विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास की दिव्यता का ध्यानवेदान्ती लोग कहते हैं- ‘ध्यानं निर्विषयं मनः’ मन में किसी भी विषय का न फुरना ध्यान है, पर यह कच्चा ध्यान है, यह बहिरंग साधन का समाधान रूप ध्यान है, फिर बोले- अनात्मप्रत्यय का तिरस्कार करके आत्माकार वृत्ति का प्रवाह ध्यान है। यह निदिध्यासन है। निःस्फुरणरूप समाधान अविद्या की निवृत्ति में समर्थ नहीं है; क्योंकि जितनी देर तक चित्तवृत्ति शान्त रहे, उतनी देर तक दुनिया मालूम नहीं पड़ेगी, फिर जब वृत्ति उठेगी तो फिर वहीं दुनिया आ जायेगी। तो अज्ञान को समाधि नहीं मिटावेगी, ब्रह्मकार वृत्ति मिटावेगी। इसलिए उन्होंने कहा- कि निर्विषयता का जो ध्यान है वह बहिरंग साधनान्तर्गत, अंतःकरण शुद्धि का ध्यान है और अनात्मप्रत्यय का तिरस्कार करके आत्माकार वृत्ति का जो प्रवाह है, वह अंतरंग ध्यान है। कर्तृत्व- भोक्तृत्वोल्लेशशून्य, वासना- शून्य, शुद्ध सात्त्विक प्रतीतिमात्र अंतःकरण में जो आत्म आत्मचित्त-विम्ब का प्रतिविम्बन है उसको ध्यान बोलते हैं। यह आपको नमूने के तौर पर बता दिया। अब भक्तिमत में ध्यान क्या है, सो बताते हैं- दर्शन समानाकार वृत्तिका नाम ध्यान है। दर्शन समानाकार वृत्ति माने क्या? जैसे हम तुमको देख रहे हैं; किसी- किसी की आँख मिल जाती हैं, कोई मुस्करा देता है, किसी के दाँत खिल उठते हैं, किसी की ठुड्डी हिल जाती है। यह जो दिखता है बिल्कुल साफ- साफ दिखता है। कोई शंका तो नहीं है इसमें? ऐसे ही जब आँख करने पर भगवान दिखने लग जायँ या आँख खुलते ही भगवान दिखें या बन्द आँख से; लेकिन दिखें ऐसे जैसे- सामने का दृश्य दिखायी पड़ता है और उसमें कल्पना की बुद्धि उदय न हो कि ये हमारे मन कि कल्पना है, यह लगे कि खास वही है मुरली वाले, वही पिताम्बरधारी, वही श्यामसुन्दर, वही मन्दमुस्कान, वही मोर मुकुट, वही गोरोचना का तिलक, वही प्रेमभरी आँखे, अनुग्रहपूर्ण भौहें, वही सुचिक्कन कपोल, वही मन्द- मन्द हास्य, वही विशाल उत्तुग्ड़ वक्ष: स्थल-‘दत्ताभयं च भुजदण्डयुगं’- बस दर्शन- समानाकार वृत्ति यही है।, इसी का नाम ध्यान है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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