विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरासलीला का अन्तरंग-1अब महाराज सफेद दाढ़ी जनकजी की और इतने बड़ा राजा, परं वैराग्यवान् और ज्ञानी, रामचंद्र उनको आकृष्ट करके क्या करते, यही न कहते कि अपनी बेटी हमको ब्याह दो! श्रीरामचंद्र के मन में यह बात बिल्कुल नहीं उठी कि हम जनक जी को मोहित कर लें, लेकिन जनकजी का क्या हाल हुआ? बोले-
तो सनकादि को या जनकादि को आकृष्ट करने में भगवान् को कोई संकल्प, कोई परिश्रम नहीं करना पड़ता। परंतु महाराज कहीं-कहीं विचित्र भक्तं से काम पड़ता है- बोले भाई जादू तो वह है जो सिरपर चढ़कर बोले। ये गाँव की गोपी- श्रीमद्भागवत में एक ऐसा शब्द है- ‘क्वेमाः स्त्रियो वनचरीः व्यभिचारदुष्टाः’ गोपी की कोई जात है भला? किस ब्रह्मऋषि गर्ग, गौतम शाडिल्य के गोत्र में हैं? नारायण, कोई तीन में न तेरह में हैं! कोई जात अच्छी नहीं। अच्छा, कोई वेदान्त सीखा था उन्होंने? प्रेमकुटीर में उन्होंने वेदान्त सुना था, कि हरिद्वार- हिमालय में जाकर उन्होंने वेदान्त सीखा था? कोई तात्विक ज्ञान नहीं उनको। तब बोले- भाई, काशी में जाकर या गंगा और यमुना के दुआबे में जाकर सदाचार की कहीं शिक्षा पायी थी? गंगा और यमुना का जो मध्यवर्ती भाग है उसको ‘दुआबा’ बोलते हैं, उसको सदाचार का प्रवेश बोलते हैं। गोपियों में क्या था? ठन-ठनपाल तो थीं। लेकिन अगले की भी तो मर्जी है न, अगले से पसन्द कर ली, खुश हो गया! बोले- हमको तो गोपी चाहिए। अरे भाई, गोपी तो एकदम मस्त बैठी हुई है, उसको तो गाय दुहने से, दही जमाने, मक्खन बनाने से, गोबर पाथने से छुट्टी नहीं, वह प्रेम बेचारी क्या करेगी? तो कृष्ण ने कहा- अच्छा, हम इनके सामने अपना असीम सौन्दर्य, असीम माधुर्य, असीम प्रेम, असीम वात्सल्य, असीम सख्य, असीम सौकुमार्य प्रकट करेंगे। अपना संपूर्ण सौस्वर्य बाँसुरी में भकर अपना समूचा अधरामृत इनतक पहुँचायेंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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