विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास की दिव्यता का ध्यानरस अपनी ओर खींचने से अहंकार से दूषित हो जाता है और रस परमात्मा की ओर कर देने से अहंकार का जो कलुष है, कल्मष है, वह उसमें से छूट जाता है। दुनियाँ में मैंने देखा है- प्रेम में असफल कौन हुआ? लोगों का गृहस्थ जीवन देखा है। कौन पत्नी प्रेम में असफल हुई, दुःखी कौन हुई? जिसने आजीवन अपने पति पर अपनी इच्छा चलाने का आग्रह जोड़ा। तो जीवन में परमात्मा की इच्छा के अनुसार चलना, कि परमात्मा को अपनी इच्छा के अनुसार चलाना? भक्ति पर रहस्य है इसमें, शरणागति का रहस्य है, प्रेम का रहस्य है इसमें। प्रेम का यह रहस्य है कि अहंकार का कलुष उसमें न हो। उसके लिए क्या करें? उसके लिए सब कुछ छोड़ सको, यह तैयारी होनी जरूरी है, छोड़ना जरूरी है। ‘रात्री’ शब्द में ये दोनों बातें ध्वनित होती है। गोपियाँ कृष्ण के सिवाय और सबके त्याग के लिए तत्पर हैं। यह तत्पर शब्द जो है न, यही तैयार है- ‘प’ का ‘य’ किसी लेखक के प्रमादवश हो गया है। तैयारी, तात्पर्य-तत्परता। और दूसरे गोपियों के रस का आस्वादन अपने लिए नहीं, उनके लिए है। गोपियों के प्रेम की विशेषता यही है। एक दिन अर्जुन से कृष्ण से पूछा- श्रीकृष्ण, तुम ‘गोपी-गोपी’ पुकारते रहते हो, क्या हमलोग तुम्हारे कुछ नहीं होते, कुछ नहीं लगते? अरे बाबा! हम भी तुमसे प्रेम करते हैं। श्रीकृष्ण बोले- करते तो हो अर्जुन, लेकिन तुम्हारे प्रेम में और गोपी के प्रेम में फर्क है। क्या फर्क है?
ताभ्य: परं न मे किञ्चिन्नगूढप्रेमभाजनम् ।। अर्जुन, ‘निजांगमपि या गोप्यो ममेति समुपासते’ गोपि कहती हैं- हमारे बाल स्वच्छ रहने चाहिए। क्यों? कि हमारे प्रियतम देखेंगे तो खुश होंगे, उनको खुश रखने के लिए हमने बाल रखा है, हम बहुत सुन्दर लगें, हम खुश हों, इसके लिए हमारे बाल नहीं है। हमारी आँखें प्रसन्न रहें, निर्मल रहें, इसलिए कि कृष्ण कभी देखेंगे कि आज इसकी आँख में खुशी है तो खुश हो जाएंगे, वे हमारी मुस्कान देखेंगे तो मुस्कुरा देंगे। वे शरीर में साबुन क्यों लगाती हैं, तेल क्यों लगाती हैं, साड़ी क्यों पहनती हैं, बाल क्यों सम्हालती हैं, क्यों बन-ठनकर निकलती हैं? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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