार में फँसे हुए वासना के भिगोये हुए जीवों को अपनी ओर खींचने के लिए योगमाया का आश्रय ग्रहण करके नाट्यलीला- रासलीला दिखाते हैं। अरे भाई! मजा तो हमारे पास है। तुम सुख चाहते हो? आओ, हमारे पास लो। रस चाहिए तुमको? हमारे पास लो। प्रेम चाहिए तुमको? हमारे पास लो, है। आनन्द लेकर, रस लेकर, प्रेम लेकर, संसार में भटकते हुए जीवों को अपनी ओर आकृष्ट करने के लिए अनादि काल से बिछुड़े हुए, जन्म- जन्म से बिछुड़े हुए जीवों को अपनी ओर खींचने के लिए यह देखो- परमानन्दकन्द, नन्दनन्दन व्रजचंद, श्यामसुन्दर को जो ‘योगमायामुपाश्रितः’- माया माने कृपा-कृपा को स्वीकार करके धरती पर आया है। हमको याद है, बचपन में जब स्कूल में, विद्यालय में पढ़ने जाते थे तो बहुत लोग वैसे तो हनुमान जी के मंदिर में न जाँय लेकिन परीक्षा का दिन आ जाए तो बोलें- हे हनुमानजी! पास कर देना। ये मतलबी यार हैं। मतलबी यार किसके! दम लगाय खिसके । ये जो जीव हैं वे कोई मतलब पड़े तो ईश्वर का नाम लें और वैसे प्रगतिशील लोगों के दल में सम्मिलित हैं। आजकल तो महाराज पढ़े-लिखे लोगों के बीच में कोई ईश्वर का नाम ले तो उसका नाम बुर्जुवा हो जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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