विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरासलीला का अन्तरंग-4अब प्रश्न यह है कि जब श्रीकृष्ण ने द्वापर में अवतार ले लिया, उसके बाद ये उपनिषद बने, कि उपनिषद पहले से हैं और अवतार बाद में हुआ? तो आजकल के ऐतिहासिक लोग जो हैं, ऐतिहासिक दृष्टि से विचार करने वाले- वे कहेंगे कि कृष्ण पहले हुए और उपनिषद बाद में बने। और मीमांसा की पद्धति से विचार करने वाले जो लोग हैं वे कहेंगे कि श्रीकृष्ण नित्य हैं और उनका वर्णन भी नित्य है, राधा नित्य हैं और उनका वर्णन भी नित्य है, तभी ‘गोपीजनवल्लभ’ की संगति लगेगी। जहाँ धर्मशास्त्र में यह विचार आता है कि माघ शुक्ला अष्टमी के दिन भीष्म पितामह को तर्पण करने का विधान है, वहाँ धर्मशास्त्रियों में प्रश्न उठा कि भीष्म के मरने के बाद भीष्माष्टमी के दिन तर्पण करने का विधान बनाया गया होगा। हमारे मीमांसक लोग कहते हैं- बिलकुल नहीं, चाहे भीष्म पैदा हुए हों, चाहें न हुए हों, द्वापरयुग आया हो, चाहे न आया हो; त्रेता में जब रामचंद्र थे, सतयुग में जब हरिश्चंद्र आदि राजा थे, वे भी माघशुक्ला अष्टमी को भीष्म के लिए तर्पण करते थे, क्योंकि शास्त्र में उसका विधान है। कहा- क्यों? बोले- भीष्म तो हर द्वापर में होते हैं, अपने पहले वाले द्वापर के भीष्म के लिए जैसे हम आज तर्पण करते हैं वैसे उसके पहले वाले द्वापर के भीष्म के लिए जैसे हम आज तर्पण करते हैं वैसे उसके पहले वाले द्वापर के भीष्म के लिए उसके पहले लोग तर्पण करते थे। इसलिए शास्त्र में जो विधान होता है वह इतिहास को देख करके नहीं होता है। शास्त्र में वर्णित विधान के अनुसार इतिहास को मानना पड़ता है। यह शास्त्र की संगति है। हम यह बात क्यों कर रहे हैं? इसलिए कह रहे हैं कि जब गोपीजनवल्लभाय नमः यह मंत्र विद्यमान है, तो भगवान श्रीकृष्ण अनादिकाल से ‘गोपीजनवल्लभ’ हैं और अनन्तकाल तक ‘गोपीजनवल्लभ’ हैं। वेद का यह मंत्र बताता है कि कृष्ण की जो रासलीला है, जो गोपी हैं, जो गोपीजनप्रिय भगवान श्रीकृष्ण हैं, जो गोपीजनवल्लभ भगवान गोविन्द हैं, ये सब अनादिकाल से हैं और अनन्त हैं। ऐसा नहीं है कि ये कभी बीच में पैदा हो जाते हैं और तब इनकी लीला लिखी जाती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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