विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास-स्थली की शोभापहले जब वह चलती थी तो उसको ठुमुककर पाँव रखने का अभ्यास नहीं था। लेकिन अब जब पायजेब पहनकर आयी तब ठुमुक-ठुमुककर चले, झमक-झमककर चले। यह ठुमुककर चलना जैसा उसके आनन्द की अभिव्यक्ति थी, वैसे यह जो ब्रह्म है न, तो यह जब पायजेब पहन लेता है, नूपुर पहन लेता है तब वह नाचने लगता है। नूपुर वाले ब्रह्म का नृत्य है रास- रसो वै सः । अब आप देखो- दो गोपियों के मण्डल बन गये- वनिताशतयूथपः। आप थोड़ी देर के लिए बंबई को भूल जाओ और फिर मन में देखो- वृन्दावन की वह भूमि, वृन्दावन जहाँ पृथ्वी ने अपना हृदय प्रकट कर दिया है। पृथ्वी के बुलाने से भगवान् आये हैं, इसलिए पृथ्वी भगवान् का स्पर्श चाहती है। वृन्दावन के रूप में इस पृथ्वी ने अपना हृदय प्रकट किया, और उसके लिए भगवान् वहाँ अपने शरण रखकर के चल रहे हैं। कभी आगे बढ़ते हैं, कभी पीछे हटते हैं- उपगीयमान उद्गायन्- गोपियाँ गाती हुई कभी आ जाती हैं कृष्ण के पास- जैसे उपनिषदें पहले धर्म का वर्णन करें, फिर उपासना का, फिर योग का और फिर साक्षात् परब्रह्म का ही वर्णन करने लग जायँ, तो जैसे श्रुतियाँ क्रम-क्रम से पादविन्यास करती हुई चलती हैं, प्रथमपाद का वर्णन, द्वितीयपाद का वर्णन, तृतीयपाद का वर्णन, चतुर्थपाद का वर्णन करती हैं, वैसे गोपियाँ पाद-विन्यास करती हुई- कृष्ण-कृष्ण-कृष्ण का गान करती हुई कभी श्रीकृष्ण के पास पहुच जाती हैं और कभी दूर पहुँच जाती हैं। जब वे पीछे हटती है तब श्रीकृष्ण उनकी ओर बढ़ते हैं, और जब वे पढ़ती हैं कृष्ण की ओर तो कृष्ण पीछे हटते हैं। यह देखो, इसमें प्रेम संपूर्ण हो गया। कृष्ण की ओर बढ़ना स्नेह है और पीछे हटना मान है। लेकिन जब एक मान करे तो दूसरा आगे बढ़े, और जब दूसरा मान करे तो पहला आगे बढ़े। और- उपगीयमानः गोपी गाती हुई कृष्ण के पास आती हैं। जब वे पीछे हटती हैं, तब श्रीकृष्ण उनके पास आते हैं, जब वे कृष्ण के पास बढ़ती हैं तो कृष्ण पीछे हटते हैं। जितना-जितना पकड़ने की कोशिश करें उतना-उतना पीछे और जितना-जितना हटने की कोशिश करें उतना आगे- ये हटना और सटना यह श्रृंगाररस की पूर्ण अभिव्यक्ति है। हट-हटकर सचना, सट-सटकर हटना। ज्ञान में हटना और सटना नहीं है। लेकिन यह प्रेम है, इसको रास बोलते हैं। वृन्दावनियों की भाषा में इसका एक सांकेतिक नाम है। नेमप्रेम-प्रेमनेम। प्रेम का मतलब है प्रीतम के आगे बढ़ना और नेम का अर्थ है पीछे हटना। आगे बढ़ो, पीछे हटो जैसे झूला झूलते हैं न, जैसे हिंडोले का सुख होता है वैसे हृदय में प्रेम-हिंडोला डालकर, प्रेम का झूला डाल करके, कभी पीछे, कभी आगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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