विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास के संकल्प में गोपी-प्रेम की हेतुताउद्धवजी न गोपियों की विशेषता थोड़ी पकड़ी-
उद्धवजी ने कहा कि मेरा अगला जन्म होवे। संसार में भाव की बड़ी महिमा है। थोड़ी देर पहले अपने यहाँ स्वामी रामसुखदासजी आये थे। उनके साथ ‘सोऽहं मुनि’ भी थे। मुनिजी तो बड़ा प्रश्नोत्तर करते हैं। वह चाहते थ कि हम और स्वामी रामसुखदासजी इस बात पर आपस में चर्चा करें- कि निष्काम कर्म से मोक्ष होता है या केवल ज्ञान से ही मोक्ष होता है, निष्काम कर्म से नहीं। न तो रामसुख दासजी की ही इसमें रुचि है कि हम आपस में किसी मतभेद की चर्चा करें और न तो हमारी रुचि भी प्रेम से ही करते हैं। मुनिजी ने कहा- कि कर्म से मोक्ष होता है, यह सिद्धांत कैसा? तो मैंने कहा- कि जब तुम कर्म से बन्धन मानते हो, कर्म में यह शक्ति मानते हो कि बाँध सकता है, तो यह भी क्यों नहीं मानते कि कर्म में मोक्ष की शक्ति है? यदि कर्म में बाँधने की शक्ति है तो कर्म में सोचने की भी शक्ति होगी। अविद्या के प्रभाव से कर्म बन्धक होगा और विद्या के प्राधान्य के कर्म मोचक होगा। पर वेदान्ती लोग तो कर्म में न बन्धन की शक्ति मानते हैं और न कर्म में मोक्ष की शक्ति मानते हैं; वे तो अज्ञान से बन्धन मानते हैं और ज्ञान से मुक्ति मानते हैं। लेकिन जो कर्म से बंधन मानता है उसको विवश होकर स्वीकार करना पड़ेगा कि अमुक प्रकार के कर्म मोक्ष के साधन बनेंगे। स्वामी रामसुखदास जी तो बड़े प्रसन्न हुए। तो आपको यह बात सुनाते हैं कि ये जो बन्धन है संसार के कोई कहता है कि बारम्बार जन्म लेना बड़ा दुःख है, इससे मुक्ति चाहिए और भक्त कहता है कि तरह-तरह की पोशाक पहनकर भगवान के सामने आना बड़ा सुख है। यह मरना तो ऐसे ही है जैसे पुरानी पोशाक उतार देना और जन्मना ऐसे है जैसे नयी पोशाक पहन लेना। भक्त लोग कहते हैं कि हम नयी-नयी पोशाक पहनें और भगवान के सामने आवें. वे जन्म से छूटना नहीं चाहते। किसी ने कहा- कि भक्ति करोगे तो मोक्ष नहीं मिलेगा। बोले- हमने मोक्ष चाहा कब? मत मिले! हमको तो हमारे भगवान की (प्रसन्नता) चाहिए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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