विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीयोगमाया का आश्रय लेने का अर्थजब कृष्ण के प्रेम में राधा और राधा के प्रेम में कृष्ण- दोनों जब बेसुध हो जाते हैं तो वहाँ दोनों के सुख का सम्बोध है। उसको हित-तत्त्व बोलते हैं। अज्ञात दशा में सुख नहीं रहता। सुख ज्ञात रहना चाहिए। चित हो तब तो सुख मालूम पड़े? सुषुप्ति में भी यदि चेतन नहीं होता तो सुख कैसे मालूम पड़ता? तो जब कृष्ण राधा में और राधा कृष्ण में लीन हो गये, उस समय जो दोनों के सुख का संबोध है, उसको हित-तत्त्व बोलते हैं। यही वंशी है। चिद्- अभिव्यक्ति आचार्य है- वंशी का गुरुरूप। सद्-अभिव्यक्ति है वंशी का सखी रूप। स्वयं वंशी आनन्दाभिव्यक्ति है। और हित तत्त्व है स्वयं सच्चिदानन्द। तीनों एक हैं। भगवान् ने उसी वंशी का आश्रय लिया। ‘योगमायामुपाश्रितः।’ रन्तुं मनश्चक्रे योगमायामुपाश्रितः- अब एक दूसरा भाव देखो इसका- योगमाया माने राधारानी। जब रास करने का बिलकुल निश्चय हो गया तब भगवान् ने सोचा कि यदि राधारानी अनुकूल नहीं होगी तो रास नहीं हो सकता। अतः ‘योगमायाम् उपाश्रितः’ माने राधारानी का आश्रय लिया। सर्वाश्रयोऽपि भगवान् कृष्णः- ब्रह्मा के आश्रय कृष्ण; शंकर के आश्रय कृष्ण; इन्द्र के आश्रय कृष्ण। सम्पूर्ण जगत्, अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड के आश्रय कृष्ण; सम्पूर्ण जीवों के आश्रय कृष्ण; सबके आश्रय कृष्ण भगवान् होने पर भी रास करना हुआ तो बोले- बाबा! अकेले काम नहीं बनेगा; जब तक श्रीराधारानी रास के लिए तैयार नहीं होंगी, गोपियों के साथ रास करने की स्वीकृति नहीं देंगी, स्वयं सोलहों श्रृंगार करके उसमें शामिल नहीं होगी, तब तक रस बनेगा ही नहीं; तब सबके आश्रय होने पर भी योगमाया राधां उपाश्रितः श्रीराधारानी के आश्रित हुए। आश्रित हुए- उपाश्रितः- माने पास गये, पाँव पकड़ लिया। श्रीराधारानी बोलीं- प्रियतम, यह क्या कर रहे हो? दोनों हाथ पकड़कर हृदय से लग गयीं और बोलीं- यह क्या कर रहे हैं? आज पाँव क्यों छू रहे हैं? कहा- तुम्हारी शरण में हूँ तुम्हारे आश्रय में हूँ। देखो- इतने बड़े होकर होकर भी इतना दैन्य दिखाते हैं। बोलीं- प्रियतम्, आज्ञा करो। कहा- आज्ञा नहीं, तुमसे आज्ञा लेने आया हूँ, बोलीं- क्या? कहा- गोपियों के मन में रास की है। एक दिन उनके साथ रास हो जाए। इसलिए मैं तुम्हारी शरण में हूँ देवि, प्रिया हो, प्रसन्न हो जाओ, कृपा करो कि गोपियों को भी तुम्हारे साथ रास करने का, नृत्य करने का, गाने-बजाने-नाचने का आनन्द मिले। और यह आनन्द इन गोपियों को मिलेगा, इनमें प्रकट होगा तो व्यास-शुकदेव आदि उसका गान करेंगे, संसार के सब जीवों को मालूम पड़ेगा, तो वे भी हमारा ध्यान करेंगे, वे भी हमसे प्रेम करेंगे। उनके हृदय में भी सच्चे प्रेम का उदय होगा। इसलिए ‘योगमायामुपाश्रितः’। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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